बिहार में जाति आधारित जनगणना के विरोध में एक और याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है. इससे पहले भी एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थी. दोनों याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 20 जनवरी को सुनवाई करेगा. जातीय जनगणना के खिलाफ दायर की गई पहली याचिका में कहा गया है कि बिहार सरकार को कोई अधिकार जातीय जनगणना कराने का नहीं है. पहली याचिका में जनगणना अधिनियम 1948 के नियमों का हवाला देते हुए कहा गया है कि किसी भी राज्य सरकार को जनगणना कराने का अधिकार नहीं दिया गया है. साथ ही याचिका में बिहार में हो रही जातीय जनगणना को 'सामाजिक वैमनस्य को भी बढ़ावा देने वाला' बताया गया है और इसे रद्द करने की विनती की गई है.
बिहार के नालंदा जिले के रहनेवाले याचिकाकर्ता अखिलेश कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई अपनी याचिका में बताया है कि यह प्रक्रिया सर्वदलीय बैठक में हुए निर्णय के आधार पर शुरू की गई है. जातीय जनगणना बिना विधानसभा से पास कराए करवाया जा रहा है. ऐसे में 6 जून 2022 को बिहार सरकार द्वारा जारी की गई अधिसूचना का कोई कानूनी आधार नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता बरुन सिन्हा के जरिए दाखिल गई याचिका में 2017 में अभिराम सिंह मामले में आए सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले का हवाला दिया गया है. याचिका में कथन किया गया है कि उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जातीय और सांप्रदायिक आधार पर वोट मांगा जाना गलत है लेकिन बिहार की सरकार बिहार में राजनीतिक कारणों से जातीय आधार पर समाज को बांटने की कोशिश कर रही है, जिसे रोका जाना चाहिए.
HIGHLIGHTS
- सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका की गई दाखिल
- अबतक दो याचिका की गई दाखिल
- दोनों याचिकाओं पर सुनवाई करने को सुप्रीम कोर्ट तैयार
- 20 जनवरी 2023 को दोनों याचिकाओं पर सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट
Source : News State Bihar Jharkhand