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National Sports Day 2019: मेजर ध्‍यानचंद के बारे में 29 रोचक तथ्‍य

आज हॉकी के जादूगर मेजर ध्‍यानचंद का जन्‍मदिन है. 29 अगस्‍त को हर साल हॉकी के जादूगर मेजर ध्‍यानचंद का जन्‍मदिन खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है.

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Drigraj Madheshia
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National Sports Day 2019: मेजर ध्‍यानचंद के बारे में 29 रोचक तथ्‍य

हॉकी के जादूगर मेजर ध्‍यानचंद का फाइल फोटो

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आज हॉकी के जादूगर मेजर ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) () का जन्‍मदिन है. 29 अगस्‍त को हर साल हॉकी के जादूगर मेजर ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) का जन्‍मदिन खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है. 29 अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में जन्‍में मेजर ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) के हॉकी स्टिक से गेंद इस कदर चिपकी रहती थी कि विरोधी खिलाड़ी को अक्सर ऐसा लगता था कि वह जादुई स्टिक से खेल रहे हैं. एक बार तो उनकी हॉकी स्‍टीक तोड़कर देखी गई.

  1. मेजर ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) का जन्म 29 अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था. ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) के हॉकी स्टिक से गेंद इस कदर चिपकी रहती थी कि विरोधी खिलाड़ी को अक्सर ऐसा लगता था कि वह जादुई स्टिक से खेल रहे हैं. यहीं नहीं हॉलैंड में एक बार तो उनकी हॉकी स्टिक में चुंबक होने की आशंका में उनकी स्टिक तोड़ कर देखी गई थी.
  2. मेजर ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) को बचपन में खेलने का कोई शौक नहीं था. साधारण शिक्षा ग्रहण करने के बाद 16 वर्ष की उम्र में ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) 1922 में दिल्ली में प्रथम ब्राह्मण रेजीमेंट में सेना में एक साधारण सिपाही के रूप में भर्ती हुए. 
  3. मेजर ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand)  सेना में जब भर्ती हुए उस समय तक उनके मन में हॉकी के प्रति कोई विशेष दिलचस्पी या रूचि नहीं थी.
  4. हॉलैंड में एक बार तो उनकी स्टिक तोड़ कर देखी गई कि उसमें चुंबक तो नहीं है. एक बार तो मेजर ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) के जादुई खेल से प्रभावित होकर जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने उन्हें अपने देश जर्मनी की ओर से खेलने की पेशकश की थी. लेकिन ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) ने हमेशा भारत के लिए खेलना ही सबसे बड़ा गौरव समझा.
  5. मेजर ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) ने लगातार 3 ओलंपिक में भारत को हॉकी का स्वर्ण पदक दिलाया. उन्‍होंने अपने कैरियर में अंग्रेजों के खिलाफ 1000 से अधिक गोल दागे.
  6. बर्लिन ओलंपिक के हॉकी का फाइनल भारत और जर्मनी के बीच 14 अगस्त 1936 को खेला जाना था, लेकिन उस दिन लगातार बारिश की वजह से मैच अगले दिन 15 अगस्त को खेला गया. स्‍टेडियम में उस दिन जर्मन तानाशाह हिटलर भी मौजूद था.
  7. मेजर ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) ने नंगे पैर खेल कर जर्मनी को धूल चटाई जिसके बाद हिटलर जैसा तानाशाह भी उनका मुरीद बना गया.
  8. तानाशाह हिटलर ने मेजर ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) को जर्मनी की ओर से खेलने और बदले में अपनी सेना में उच्च पद पर आसीन होने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन उन्होंने हिटलर के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था. हिटलर ने ही मेजर ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) को हॉकी के जादूगर की उपाधि दी थी.
  9. 1932 में भारत ने 37 मैच में 338 गोल किए, जिसमें 133 गोल अकेले ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) ने किए थे. 1928 में एम्सटर्डम में खेले गए ओलंपिक खेलों में ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) ने भारत की ओर से सबसे ज्यादा 14 गोल किए थे. एक स्थानीय समाचार पत्र में लिखा था- यह हॉकी नहीं बल्कि जादू था.
  10. मेजर ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) रात को प्रैक्टिस किया करते थे. उनके प्रैक्टिस का समय चांद निकलने के साथ शुरू होता था. इस कारण उनके साथी उन्हें चांद कहने लगे.
  11. एक सूबेदार मेजर तिवारी ने ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) को हॉकी खेलने के लिए प्रेरित किया. मेजर तिवारी एक हॉकी खिलाड़ी थे. उनकी देख-रेख में फिर ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) हॉकी खेलने लगे और देखते ही देखते वह हॉकी के जादूगर बन गए.
  12. साल 1922 से 1926 तक ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) सेना टीम के लिए हॉकी खेलते थे. इस दौरान रेजीमेंट के टूर्नामेंट में धमाल मचा रहे थे उनकी टीम ने 18 मैच जीते, 2 मैच ड्रॉ हुए और सिर्फ 1 मैच हारे थे. ऐसे में उन्हें भारतीय सेना की टीम में जगह मिल गई.
  13. साल 1928 में इंडियन हॉकी फेडरेशन ने एमस्टरडर्म में होने वाले ओलंपिक के लिए भारतीय टीम का चयन करने के लिए टूर्नामेंट का आयोजन किया. जिसमें पांच टीमों ने हिस्सा लिया.
  14. सेना ने उन्हें यूनाइटेड प्रोविंस की तरफ से टूर्नामेंट में भाग लेने की अनुमति दे दी. टूर्नामेंट में अपने शानदार खेल के जरिए ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा. इसके बाद उन्हें ओलंपिक में भाग लेने वाली टीम में जगह मिल गई.
  15. 1928, 1932 और 1936 के तीनों मुकाबलों में भारतीय टीम का नेतृत्व हॉकी के जादूगर नाम से प्रसिद्ध मेजर ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) ने किया. 1932 के ओलपिंक में हुए 37 मैचों में भारत द्वारा किए गए 330 गोल में ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) ने अकेले 133 गोल किए थे. 1948 में 43 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतरराष्‍ट्रीय हॉकी को अलविदा कहा था.
  16. मेजर ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) ने लगातार तीन ओलंपिक में भारत को हॉकी का स्वर्ण पदक दिलाया. मेजर ध्यानंचन ने अपने हॉकी कैरियर में अंग्रेजों के खिलाफ 1000 से अधिक गोल दागे.
  17. 17 मई, 1928 को भारतीय राष्ट्रीय हॉकी टीम ने ऑस्ट्रिया के खिलाफ़ अपना ओलम्पिक डेब्यू किया, जिसमें चंद ने 3 गोल करके 6-0 से जीत दर्ज की. ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) ने 1928 के एम्स्टर्डम ओलंपिक में सबसे अधिक गोल किए. उन्होंने 14 गोल किए.
  18. लॉस एंजिल्स ओलंपिक के दौरान, चंद ने अपने भाई रूप के साथ मिलकर भारत के 35 गोलों में से 25 गोल किए. बर्लिन ओलंपिक के दौरान, चांद को एक बार फिर बिना औपचारिकताओं के चुना गया. चांद ने 3 गोल किए, दारा ने 2 और रूप सिंह, तपसेल और जाफर ने एक-एक गोल कर जर्मनी को 8-1 के फाइनल में पहुंचाया.
  19. उन्होंने अपने करियर में 400 से अधिक गोल 1926 से 1948 तक किए और 1956 में 51 वर्ष की आयु में सेना से सेवानिवृत्त हुए.
  20. उन्होंने अपनी सेवानिवृत्ति के समय मेजर का पद संभाला. चंद की आत्मकथा, लक्ष्य! को स्पोर्ट एंड पेस्टाइम, मद्रास ने 1952 में प्रकाशित किया था.
  21. भारत सरकार ने उनके सम्मान में 2002 में ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) राष्ट्रीय स्टेडियम दिल्ली का नाम बदलकर नेशनल स्टेडियम कर दिया.
  22. दो बार के ओलंपिक चैंपियन केशव दत्त उनकी मजबूत कलाईयों ओर ड्रिब्लिंग के कायल थे. वो उस ढंग से हॉकी के मैदान को देख सकते थे, जैसे शतरंज का खिलाड़ी चेस बोर्ड को देखता है.
  23. 1947 के पूर्वी अफ्रीका के दौरे के दौरान उन्होंने केडी सिंह बाबू को गेंद पास करने के बाद अपने ही गोल की तरफ अपना मुंह मोड़ लिया और बाबू की तरफ देखा तक नहीं. जब उनसे बाद में उनकी इस अजीब सी हरकत का कारण पूछा गया तो उनका जवाब था, "अगर उस पास पर भी बाबू गोल नहीं मार पाते तो उन्हें मेरी टीम में रहने का कोई हक नहीं था."
  24. 1968 में भारतीय ओलंपिक टीम के कप्तान रहे गुरुबख़्श सिंह के मुताबिक 1959 में भी जब ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) 54 साल के हो चले थे, भारतीय हॉकी टीम का कोई भी खिलाड़ी बुली में उनसे गेंद नहीं छीन सकता था. 1936 के ओलंपिक खेल शुरू होने से पहले एक अभ्यास मैच में भारतीय टीम जर्मनी से 4-1 से हार गई.
  25. ध्यान चंद अपनी आत्मकथा 'गोल' में लिखते हैं, "मैं जब तक जीवित रहूंगा इस हार को कभी नहीं भूलूंगा. इस हार ने हमें इतना हिला कर रख दिया कि हम पूरी रात सो नहीं पाए. हमने तय किया कि इनसाइड राइट पर खेलने के लिए आईएनएस दारा को तुरंत भारत से हवाई जहाज़ से बर्लिन बुलाया जाए."
  26. बर्लिन के हॉकी स्टेडियम में उस दिन 40,000 लोग फाइनल देखने के लिए मौजूद थे. देखने वालों में बड़ौदा के महाराजा और भोपाल की बेगम के साथ साथ जर्मन नेतृत्व के चोटी के लोग मौजूद थे. ताज्जुब ये था कि जर्मन खिलाड़ियों ने भारत की तरह छोटे छोटे पासों से खेलने की तकनीक अपना रखी थी. हाफ टाइम तक भारत सिर्फ एक गोल से आगे था.
  27. जर्मनी के गोलकीपर की हॉकी से ध्यान चंद का दांत टूट गया. उपचार के बाद मैदान में वापस आने के बाद ध्यान चंद ने खिलाड़ियों को निर्देश दिए कि अब कोई गोल न मारा जाए. सिर्फ जर्मन खिलाड़ियों को ये दिखाया जाए कि गेंद पर नियंत्रण कैसे किया जाता है."
  28. फिल्म अभिनेता पृथ्वीराज कपूर ध्‍यानचंद (Major Dhyanchand) के फैन थे. एक बार मुंबई में हो रहे एक मैच में वो अपने साथ नामी गायक कुंदन लाल सहगल को ले आए. हाफ टाइम तक कोई गोल नहीं हो पाया. सहगल ने कहा कि हमने दोनों भाइयों का बहुत नाम सुना है. मुझे ताज्जुब है कि आप में से कोई आधे समय तक एक गोल भी नहीं कर पाया. रूप सिंह ने तब सहगल से पूछा कि क्या हम जितने गोल मारे उतने गाने हमें आप सुनाएंगे? सहगल राजी हो गए. दूसरे हाफ में दोनों भाइयों ने मिल कर 12 गोल दागे.
  29. सहगल एक बार खुद अपनी कार में उस जगह पहुंचे जहां उनकी टीम ठहरी हुई थी और उन्होंने उनके लिए 14 गाने गाए. न सिर्फ गाने गाए बल्कि उन्होंने हर खिलाड़ी को एक-एक घड़ी भी भेंट की.

Source : दृगराज मद्धेशिया

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