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लगभग पूरे बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था 'ठेले' पर है, ये रहे 4 बड़े सबूत

वैसे ये कोई पहला मामला नहीं था जब इस तरह की तस्वीर बिहार से खासकर स्वास्थ्य महकमें से सामने आई हो. हम आपके सामने तीन और सबूत रख रहे हैं, जब बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खुली और वह 'ठेले' पर दिखाई दी.

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Shailendra Shukla
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लगभग पूरे बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था 'ठेले' पर है, ये रहे 4 बड़े सबूत

ठेले पर स्वास्थ्य व्यवस्था( Photo Credit : न्यूज स्टेट बिहार झारखंड)

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आज एक बार फिर से बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था ठेले पर दिखाई पड़ा है. मामला नवादा जिले का जहां एक शख्स को जब एंबुलेंस सुविधा नहीं मिली तो वह अपनी बीमार मां को ठेले पर ही लेकर सदर अस्पताल पहुंचा. आरोप तो यह भी है कि टॉल फ्री नंबर पर फोन करने के बाद भी उसे एंबुलेंस सेवा नहीं मिल पाई. मजबूर होकर शख्स ठेले पर ही बीमार मां को लेकर इलाज कराने के लिए सदर अस्पताल पहुंच जाता है. लेकिन उसकी मुसीबतें अभी कम नहीं होने वाली थी. यहां ना तो डॉक्टर मिले और ना ही मां को डॉक्टर के पास तक ले जाने के लिए स्ट्रेचर मिला. हद तो तब हो गई जब बुजुर्ग महिला को देखने के लिए अस्पताल में कोई डॉक्टर भी नहीं मिला. वैसे ये कोई पहला मामला नहीं था जब इस तरह की तस्वीर बिहार से खासकर स्वास्थ्य महकमें से सामने आई हो. हम आपके सामने तीन और सबूत रख रहे हैं, जब बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खुली और वह 'ठेले' पर दिखाई दी.

1. नवादा में स्वास्थ्य व्यवस्था ठेले पर दिनांक 19 जून 2023

ताजा मामला नवादा जिले के सदर अस्पताल का है, जहां सिरोमनी नाम की महिला कई दिनों से बीमार थी. जब महिला की अचानक तबीयत ज्यादा खराब होने लगी तो परिजन आनन-फानन में टोल फ्री नंबर पर कॉल किया, लेकिन बार-बार कॉल करने पर भी नंबर नहीं मिला. इस बीच मरीज की हालत और खराब होती जा रही थी. जिसके बाद मजबूर होकर परिजन मरीज को अस्पताल लेकर आए.

परिजन करीब 2 किलोमीटर तक ठेले को धक्का देकर मरीज को अस्पताल तक लाए. जिसके बाद उसे भर्ती किया गया. हालांकि डॉक्टरों ने मरीज की हालत को देख उसे दूसरे अस्पताल में रेफर कर दिया. दूसरे अस्पताल में भर्ती कराया गया इससे जाहिर है कि मरीज की हालत गंभीर थी. ऐसे में सवाल उठता है कि अगर उसे अस्पताल पहुंचने में देर हो जाती तो कौन जिम्मेदार होता? क्या टोल फ्री नंबर सिर्फ खानापूर्ति के लिए है? 

2. रोहतास में ठेले पर स्वास्थ्य व्यवस्था: 09 अप्रैल 2023 

रोहतास में भी दिनांक 09 अप्रैल 2023 को स्वास्थ्य व्यवस्था की तस्वीर ठेले पर नजर आई थी. बिहार के उपमुख्यमंत्री सह स्वास्थ्य मंत्री तेजस्वी यादव ने शपथ लेते ही 60 दिनों के भीतर स्वास्थ्य व्यवस्था का कायाकल्प का दावा किया था लेकिन रोहतास से अक्सर ऐसी तस्वीर सामने आती है कि स्वास्थ्य सिस्टम का मजाक बन जाता है. रोहतास जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र करगहर में एक टीबी के मरीज को गंभीर स्थिति होने के कारण अस्पताल में एक ठेले पर मरीज को परिजनों के द्वारा लाया गया था. परिजनों के मुताबिक उन्होंने टोल फ्री नंबर पर काफी देर तक ट्राई करने के बाद भी उन्हें एंबुलेंस नहीं मिला. मरीज की हालत गंभीर हो रही थी. इसलिए उसे तीन किलोमीटर धक्का देकर ठेले पर लादकर लाना पड़ा. परिजन ठेला लेकर जब अस्पताल पहुंचे तो वहां भी अस्पताल परिसर में ले जाने के लिए स्ट्रेचर नहीं मिला. मरीज की हालत इतनी खराब थी कि परिजन ठेला को सीधे अस्पताल में लेकर घुस गए. इसके बाद डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी मरीज का ईलाज करने में जुटे.

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दरअसल, करगहर प्रखंड क्षेत्र के डिभियाँ निवासी जोखन पासवान की अचानक से तबीयत बिगड़ गई थी. परिजनों ने कई बार एम्बुलेंस के लिए कॉल किया पर संपर्क नही हो पाया था. मरीज की बिगड़ती तबीयत देख आनन-फानन में परिजनों ने उसे एक ठेले पर लाद कर अस्पताल पहुंचे थे.  वहीं प्राथमिक उपचार के बाद डॉक्टरों ने मरीज को बेहतर ईलाज के लिए सासाराम के सदर अस्पताल रेफर कर दिया था. कुल मिलाकर यहां भी स्वास्थ्य महकमे की व्यवस्था ठेले पर दिखी थी.

3. भागलपुर में ठेले पर स्वास्थ्य व्यवस्था : 02 जून 2023 

भागलपुर में भी ठेले पर स्वास्थ्य व्यवस्था की तस्वीर 02 जून 2023 को सामने आई थी. दरअसल, यहां रेलवे अस्पताल से एक लावारिश शव को पोस्टमार्टम के लिए एंबुलेंस की बजाय ठेले पर भेजा जाता है. हद तो तब हो जाती है कि जिस ठेले से शव को पोस्टमार्टम के लिए ले जाया जा रहा था उस ठेले के पहियों में ना तो हवा थी और ना ही उसमें ब्रेक था. इतना ही नहीं ठेला चलाने वाले मजदूरों के मुंह से शराब की बदबू आ रही है. कुल मिलाकर ये कहना सही होगा कि तस्वीरों में दिख रहा शव लावारिश शव नहीं है बल्कि भागलपुर स्वास्थ्य महकमें का 'शव' है.

अज्ञात शव के साथ ना तो कोई रेलवे स्वास्थ्य विभाग के कर्मी थे और ना ही रेलवे पुलिस प्रशासन के कोई लोग. उत्तर प्रदेश के रहने वाले कृष्ण कुमार भागलपुर में रहकर ठेला चलाने का काम करते हैं और जितने भी रेलवे में अज्ञात शव मिलते हैं दो पैसों के लिए उसे अपने ठेले पर लेकर पोस्टमार्टम हाउस तक पहुंचाता है. ठेला चालक और उसके सहयोगी का कहना है कि रेलवे के स्वास्थ्य विभाग में एंबुलेंस ना होने की वजह से उनकी कमाई होती है. शवों को पोस्टमार्टम हाईस तक पहुंचाना पड़ता है और उसके बदले चंद पैसे मेहनताना के रूप में मिल जाते हैं. 

ये भी पढ़ें-Bihar News: नवादा में 'ठेले' पर स्वास्थ्य व्यवस्था, फिर सवालों में हेल्थ सिस्टम

4. सुपौल में ठेले पर स्वास्थ्य व्यवस्था : 08 जून 2023

बिहार में सरकार स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर कितने भी दावे क्यों ना कर ले, लेकिन धरातल पर हकीकत तस्वीरों से ही बयां हो जाती है. ठेले पर स्वास्थ्य व्यवस्था की ऐसी ही तस्वीर सामने सुपौल से दिनांक 08 जून 2023 को भी सामने आई थी. यहां रेफर होने के चार घंटे बाद भी नहीं मरीज को एंबुलेंस नहीं मिलता. पेशे से सफाई कर्मी महादेव राउत को इलाज के लिए सुपौल सदर अस्पताल लाया गया था. परिजन उसे इलाज के लिए सदर अस्पताल लेकर पहुंचे थे. यहां जांच के बाद मौजूद डॉक्टर ने बेहतर इलाज के लिए करीब दूसरे अस्पताल में रेफर कर दिया, लेकिन 4 घंटे इंतजार के बाद भी परिजनों को सरकारी एंबुलेंस नहीं मिल पाई.

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हालांकि, इस दौरान अस्पताल परिसर में ही एंबुलेंस खड़ी रही, लेकिन परिजनों की मानें तो पूछने पर उन्हें यही बताया गया कि ये किसी कैंसर पेशेंट के लिए रिजर्व है. लिहाजा महादलित परिवार को घंटों तक अस्पताल परिसर में ही मरीज को ठेले पर रख कर एंबुलेंस का इंतजार करना पड़ा था. इससे पहले भी सुपौल सदर अस्पताल में इस तरह की तस्वीरें सामने आ चुकी हैं.

HIGHLIGHTS

  • डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव की उम्मीदों पर पानी फेर रहे सदर अस्पताल
  • आम लोगों को नहीं मिल पातीं एंबुलेंस की सेवाएं
  • कोई ठेले पर तो कोई बैलगाड़ी पर लेकर पहुंचता है मरीज
  • शवों के लिए नहीं मिल पाते शव वाहन, बड़ा सवा-क्या यही है इंतजाम?

Source : News State Bihar Jharkhand

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