Advertisment

1980 मास्को ओलंपिक में आखिर सिलवानुस डुंगडुंग ने कैसे दिलाया भारत को गोल्ड

झारखंड की राजधानी रांची से करीब 150 किलोमीटर दूर बसा सिमडेगा जिला अपनी हॉकी के लिए मशहूर है। सिमडेगा के ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट सिलवानुस डुंगडुंग को मेजर ध्यानचंद लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा जा चुका है।

author-image
desh deepak
एडिट
New Update
1980 मास्को ओलंपिक में आखिर सिलवानुस डुंगडुंग ने कैसे दिलाया भारत को गोल्ड

गोल्ड मेडलिस्ट सिलवानुस डुंगडुंग (फोटो ग्रैब-नर्सरी ऑफ हॉकी फिल्म)

Advertisment

झारखंड की राजधानी रांची से करीब 150 किलोमीटर दूर बसा सिमडेगा जिला अपनी हॉकी के लिए मशहूर है। सिमडेगा के ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट सिलवानुस डुंगडुंग को मेजर ध्यानचंद लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा जा चुका है। डुंगडुंग ने 'नर्सरी ऑफ हॉकी' शॉर्ट फिल्म में बताया कि कैसे उन्होंने कठिन परिस्थितियों में हॉकी को सीखा और कैसे 1980 में सुविधाओं के अभाव के बाद भी मास्को ओलंपिक में भारत को गोल्ड मेडल दिलाया। सिलवानुस आज भी उन दिनों को याद करके खुद का गर्व महसूस करते हैं।

मास्को ओलंपिक 1980 के गोल्ड मेडलिस्ट सिलवानुस डुंगडुंग बताते हैं, 'बचपन से ही अपने बड़ों को जैसे भाई, दादा, पिता और गांव के लोगों को हॉकी खेलते हुए देखा तब मेरे दिल में भी हॉकी खेलने की बात आई। वर्ल्ड कप खेला, एशियन गेम खेला, अब ओलंपिक आया तो मेरी यह सोच थी कि मैं ओलंपिक गेम खेल कर आऊंगा।'

और पढ़ें: ICC टेस्ट रैंकिंग में टॉप पर पहुंचे विराट कोहली, हासिल की बेस्ट करियर रेटिंग

मेजर ध्यान चंद पुरस्कृत डुंगडुंग ने कहा, 'जब मेरा 1980 मास्को ओलंपिक में मेरा चयन हो गया तब मुझे बहुत खुशी हुई। फाइनल में स्पेन के साथ मुकाबला हुआ। दूसरे हाफ में हम 10 मिनट से 3-0 से लीड लिए हुए थे। उसके बाद हमने सोचा कि हम जीत जाएंगे लेकिन स्पेन ने 10 मिनट के अंदर तीन गोल करके बराबर हो गए। इसके बाद मैं दवाब में आ गया और डिफेंस फुल बैक में खेल रहा था। जब भी मुझे बॉल मिला मैंने बॉल को राइट साइड में दिखाकर सेंटर हाफ की तरफ मारा और सेंटर हाफ की तरफ हमारा खिलाड़ी शिवरंगन दास सौरी खेल रहा था उसने बॉल को गोल में डाला उसके बाद रेफरी ने अंतिम शीटी बजाई और हम 4-3 से मैच जीत गए थे। खुशी से मेरे आंख से आंसू गिर गए थे और इसी जीत के साथ मेरी ओलंपिक खेल खेलने की तमन्ना पूरी हो गई।'

डुंगडुंग बताते है कि जब घर वाले गाय चराने के लिए भेज देते थे लेकिन हम नहीं जाते थे और हम लोग गांव से दूर जाकर हॉकी खेला करते थे। जब शाम को घर लौटकर आते थे तो घरवाले कहते थे कि 'बहुत काम करके आया है इसे थाली में हॉकी और गेंद दे दो यही खाएगा।' मेरे ख्याल से आजकल के मां बाप अब ऐसा नहीं बोलते हैं। बल्कि अब खेलने के बढ़ावा दे रहे हैं।

डुंगडुंग ने कहा, बचपन में हॉकी खेलने के लिए बहुत कठिनाईयों का सामना करना पड़ता था। उस समय किसी को हॉकी नहीं मिलती थी और न ही जूते पहनने को मिलते थे। ऐसी कठिनाईयों को पार करके हम दूर-दूर तक खेलने के लिए गए। उस समय हम बिहार में गोट कप और चिकन कप खेलने के लिए रात को जाते थे।

और पढ़ेंः Ind Vs Eng: चौथा टेस्ट मैच होने से पहले जानें साउथैम्पटन स्टेडियम से जुड़े भारतीय टीम के रिकॉर्ड

1984 के ओलंपियंन मनोहर टोपनो का कहना है, 'सिमडेगा की तरफ जितने भी बच्चे हॉकी खेल रहे हैं सभी के मां बाप उन्हें प्रेरित कर रहे हैं। अगर इसी तरह हर मां बाप अपने बच्चे को प्रेरित करे तो वह हॉकी खेलेगा ही और नाम कमाएगा।'

Source : News Nation Bureau

Jharkhand Simdega sylvanus dungdung sylvanus dungdung gold medalist major dhyan chand awardee sylvanus dungdung dhyanchand awardee 1980 olympian gold medalist history of sylvanus dungdung simdega hockey player
Advertisment
Advertisment
Advertisment