बीते दिनों खबर आई कि 'खेलो इंडिया अभियान' को सफल बनाने के लिए 10 लाख से ज्यादा लोगों ने शपथ ली। बताया कि 'खेलो इंडिया एंथम' को भी 20 करोड़ से ज्यादा लोगों ने पसंद किया।
इस कार्यक्रम के तहत 10 से 18 साल के करीब 20 करोड़ बच्चों को खेलों से जोड़ा जाएगा। यकीनन पहल बेहद जरूरी है लेकिन इस बार पेश हुए आम बजट में वित्त मंत्री अरूण जेटली की इस पर मेहरबानी ना के बराबर दिखी।
वित्त मंत्री नहीं चाहते कि खेले 'इंडिया'!
खेलो इंडिया अभियान के लिए इस बार वित्त मंत्री अरूण जेटली ने 520 करोड़ रूपए का एलान किया। पिछले साल के बजट में ये रकम महज 350 करोड़ थी।बेशक इस बार काफी इजाफा हुआ है। लेकिन बुनियादी सवाल ये कि इस आवंटन से होगा क्या?
520 करोड़ रूपया खर्च करके 20 करोड़ बच्चों को खेल से जोड़ने का सीधा मतलब हुआ कि सरकार प्रति बच्चा खर्च करेगी औसतन सालाना 25 रूपए। या कहें 2 रूपए प्रति महीना या कहें 6 पैसे प्रति दिन। शायद ही इतनी रकम में कोई बच्चा खेल से जुड़ सके।
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पहले भी खेलों के साथ होता रहा है खेल।
खेलों को बढ़ावा देने के मकसद से ही साल 2008 में ‘पायका’ नाम की योजना शुरू हुई। आवंटन हुआ महज 92 करोड़, यानि 6 लाख गांव के लिए औसतन 1500 रूपए।
दावा किया गया कि ‘पायका’ के तहत ना सिर्फ 60 हजार से ज्यादा खेल के मैदान विकसित किए गए बल्कि 2 करोड़ से ज्यादा खिलाड़ियों को ट्रेनिंग भी दी गई। तो क्या वाकई हर 10 गांव के बीच एक खेल का मैदान है? क्या उन 2 करोड़ खिलाड़ियों के भविष्य सुरक्षित हैं? बेशक ऐसे कई सवाल अधूरे हैं। बाद में इसी ‘पायका’ को ‘राजीव गांधी खेल अभियान’ नाम दिया गया और अब वहीं ‘खेलो इंडिया अभियान’ है।
अब शायद अगले साल खेले 'इंडिया'!
आजादी के करीब 37 साल बाद देश में पहली खेल नीति सामने आई। आजादी के करीब 53 साल बाद मुल्क में अलग से खेल मंत्रालय बना। ऐसे में सवाल मुल्क में मौजूद 48 स्पोटर्स फेडरेशन से है, जिन्हें क्रिकेट के मुकाबले बाकी खेलों की बदहाली को समझना होगा।
वैसे इसके लिए ना सिर्फ खेल संघों और खेल की ही पृष्ठभूमि वाले खेल मंत्री को सोचना होगा बल्कि वित्तमंत्री को भी। हालांकिं अब इसके लिए एक साल का लंबा इंतजार ही बचा है।
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Source : Anurag Dixit