आखिर कार तमाम रस्साकसी के बाद असम में मुख्यमंत्री पद (Assam CM) के लिए हिमंत बिस्व शर्मा (Himant Biswa Sharma) का नाम बीजेपी आलाकमान ने आगे बढ़ा ही दिया है. हिमंत बिस्व शर्मा असम की सियासत का एक ऐसा चेहरा जो हमेशा चर्चा में रहता है. आपको बता दें कि असम की राजनीति में कभी अपने बेबाक बोलों से तो कभी विवादित बयानों से वो लगातार असम की सियासी सुर्खियों में पिछले 20 सालों से बने हुए हैं. इस बार हिमंत बिस्व शर्मा के सुर्खियों में आने की वजह कुछ और ही है आखिर कार वो असम के अगले मुख्यमंत्री (Chief Minister) जो बनने वाले हैं.
हिमंत ने छात्र जीवन में ही राजनीति के गुर सीखे और असम की सियासत में कदम रखते ही छा गए. साल 1991-92 में हिमंत गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज यूनियन सोसाइटी के जनरल सेक्रेटरी रहे थे. साल 2001 में पहली बार वो असम की जालुकबारी सीट से विधानसभा चुनाव लड़े और तब से आज तक असम की सियासत में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा है. पहली बार विधानसभा पहुंचे हिमंत को तरुण गोगोई ने कैबिनेट मंत्री बना दिया गया था. आइए आपको बताते हैं हिमंत बिस्वा शर्मा के राजनीतिक सफर के बारे में.
हिमंत पिछले 20 साल से असम की हर सरकार में रहे मंत्री
साल 2006 और 2011 के विधानसभा चुनावों में भी हिमंत जालुकबारी विधानसभा सीट से ही जीते थे और तरुण गोगोई सरकार में मंत्री भी बने थे. जब साल 2001 में हिमंत पहली बार विधायक बने थे तब से लेकर साल 2016 तक, वो 4 बार विधायक रहे इस दौरान चारो बार कैबिनेट में मंत्री बने रहे. असम में हुए साल 2011 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बड़ी जीत के पीछे हिमंत का बेहद अहम रोल था. इसके बाद साल 2014 में हिमंत की सीएम तरुण गोगोई से खटपट हुई जिसके बाद 21 जुलाई 2014 को हिमंत ने अपने सभी पदों से कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया. मीडिया में आईं खबरों की मानें तो ये कहा जाता है कि हिमंत तरुण गोगोई से इसलिए खटपट हुई क्योंकि वो परिवारवाद को मानते हुए अपने पुत्र गौरव गोगोई को तरजीह देने में लगे हुए थे.
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विरोधी भी हिमंत के व्यक्तित्व की तारीफ करते हैं
हिमंत बिस्वा सर्मा की शख्सियत कुछ ऐसी है कि विरोधी भी उनकी प्रशंसा किए बिना नहीं रह पाते हैं. अभी कुछ दिन पहले एक साक्षात्कार के दौरान कांग्रेस के सहयोगी पार्टी यूडीएफ के नेता बदरुद्दीन अजमल ने भी हिमंत के व्यक्तित्व की प्रशंसा की थी. बदरुद्दीन अजमल ने कहा था कि हिमंत में कुछ तो ऐसा है जिसकी वजह से वो कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही सत्ता के दौरान मंत्री रहे हैं. उन्होंने ये भी कहा था कि कोई भी हिमंत के पास जाए तो वो खाली हाथ नहीं लौटता है. हिमंत) दोस्तों का दोस्त और दुश्मनों का दुश्मन है.
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23 अगस्त 2015 को अमित शाह के घर पर थामा था बीजेपी का दामन
हिमंत बिस्व सरमा तरुण गोगोई से नाराजगी के बाद 23 अगस्त 2015 को भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा था. हिमंंत ने बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के घर पर उनसे मुलाकात की और वहीं पर बीजेपी में शामिल होने का ऐलान किया. इसके बाद बीजेपी ने साल 2016 के विधानसभा चुनाव के लिए हिमंत को असम का संयोजक बना दिया. हिमंत ने भी इस मौके को पूरी तरह से भुनाया और अमित शाह की कसौटी पर खरा उतरते हुए असम में इतिहास रच दिया. इस चुनाव में बीजेपी ने असम से तरुण गोगोई की सरकार को उखाड़ फेंका. यहां पर बीजेपी ने अकेले दम पर 60 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस पार्टी को महज 26 सीटों पर सिमटना पड़ा. बीजेपी की इस जीत में हिमंत बिस्व सरमा का बड़ा योगदान माना गया.
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गुवाहाटी हाईकोर्ट में 5 साल की थी वकालत
हिमंत बिस्व सरमा का जन्म गुवाहाटी के गांधी बस्ती उलूबरी में 1 फरवरी 1969 को हुआ था. हिमंत बिस्व सरमा ने कामरूप अकादमी से अपनी स्कूली पढ़ाई की और साल 1985 में आगे की पढ़ाई के लिए कॉटन कॉलेज गुवाहाटी चले गए. साल 1990 में हिमंत ने स्नातक, 1992 में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की. हिमंत ने सरकारी लॉ कॉलेज से एलएलबी किया और गुवाहाटी कॉलेज से पीएचडी की उपाधि ग्रहण की. इसके बाद हिमंत बिस्व सरमा ने साल 1996 से लेकर साल 2001 तक गुवाहाटी हाईकोर्ट में वकालत की. रिनिकी भुयान हिमंत बिस्व सरमा की जीवन संगिनी हैं उनके दो बच्चे हैं.
HIGHLIGHTS
- असम की सियासत में बड़ा नाम है हिमंत बिस्व सरमा
- सोमवार को हिमंत बिस्व सरमा लेंगे सीएम पद की शपथ
- पिछले 20 सालों से हर सरकार में रहे हैं कैबिनेट मिनिस्टर