बीमार होने पर आमतौर पर हम अस्पताल में जाते हैं ताकि बेहतर इलाज हो सके, लेकिन अगर आप मधेपुरा सदर अस्पताल में जाने की सोच रहे हैं तो उलटे पैर लौट जाए. क्योंकि ये अस्तपताल आपको ठीक नहीं बल्कि और बीमार कर देगा. बिहार सरकार स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर कितने भी दावे क्यों ना कर ले, प्रशासन के स्तर पर सभी दावे हवा हो जाते हैं और जमीनी हकीकत कुछ इसी तरह जमीन पर देखने को मिलती है. सदर अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में एक बेड पर दो मरीजों को लेटाकर इलाज कराया जा रहा है. अब आप अंदाजा लगाइए कि जिस अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड की हालत ये है वहां जनरल वार्ड की हालत कैसी होगी. ये आलम तब है जब इस अस्पताल पर कुल 25 लाख की आबादी निर्भर करती है, लेकिन 25 लाख लोगों की स्वास्थ्य की जिम्मेदारी कैसे प्रबंधन के हाथों में है ये यहां आकर देखा जा सकता है.
जिले का सबसे बड़ा सदर अस्पताल होने के बावजूद भी सदर अस्पताल में मरीजों की दुर्दशा शर्मनाक है. बैठके के लिए भी यहां व्यवस्था नहीं है इसलिए परिजन जमीन पर ही बैठ जाते हैं, लेकिन जमीन पर भी सफाई के नाम पर खानापूर्ति भी नहीं की गई है. इस परेशानी का सबसे बड़ा कारण है अस्पताल में बेड्स की कमी. जिसके चलते मरीजों को घंटों लाइन में लगकर अपनी बारी का इंतजार करना होता है. अगर बेड मिल भी जाए तो उसपर दो या तीन मरीजों को एक साथ लिटाया जाता है. इससे मरीजों में संक्रमण का खतरा भी बढ़ता है.
सीएमओ साहब का कहना है कि अस्पताल में गुणवत्तापूर्ण सुविधा है इसलिए बेड्स की कमी है. अगर अच्छी सुविधा ना होती तो बेड खाली होते. अब उनके बयान में लॉजिक कितना है ये तो हमें भी नहीं पता, लेकिन एक सवाल जरूर है कि अगर कोरोना संक्रमण की दौर में इसी तरह एक बेड पर दो-तीन मरीजों का इलाज होगा और एक से दूसरे मरीज में संक्रमण फैलेगा तो इसका जिम्मेदार कौन होगा?
रिपोर्ट : रूपेश कुमार
HIGHLIGHTS
- बीमार अस्पताल.. मरीज बदहाल?
- सावधान..अस्पताल कर सकता है बीमार!
- अस्पताल में बेड की कमी से मरीज परेशान
- एक बेड पर होता है दो मरीजों का इलाज
- घंटों इंतजार करने पर नसीब होता है बेड
Source : News State Bihar Jharkhand