महज एक साल की उम्र में गलत इलाज से एक पैर खराब हो गया. बड़े हुए तो पैर खराब होने के कारण घर वाले खेलने नहीं देते थे. रैकेट खरीदने के पैसे नहीं थे तो छोटी से उम्र में दूसरों के घरों में पेंट करने, पीओपी का काम और दूसरे के खेतों में मटर तोड़ने का काम करने लगे लेकिन कहते हैं ना, अगर हिम्मत से पत्थर उछाला जाए तो आसमान में भी छेद हो सकता है. इन हालातों में भी पैरालंपिक में भारत को पदक दिलाया. बात हो रही है भारत के पैरालंपियन मनोज सरकार की. 1990 में उत्तराखंड के रुद्रपुर जिले में जन्मे मनोज सरकार ने इस बार टोक्यो पैरालंपिक खेलों में कांस्य पदक जीता है. उनकी सफलता से पूरा देश गदगद है. एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मिलकर बधाई दी, वहीं उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी प्रशंसा की है लेकिन मनोज सरकार की राह मुश्किलों से भरी थी.
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उनकी उम्र महज एक साल की थी कि उनके पैरों में कुछ समस्या हुई. घरवालों ने डॉक्टर को दिखाया मगर गलत इंजेक्शन के कारण एक पैर खराब हो गया. वह ठीक से चल भी नहीं पाते थे. थोड़े बड़े हुए तो स्कूल टूर्नामेंट में बच्चों को बैडमिंटन खेलते मनोज भी खेलने पहुंचे. लेकिन एक पैर में खराबी और रैकेट नहीं होने की वजह से टीचर ने खेलने की अनुमति नहीं दी. अगली बार उन्होंने अपने एक जूनियर से उसका रैकेट उधार मांगा और किसी तरह खेलने की परमिशन ली. मनोज ने खेलना शुरू किया तो भी आगे बढ़ते ही गए.
इसके बाद उनकी मां ने घर के खर्च से पैसे बचाकर एक रैकेट लाकर दिया, हालांकि आगे के बड़े कंपटीशन के लिए अच्छे रैकेट चाहिए थे. ऐसे में दूसरों के घर पेंट और पीओपी का काम करने लगे. कई बाद दूसरों के खेत में मजदूर बनकर मटर तोड़ने का काम भी किया. घरवाले पैर खराब होने की वजह से मना करते थे लेकिन मनोज के सिर पर एक ही जुनून सवार था कि उन्हें सफल होना है.
कमाल की बात थी कि वह एक पैर खराब होने के बावजूद नॉर्मल कैटेगरी में यानी सामान्य लोगों संग खेलते थे. वह जिला स्तर तक खेलने लगे और एक बार अल्मोड़ा में खेलने का मौका मिला. वहां भारत के टॉप रैंक के खिलाड़ी लक्ष्य सेन के पिता डीके सेन ने उन्हें खेलते देखा. डीके सेन ने उन्हें पैरा कैटेगरी के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि जब तुम नॉर्मल कैटेगरी में जीत रहे हो तो पैरा कैटेगरी में तो कमाल कर दोगे.
इसके बाद मनोज सरकार ने पैराबैडमिंटन कोच गौरव खन्ना से कोचिंग लेनी शुरू की. धीरे-धीरे सफलता के झंडे गाड़ने शुरू किए. उन्होंने साल 2013, 2015 औऱ साल 2019 में वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता. 2017 में भी वर्ल्ड चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीता. पैरालंपिक के लिए क्वालिफाई किया था लेकिन मुसीबतों ने यहां भी पीछा नहीं छोड़ा. इसी साल पहले उनके पिता और फिर मां दुनिया छोड़कर चले गए. मनोज आर्थिक मुसीबतों से भी घिरे थे लेकिन साई, गोस्पोर्ट्स और बीपीसीएल जैसी संस्थाओं ने उनकी मदद की और वह सारे गम भुलाकर टोक्यो पैरालंपिक पहुंचे जहां उन्होंने कांस्य पदक जीतकर देश का सिर गर्व से ऊँचा कर दिया.
HIGHLIGHTS
- गलत इलाज के कारण खराब हो गया पैर
- दूसरों के खेत में मटर तोड़कर कमाए पैसे
- टोक्यो ओलंपिक में किया कमाल
Source : News Nation Bureau