उत्तर प्रदेश के माफिया अतीक अहमद का बिहार कनेक्शन क्या है? ये जानने के लिए आपको उमेश पाल हत्याकांड से लगभग एक महीने पीछे की भूमिका जाननी होगी. दरअसल, एक माह पहले ही उमेश पाल की हत्या की प्लानिंग की गई थी लेकिन अतीक से जेल में मुलाकात न होने पर प्लान टाल दिया गया था. यूसुफ उर्फ़ लतीफ नाम के अपराधी को उमेश पाल की हत्या करने का ठेका दिया गया था. यूसुफ द्वारा अतीक अहमद के भाई अशरफ से बरेली जेल में मुलाकात की गई थी और उसके बात वह अतीक से मिलने साबरमती जेल गया लेकिन माफिया से उसकी मुलाकात नहीं हो पाई थी. यूसुफ के बारे में बताया जाता है कि वह पहले भी अतीक व अशरफ के लिए काम कर चुका है.
अतीक का बिहार कनेक्शन 'वाया' यूसुफ
अतीक का गैंग बिहार में भी फैला है. आज भी गैंग के कई सक्रिय सदस्य बिहार में हैं. बिहार के गैंग की कमान यूसुफ संभालता है. अतीक गैंग के कई सदस्य यूसुफ के सम्पर्क में रहते हैं. इतना ही नहीं नेपाल में भी यूसुफ का नेटवर्क है जो अतीक के लिए काम करता है. अतीक के बड़े बेटे को CBI की गिरफ्त में जाने से बचाने वाला अगर कोई है तो वो है यूसुफ.
अतीक समेत तीन को उम्रकैद की सजा
100 से ज्यादा मुकदमें, ना जाने कितने मामले दर्ज ही नहीं हुए लेकिन आज माफिया अतीक अहमद को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले की एमपी/एमएलए कोर्ट ने उमेश पाल अपहरणकांड में दोषी करार देते हुए उम्र कैद की सजा सुना दी है. अतीक के अलावा उसके दो करीबी दिनेश पासी व खान सौतल हनीफ को उम्र कैद की सजा सुना दी है. जबकि, इसी मामले में अतीक अहमद के भाई अशरफ समेत 7 आरोपियों को कोर्ट द्वारा सबूतों के अभाव में आरोप मुक्त कर दिया गया है लेकिन अब बड़ा सवाल ये है कि क्या उम्रकैद की सजा पाने वाला अतीक अहमद पूरी जिंदगी सलाखों के पीछे रहेगा? क्या अब अतीक अहमद कभी भी जेल के बाहर नहीं निकल पाएगा? तो इसका जवाब ये है कि कानून की 1 धारा अगर किसी को जेल भेजने के लिए काफी है तो वहीं कानून की ही किताब में कई ऐसी धाराएं हैं जो दोषी को बचाने और स्वतंत्र जीवन जीने का अधिकार देता है. हालांकि, पहले की तरह स्वतंत्रता नहीं रह जाती है.
क्या है उम्रकैद की सजा?
उम्रकैद की सजा... पहली ही नजर में आम आदमी को लगेगा कि ये सजा पूरी जिंदगी के लिए है, लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. उम्रकैद की सजा के कई आधार होते हैं. कई मामलों में आजीवन दोषी को सलाखों के पीछे बीताने पड़ते हैं लेकिन कई बार दोषी को 14 साल बाद या 20 साल की सजा काटने के बाद जेल से रिहा कर दिया जाता है. हालांकि, इसके पीछे दोषी व्यक्ति के जेल में रहने के दौरान उसके आचरण में बदलाव महत्तवपूर्ण बात साबित होती है. अगर दोषसिद्ध व्यक्ति जेल में रहते हुए अच्छा व्यवहार करता है, लोगों के साथ अच्छा वर्ताव करता है यानि कि उसके जीवन जीने के तरीके में अगर बदलाव आता है तो निश्चित तौर पर उसे इस बात का लाभ मिलता है.
राज्य सरकार के पास होता है सजा कम करने का अधिकार
अक्सर आपने ये सुना होगा कि आजीवन कारावास की सजा पाए शख्स को 14 साल य़ा 20 साल या 25 साल बाद जेल से रिहाई मिल जाती है. इसके पीछे सबसे बड़ी बात सरकार का फैसला रहता है. दरअसल, 14 साल जेल में बिताने के बाद दोष सिद्ध व्यक्ति की फाइल सरकार के सामने रखी जाती है. कई मामलों में राज्य सरकारें एक निश्चित मापदंड के आधार पर दोषी की सजा कम करने की शक्तियां रखती हैं. IPC की धारा 55 और 57 में सरकारों को सजा को कम करने का अधिकार दे रखा है. इस दौरान सरकार कई बातों को दृष्टिगत रखते हुए दोषी व्यक्ति की शेष सजा माफ कर सकती है. हालांकि, ये पूरी तरह सरकार पर निर्भर करती है. हालांकि, उम्रकैद की सजा पाने वाले दोषी को कम से कम 14 साल सलाखों के पीछे बिताने ही होते हैं, या फिर जमानत पर वह बाहर आ सकता है.
उम्रकैद की सजा 20 साल
IPC की धारा 57 आजीवन कारावास की सजा के समय के संबंध में है. इस धारा के मुताबिक, उम्रकैद की सजा पाने वाले दोषी को बीस साल के कारावास के बराबर गिना जाएगा. हालांकि, इसका ये मतलब नहीं होगा कि उम्रकैदकी सजा 20 साल की होती है. इसे महज इसलिए बनाया गया है कि यदि कोई काउटिंग करनी हो तो उम्रकैद की सजा को 20 साल के बराबर माना जाता है. काउंटिंग की जरूरत भी तभी होगी जब किसी को दोहरी सजा सुनाई गई हो या फिर जुर्माना न भरने की स्थिति में ज्यादा समय के लिए यानि अतिरिक्त कारावास में रखा जाता है.
अतीक अहमद को किन धाराओं में मिली सजा
माफिया अतीक अहमद को आईपीसी की धारा 364 ए (अपहरण) और 120 बी (आपराधिक षणयंत्र) का दोषी पाया गया है और उम्रकैद की सजा सुनाई गई है. दोनों की धाराओं में अधिकतम उम्रकैद की सजा का प्रावधान है. ऐसे में अतीक अहमद अपनी सजा को कम करने के लिए ऊपरी अदालतों में याचिका दाखिल करने का कानूनी अधिकार रखता है और अपनी सजा कम करने के लिए अपील कर सकता है.
अतीक अहमद के पास विकल्प
1. हाईकोर्ट में अपील का अधिकार :
उमेश पाल अपहरण कांड में अतीक अहमद समेत तीन दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है. अतीह अहमद के पास हाईकोर्ट में अपील करने का पूरा अधिकार है. साथ ही उम्रकैद की सजा के खिलाफ जाने का भी अधिकार है.
अतीक अहमद की दलीलों को अगर हाईकोर्ट मानता है तो उसकी सजा कम हो सकती है. अक्सर फांसी के सजा को उम्रकैद और उम्रकैद की सजा को कम करके 10-15 साल की कैद के रूप में हाईकोर्ट द्वारा फैसला किया गया है.
2. सुप्रीम कोर्ट में अपील का अधिकार:
अगर हाईकोर्ट में अतीक अहमद की अपील पर निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा जाता है तो उसके पास सुप्रीम कोर्ट के समक्ष जाने का रास्ता साफ है और कानून किसी भी दोषी अथवा आरोपी को इस बात का अधिकार देता है.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी अगर अपील को रिजेक्ट कर दी जाती है तो भी अतीक अहमद के पास सुप्रीम कोर्ट में ही दूसरी याचिका दाखिल करके अपनी बात रखी जा सकती है.
3. सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पेटीशन, क्यूरेटिव पेटीशन दाखिल करने का अधिकार:
हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से अपील का याचिका खारिज होने के बाद अतीक अहमद सुप्रीम कोर्ट में ही रिव्यू पेटीशन और रिव्यू पेटीशन खारिज होने के बाद क्यूरेटिव पेटीशन दाखिल करने का कानूनी अधिकार रखता है. अक्सर रिव्यू पेटीशन और क्यूरेटिव पेटीशन पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट दोषी की सजा में कमी करता है.
उदाहरण के तौर पर अभिनेता संजय दत्त को एके56 राइफल रखने के जुर्म में 6 साल की सजा मिली थी और सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सजा 5 साल कर दी थी लेकिन संजय दत्त की रिहाई राज्य सरकार द्वारा महज तीन साल जेल में बिताने के बाद उनके जेल में अच्छे आचरण का हवाला देते हुए कर दिया जाता है.
जमानत के लिए याचिका दाखिल करने का अधिकार:
अगर हाइकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट से अतीक अहमद को राहत नहीं मिलती है तो अतीक अहमद के पास हाईकोर्ट में जमानत के लिए अपील याचिका लगाने का भी अधिकार है. अतीक अहमद को भी ठीक उसी तरह जमानत मिल सकती है जैसे उन्नाव के पूर्व बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर को उम्रकैद की सजा मिलने के महज 5-7 महीनों में जमानत मिल गई थी. क्योंकि, 2019 से अतीक अहमद जेल में बंद है और लगभग 5 साल उसकी न्यायिक हिरासत हो चुकी है लिहाजा उसे बेल मिल सकती है.
अब नहीं लड़ सकेगा चुनाव
अतीक अहमद को सजा मिलने के बाद एक बात निश्चित हो गई है कि वह अब कभी भी सियासी लड़ाई में नहीं कूद सकेगा. यानि कभी भी चुनाव नहीं लड़ सकेगा. उसे बेल मिल सकती है, उसकी सजा कम हो सकती है लेकिन वह अब माननीय नहीं बन सकता.
सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले जिसमें जनप्रतिनिधि की धारा 8 (4) को शून्य घोषित किया था के अनुसार अब अतीक अहमद को जनप्रतिनिधित्व कानून का कोई लाभ नहीं मिलेगा क्योंकि उसका अपराध साबित हो चुका है.
HIGHLIGHTS
- अतीक अहमद समेत तीन दोषियों को उम्रकैद की सजा
- प्रयागराज एमपी/एमएलए कोर्ट ने सुनाई सजा
- उमेश पाल अहरण केस में सुनाई गई सजा
- तीनों दोषियों पर लगाया गया 1-1 लाख का जुर्माना
Source : Shailendra Kumar Shukla