बिहार की बात हो और लालू यादव का जिक्र ना हो ये तो हो ही नहीं सकता. लालू यादव आज 76 साल के हो गए हैं. लालू यादव के जन्मदिन के अवसर पर बिहार के आरजेडी अध्यक्ष जगदानंद सिंह के निर्देश पर पार्टी के नेता-कार्यकर्ता भोज का आयोजन किया गया है. सांसदों, विधायकों, मंत्रियों और संगठन के पदाधिकारियों के अतिरिक्त पूर्व सांसदों-विधायकों और पराजित उम्मीदवारों को भी ये निर्देश दिया गया है कि गरीबों-वंचितों को भोज दें और उन्हें ये बताएं कि देश संकट से गुजर रहा है. बहरहाल, लालू बिहार की राजनीति के वो सितारें हैं जिन्हें कभी भी नहीं भुलाया जा सकता.
खूबियां भी और खामियां भी!
अपने देशी अंदाज और बेबाक बोल के लिए जाने जानेवाले लालू यादव में बहुत सारी खूबियां तो हैं ही लेकिन खामियां भी हैं. अगर रेलमंत्री रहने के दौरान लालू यादव ने अच्छा काम किया था तो बिहार में कानून की धज्जियां उनके ही शासनकाल में उड़ी थी. इतना ही नहीं लालू यादव बिहार के चर्चित चारा घोटाला मामले में दोषी भी करार दिए गए थे और काफी समय तक उन्हें सलाखों के पीछे जेल में रहना पड़ा था. इतना ही नहीं उन्हें सीएम रहते हुए अपने पद से इस्तीफा भी देना पड़ा था. लालू यादव को बीजेपी का धुरविरोधी माना जाता है. इसके अलावा लालू यादव अपने चुलबुली अंदाज के लिए भी जाने जाते हैं. इस बात का अंदाजा ऐसे भी लगाया जा सकता है कि वह मजाकिया अंदाज में अपनी बात रख देते हैं और मीडियाकर्मियों को भी उनकी बात बुरी नहीं लगती. छोटे-छोटे बयानों पर भी सियासी दिग्गजों की किरकिरी हो जाती है लेकिन देश की राजनीति के लालू यादव ऐसे नेता हैं जिनके बयानों में देशीपन व दुलार दीखता है. शायद यही कारण हैं कि लालू यादव की डांट फटकार भी लोगों को मजाक लगती है. लालू यादव जमीन से जुड़े नेता हैं और अपने देशी अंदाज के लिए जाने जाते हैं. लालू यादव के जन्म दिन के मौके पर हम आपको लालू यादव के बारे में कुछ खास बातें बताने जा रहे हैं.
- बिहार के पूर्व सीएम लालू यादव की कहानी
- खेत-खलिहान से लेकर संसद तक पहुंचने की कहानी
- लोगों के बीच बैठकर कभी गाने सुनने तो कभी बिरादरी में बैठकर ठहाके लगाने की कहानी
समोसे में आलू और बिहार में लालू का जिक्र न कभी कम हुआ था और न ही कभी कम होगा. अपने चुलबुलेपन की वजह से अक्सर चर्चा में रहनेवाले बिहार के पूर्व सीएम लालू यादव के तमाम किस्से हैं. आम लोगों के बीच जमीन पर बैठक नाच-गाने का आनंद लेने की बात हो.. या विपक्षी नेताओं पर मंच से हमला करने की बात हो.. लालू यादव का चुलबुला अंदाज उनके विरोधियों को खूब भाता रहा है. लालू यादव जम विपक्षियों पर हमला बोलते.. तो उनके विपक्षियों को तो यह समझ तो आता था कि लालू यादव ने उनपर हमला बोला है.. लेकिन जवाब देने से पहले वह भी अपनी हंसी नहीं रोक पाते थे. या फिर यह भी कहना सही होगा कि लालू यादव विपक्षियों को हंसा-हंसाकर मारने का काम करते थे. बिहार के गोपालगंज में एक यादव परिवार में जन्मे यादव ने राजनीति की शुरूआत जयप्रकाश नारायण के जेपी आन्दोलन से की जब वे एक छात्र नेता थे और उस समय के राजनेता सत्येन्द्र नारायण सिन्हा के काफी करीबी रहे थे. 1977 में आपातकाल के पश्चात् हुए लोक सभा चुनाव में लालू यादव जीते और पहली बार 29 साल की उम्र में लोकसभा पहुँचे. 1980 से 1989 तक वे दो बार विधानसभा के सदस्य रहे और विपक्ष के नेता पद पर भी रहे. वे 1990 से 1997 तक बिहार के सीएम रहे. बाद में उन्हें 2004 से 2009 तक केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार में रेल मन्त्री का कार्यभार सौंपा गया. जबकि वे 15वीं लोक सभा में सारण (बिहार) से सांसद थे
- चारा घोटाले की वजह से दामन हुआ दागदार
- चारा घोटाले के कई मामलों में कोर्ट ने पाया दोषी
- सक्रिय राजनीति से होना पड़ा बाहर
- कई बार खानी पड़ी जेल की हवा
लालू यादव को बिहार के बहुचर्चित चारा घोटाला मामले में रांची स्थित केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की अदालत ने पांच साल कारावास की सजा सुनाई थी. इस सजा के लिए उन्हें बिरसा मुण्डा केन्द्रीय कारागार रांची में रखा गया था. केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो के विशेष न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रखा जबकि उन पर कथित चारा घोटाले में भ्रष्टाचार का गम्भीर आरोप सिद्ध हो चुका था. 3 अक्टूबर 2013 को न्यायालय ने उन्हें पाँच साल की कैद और पच्चीस लाख रुपये के जुर्माने की सजा दी. दो महीने तक जेल में रहने के बाद 13 दिसम्बर को लालू प्रसाद को सुप्रीम कोर्ट से बेल मिली. यादव और जनता दल यूनाइटेड नेता जगदीश शर्मा को घोटाला मामले में दोषी करार दिये जाने के बाद लोक सभा से अयोग्य ठहराया गया. इसके बाद राँची जेल में सजा भुगत रहे लालू प्रसाद यादव की लोक सभा की सदस्यता समाप्त कर दी गयी. लोक सभा के महासचिव ने यादव को सदन की सदस्यता के अयोग्य ठहराये जाने की अधिसूचना जारी कर दी. इस अधिसूचना के बाद संसद की सदस्यता गँवाने वाले लालू प्रसाद यादव भारतीय इतिहास में लोक सभा के पहले सांसद हो गये हैं. लालू प्रसाद यादव एक हास्य नेता हैं . इनकी लोकप्रियता इनकी भाषण को लेकर भी है. लालू प्रसाद यादव का भाषण देने का अंदाज कुछ अलग ही है.
- दो बार बिहार के सीएम रहे
- लाल कृष्ण आडवाणी को कराया था गिरफ्तार
- बिहार में लालू की वजह से बढ़ा MY फैक्टर
1990 में लालू बिहार के सीएम बने एवं 1995 में भी भारी बहुमत से विजयी रहे. 23 सितंबर 1990 को, प्रसाद ने राम रथ यात्रा के दौरान समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार किया, और खुद को एक धर्मनिरपेक्ष नेता के रूप में प्रस्तुत किया. 1990 के दशक में आर्थिक मोर्चे पर विश्व बैंक ने अपने कार्य के लिए अपनी पार्टी की सराहना की. 1993 में, प्रसाद ने एक अंग्रेजी भाषा की नीति अपनायी और स्कूल के पाठ्यक्रम में एक भाषा के रूप में अंग्रेजी के पुन: परिचय के लिए प्रेरित किया, इसके विपरीत उत्तर प्रदेश के सीएम मुलायम सिंह यादव, एक और यादव और जाति आधारित राजनीतिज्ञ. अंग्रेजों को विरोध करने की नीति एक विरोधी कुलीन नीति माना गया क्योंकि दोनों यादव नेताओं ने इसी सामाजिक घटकों का प्रतिनिधित्व किया, पिछड़ा जातियां, दलितों और अल्पसंख्यक समुदायों. लालू यादव के जनाधार में एमवाई यानी मुस्लिम और यादव फैक्टर का बड़ा योगदान है और उन्होंने इससे कभी इन्कार भी नहीं किया है.
जुलाई, 1997 में लालू यादव ने जनता दल से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल के नाम से नयी पार्टी बना ली. गिरफ्तारी तय हो जाने के बाद लालू ने मुख्यमन्त्री पद से इस्तीफा दे दिया और अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का मुख्यमन्त्री बनाने का फैसला किया. जब राबड़ी के विश्वास मत हासिल करने में समस्या आयी तो कांग्रेस और झारखण्ड मुक्ति मोर्चा ने उनको समर्थन दे दिया. 1998 में केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनी. दो साल बाद विधानसभा का चुनाव हुआ तो राजद अल्पमत में आ गई. सात दिनों के लिये नीतीश कुमार की सरकार बनी परन्तु वह चल नहीं पायी. एक बार फ़िर राबड़ी देवी मुख्यमन्त्री बनीं. कांग्रेस के 22 विधायक उनकी सरकार में मन्त्री बने.
- लालू यादव के कार्यकाल में घाटे से उबरी भारतीय रेल
- 2004 लोकसभा चुनाव में लालू यादव फिर बने ‘किंग मेकर’
- बिहार की सड़कों को हेमा मालिनी के गाल की तरह चिकना बनाने का कर डाले थे वादा
2004 के लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद एक बार फिर "किंग मेकर" की भूमिका में आये और रेलमन्त्री बने. यादव के कार्यकाल में ही दशकों से घाटे में चल रही रेल सेवा फिर से फायदे में आई. भारत के सभी प्रमुख प्रबन्धन संस्थानों के साथ-साथ दुनिया भर के बिजनेस स्कूलों में लालू यादव के कुशल प्रबन्धन से हुआ भारतीय रेलवे का कायाकल्प एक शोध का विषय बन गया. लेकिन अगले ही साल 2005 में बिहार विधानसभा चुनाव में राजद सरकार हार गई और 2009 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी के केवल चार सांसद ही जीत सके. इसका अंजाम यह हुआ कि लालू को केन्द्र सरकार में जगह नहीं मिली. समय-समय पर लालू को बचाने वाली कांग्रेस भी इस बार उन्हें नहीं बचा नहीं पायी. दागी जन प्रतिनिधियों को बचाने वाला अध्यादेश खटाई में पड़ गया और इस तरह लालू का राजनीतिक भविष्य अधर में लटक गया. अपनी बात कहने का लालू यादव का खास अन्दाज है. बिहार की सड़कों को हेमा मालिनी के गालों की तरह बनाने का वादा हो या रेलवे में कुल्हड़ की शुरुआत, लालू यादव हमेशा ही सुर्खियों में रहे. इन्टरनेट पर लालू यादव के लतीफों का दौर भी खूब चला.
Source : News State Bihar Jharkhand