Why Do Players Bite Their Medals With Their Teeth? : इंटरनेशनल इवेंट्स में मेडल जीतने के बाद आपने एथलीट्स को उन मेडल्स को दांतों में दबाते देखा होगा.... उन्हें देखकर आपके मन में कभी ना कभी ये सवाल तो आया ही होगा की आखिर ये प्लेयर्स ऐसा करते क्यों हैं? इसके पीछे की कहानी क्या है? तो आइए आज हम इस आर्टिकल में आपको इसकी वजह बताते हैं और ये भी बताएंगे की इस प्रथा की शुरुआत कब और क्यों हुई थी...
मिली जानकारी के मुताबिक, गोल्ड मेडल को दांत से चबाने के पीछे की वजह है, उसकी शुद्धता की जांच. दरअसल, सोना, चांदी बहुत ही नर्म धातु हैं. ऐसे में जब मेडल शुद्ध सोने या चांदी से बनाए जाते थे, तब एथलीट्स उन्हें दांत के नीचे दबाकर ये जांचते थे की क्या वाकई वह शुद्ध धातु से बना है या नहीं.
हालांकि, इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ ओलिंपिक हिस्टोरियन के प्रेसिंडेंट रहे डेविड वलेकीन्स्की ने बताया था कि, ‘मुझे लगता है कि खेल पत्रकार इसे आइकॉनिक तस्वीर की तरह देखते हैं. खिलाड़ी शायद ही कभी खुद से ऐसा करते होंगे.’ उनके बयान से यही समझ आता है की ये कोई प्रथा नहीं है बल्कि फोटो क्लिक कराने का पोज है.
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1912 में आखिरी बार मिला शुद्ध सोने से बना मेडल
सालों पहले एथेंस ओलंपिक से मेडल्स को दांत से काटने की परंपरा शुरू हुई थी. मगर, साल 1912 के स्टॉकहोम ओलंपिक के बाद इसे बंद भी कर दिया गया. असल में, हुआ कुछ ऐसा की स्टॉकहोम ओलंपिक में आखिरी बार खिलाड़ियों को शुद्ध सोने के मेडल्स दिए गए थे, लेकिन इसके बाद से गोल्ड मेडल को पूरा गोल्ड से नहीं बनाया जाता है. बल्कि कुछ प्रतिशत गोल्ड की परत होती है.
इन सभी बातों से समझ आता है की शुरुआत में तो मेडल की प्योरिटी को चेक करने के लिए ही मेडल को दांतों के बीच दबाया जाता था. मगर, वक्त के साथ ये एक ट्रेडिशन बन गया, जिसे एथलीट्स अक्सर फोटो क्लिक कराते वक्त फॉलो करने लगे. सिर्फ मेडल्स को ही नहीं बल्कि टेनिस प्लेयर्स को भी जीतने के बाद ट्रॉफी को दांत लगाते देखा गया है.
Source : Sports Desk