आज एक मार्च है और एक मार्च को ही एक ऐसी लड़की का जन्म हुआ, जिसने परिवार और देश का नाम पूरी दुनिया में रोशन करने का काम किया है. जी हां, हम बात कर रहे हैं भारतीय महिला मुक्केबाज मैरीकॉम की. मैरीकॉम को भारत में शायद ही कोई हो जो न जानता हो, चाहे वे खेलों में दिलचस्पी रखता हो अथवा न रखता हो. मैरी कॉम छह बार वर्ल्ड एमेच्योर बॉक्सिंग चैंपियन बनने वाली अकेली भारतीय हैं. इसके साथ ही विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के भी वे आठ खिताब जीत चुकी हैं. पांच बार की विश्व चैंपियन रही एमसी मैरी कॉम एक बार फिर ओलंपिक की तैयारी में जुटी हैं.
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मैरी कॉम पर एक फिल्म भी बन चुकी है. जिसमें बॉलीवुड की दिग्गज अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने पर्दे पर उनके जीवन, संघर्ष और सफलता को बाखूबी उतरा है. मैरी कॉम बीते एक दशक से भारतीय मुक्केबाजी का चेहरा हैं. उन्हें सर्वकालिक महान एमेच्योर मुक्केबाजों में गिना जाता है. हालांकि वह इस बात को लेकर हैरान होती हैं कि वह खेल की दुनिया में कैसे आ गईं. मैरी कॉम ने पिछले दिनों एक इंटरव्यू में कहा था कि उनकी हमेशा से खेलों में रुचि थी, लेकिन वे खेलों के महत्व और इसके फायदे को नहीं जानती थी. उन्होंने बताया था कि मुझे अपने गांव में लड़कों के साथ खेलना पसंद था क्योंकि लड़कियां तो कभी खेलती नहीं थीं. मेरे बचपन की स्थिति अभी की स्थिति से काफी अलग थी. उस समय सिर्फ लड़के ही खेला करते थे.
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मैरी कॉम ने इंटरव्यू के दौरान कहा था कि मुझे लगता है कि भगवान ने मुझे खेल के लिए चुना था क्योंकि मेरे खेल में आने और अपनी पूरी जिंदगी खेल को देने का कोई और कारण नहीं हो सकता. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं इस तरह का करियर बनाऊंगी. धीरे-धीरे मैं खेलों का महत्व समझने लगी कि अगर आप यहां अच्छा करेंगे तो आपको नौकरी के ज्यादा मौके मिलेंगे. अगर आप खेलों में कामयाब हो तो जिंदगी में भी कामयाब होगे. मैरी कॉम ने कहा कि जब उन्होंने शुरुआत की थी तो महिला मुक्केबाजों की कमी थी.
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बॉक्सिंग रिंग में मैरी कॉम उतर गई तो फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. हालांकि एक महिला होने के नाते उनका सफर आसान नहीं था, लेकिन इसके बाद भी उन्होंने अपनी मेहनत और प्रतिभा के बल पर रास्ते को आसान किया और लगातार आगे ही बढ़ती चली गईं. दिग्गज मुक्केबाज मैरी कॉम ने कहा था कि जिस खेल में वे हैं, वो पुरुष प्रधान है. यह आमतौर पर पुरुषों का खेल समझा जाता है. इसलिए जब उन्होंने मुक्केबाजी की शुरुआत की थी तो मेरे लिए यह काफी मुश्किल था. मेरे अलावा एक या दो लड़कियां ट्रेनिंग कर रही थीं, इसलिए मुझे लड़कों के साथ ट्रेनिंग करनी पड़ी. मैं सिर्फ इतना कहना चाहती हूं कि मुक्केबाजी सिर्फ पुरुषों का खेल नहीं है. अगर पुरुष खेल सकते हैं तो महिला भी खेल सकती हैं.
Source : Sports Desk