एक पहलवान को देश के खेल प्रेमियों की आशाओं पर खड़ा उतरने के लिए वर्षो की मेहनत और त्याग के बाद ओलिंपिक में कुछ ही मिनट मिलते हैं. जिसमें वो देश का नाम रोशन कर सके. टोक्यो में देश के कई अच्छे पहलवान व मुक्केबाज पदक से चूक गए. लेकिन चोटिल होने के बाद भी भारत का पहलवान 65 किग्रा में देश का नाम रोशन करने में कामयाब रहा. और वो हैं बजरंग पुनिया (Bajrang Punia). जरा इस विडियो को देखिए. कैसे बजरंग पुनिया खेत में काम कर रहे हैं. यही तो मेहनत है जो आगे चलकर रंग लाई है.
टोक्यो ओलंपिक में कुश्ती में ब्रांज मेडल जीतकर देश का नाम रोशन करने वाले पहलवान बजरंग पूनिया जब घर लोटे तब उनके आवास सोनीपत में शानदार स्वागत हुआ. लोगों ने उन्हें कंधे पर उठा लिया. ये विडियो एक संदेश देता है कि आपको अगर कामयाबी चूमनी है तो मेहनत जम कर करनी ही होगी.
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आपको बता दें कि बजरंग पूनिया पिछले सात से आठ सालों से भारत के ऐसे पहलवान रहे हैं. जिन्होंने इंटरनेशनल लेवल पर लगातार कामयाबी हासिल की है. इसलिए टोक्यो में उन्हें भारत के लिए सबसे अच्छा दावेदार माना जा रहा था. हरियाणा के झज्जर ज़िले के कुडन गांव में मिट्टी के अखाड़ों में पूनिया ने सात साल की उम्र में जाना शुरू कर दिया था. उनके पिता भी पहलवानी करते थे लिहाजा घर वालों ने रोक टोक नहीं की.
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लेकिन गांवों के मिट्टी के अखाड़ों में जहां मिट्टी के कारण पहलवानों को काफ़ी मदद मिलती है और मैट की कुश्ती एकदम अलग होती है. मिट्टी के आखाड़ों में बेहतरीन करने वाले पहलवानों को भी मैट पर कुश्ती के गुर सीखने होते हैं. लिहाजा 12 साल की उम्र में वे पहलवान सतपाल से कुश्ती के गुर सीखने दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम पहुंचे.
एक बात और कि रवि दहिया के मेडल जीतने के बाद उनके ऊपर कामयाबी का दबाव बढ़ा होगा, लेकिन वे ऐसे खिलाड़ी हैं जो दबावों में निखर कर आते हैं. लेकिन सेमीफ़ाइनल में अपने से दमदार पहलवान के सामने वे पिछड़ने के बाद वापसी नहीं कर सके. लेकिन इसके बावजूद बचपन के सपने और अपने गुरु योगेश्वर दत्त के जैसे चैंपियन बनने का सपना उन्होंने टोक्यो ओलंपिक में मेडल हासिल करके पूरा कर दिखाया है. अब पूरे देश की उम्मीद यही है कि पेरिस ओलंपिक में बजरंग पुनिया अपने पदक का रंग बदलें और देश का नाम रोशन करें.
HIGHLIGHTS
- 12 साल की उम्र में वे पहलवान सतपाल से कुश्ती के गुर सीखने दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम पहुंचे
- बजरंग पुनिया खेत में काम कर रहे हैं. यही तो मेहनत है जो आगे चलकर रंग लाई है