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Assam: अली हिन्दुस्तानी होने का गर्व नहीं महसूस कर पाए, मरने के ढाई साल बाद मिला न्याय, पत्नी ने सुनाई पीड़ा

Rahim Ali: असम निवासी रहम अली मरते दम तक साबित नहीं कर पाए कि वह भारतीय हैं. मरने के ढाई साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने दिया न्याय.

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Mohit Saxena
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हजेरा बीबी अपने पति रहीम अली की तस्वीर दिखाती हुई

हजेरा बीबी अपने पति रहीम अली की तस्वीर दिखाती हुई( Photo Credit : social media)

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असम के निवासी रहम अली मरते दम तक साबित नहीं कर पाए कि वह हिंदुस्तानी हैं. इसके लिए वे 12 साल तक कोर्ट के चक्कर काटते रहे. अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उन्हें न्याय मिला है. उनकी मौत के ढाई साल बाद ‘अवैध बांग्लादेशी अप्रवासी’ होने ठपा हट चुका है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने बीते सप्ताह एक ऐतिहासिक निर्णय में रहीम अली को भारतीय नागरिक घोषित कर ​दिया. रहीम अली को फॉर्नर्स ट्रिब्यूनज (विदेशी न्यायाधिकरण) ने विदेश नागरिक करार दिया था. इसके बाद से वह कोर्ट के चक्कर काट रहे थे. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, असम के नलबाड़ी जिले के काशिमपुर में रहने वाले रहीम अली की 28 दिसंबर, 2021 को 58 साल की आयु में मौत हो गई. ट्रिब्यूनल ने वर्ष 2012 में आदेश देकर उन्हें विदेशी घोषित कर दिया. इसकी वजह यह थी कि वह ट्रिब्यूनल के सामने पेश होकर अपनी भारतीय नारिकता का सबूत नहीं  दे पाए. 

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इस वजह से हुई परेशानी 

रहीम अली का कहना था कि वह काफी बीमार था, इस कारण वह ट्रिब्यूनल में पेश नहीं हो पाए. इस दलील के साथ उन्होंने गुवाहाटी हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. मगर, उन्हें कोई राहत नहीं मिल पाई. रहीम ने फिर आखिरी गुहार सुप्रीम कोर्ट से लगाई. उसने 2017 में दोबारा विदेशी ट्रिब्यूनल को ये तय करने का निर्देश दिया कि वह विदेशी है या नहीं. इसके बाद भी ट्रिब्यूनल ने रहीम की ओर पेश दस्तावेजों के आधार पर उसे विदेशी घोषित कर दिया. दस्तावेजों में स्पेलिंग और तारीख गलत थी. 

इसलिए चल रहा सुप्रीम कोर्ट में मामला 

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में रहीम अली की ओर से पैरवी करने वाले वकील कौशिक चौधरी का कहना है कि निचली कोर्ट के वकील ने उन्हें यह मामला सौंपा था. वे बिना किसी फीस के केस लड़ रहे थे. चौधरी के अनुसार, अली की मौत के बारे में उन्हें पता नहीं  था. इस बात जानकारी उन्हें नहीं थी. उनका कहा है कि पीड़ित पक्ष शिक्षित न नहीं है, इस कारण उन्हें इस तरह की समस्या का सामना करना पड़ा. 

अली के बेटे मोजिबुर रहमान का कहना है कि पिता की मौत के बाद परिवार ने किसी भी वकील से बात नहीं की. वहीं गांव में रह रही अली की 51 वर्षीय पत्नी हाजिरा बीबी ने बताया कि उनकी पूरी कानूनी लड़ाई में उन्हें सबसे बड़ा ये डर था कि एक दिन पुलिस आएगी और उन्हें पकड़कर ले जाएगी. उन्होंने बताया कि काफी दिनों तक वे अपने घर पर नहीं सोए. परिवार का कहना है कि इस मामले में उन्हें आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है. उन्हें केस लड़ने के लिए अपनी जमीन और गायों को बेचना पड़ा. दो बीघा जमीन को गिरवी रखना पड़ा. 

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Source : News Nation Bureau

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