अगर नीतीश ने बदल लिया पाला, तो क्या करेंगे तेजस्वी लाला? बिहार राजनीति Explain

तेजस्वी यादव का क्या होगा? बिहार के उप-मुख्यमंत्री और संभवत: स्वयं को भावी सीएम समझने वाले तेजस्वी के लिए नीतीश का ये फैसला दोहरा झटका साबित हो सकता है. क्योंकि अगर ऐसा होता है, तो न सिर्फ उनकी बिहार की राजनीति से इमरजेंसी एग्जिट होगी, बल्कि...

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Sourabh Dubey
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Bihar_Crisis( Photo Credit : social media)

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बिहार में सियासी बयार ने फिर करवट ली है... सूबे के सीएम नीतीश कुमार की राजनीतिक पटकथा अब देशभर के सियासतदानों के लिए अनसुलझी पहेली मालूम हो रही है, जिसमें कब-कैसे-क्या हो जाए.. शायद नीतीश खुद भी नहीं जानते. चाहे 2020 चुनाव के बाद NDA से हाथ मिलाना हो, या फिर रातों-रात राजद के साथ सरकार बनाना, सीएम नीतीश का सियासी खेल अच्छे-अच्छों को धूल चटा देता है.. जबतक आप उनकी अगली चाल को समझेंगे, तबतक उनकी सियासी लवस्टोरी कोई-न-कोई नया ट्विस्ट ले चुकी होगी...

हाल ही में एक बार फिर यही ट्विस्ट देखने को मिला है, जहां खबर है कि नीतीश कुमार महागठबंधन को छोड़कर भाजपा के साथ जाने की तैयारी में है. इसे लेकर जहां एक ओर राज्य की तीनों मुख्य पार्टी जेडीयू, भाजपा और आरजेडी खेमे में बैठकों का दौर जारी है, वहीं स्वयं सीएम नीतीश के फैसले का इंतजार भी किया जा रहा है...


मगर इन सबके बीच एक सवाल है कि, अगर ऐसा होता है तो तेजस्वी यादव का क्या होगा? बिहार के उप-मुख्यमंत्री और संभवत: स्वयं को भावी सीएम समझने वाले तेजस्वी के लिए नीतीश का ये फैसला दोहरा झटका साबित हो सकता है. क्योंकि अगर ऐसा होता है, तो न सिर्फ उनकी बिहार की राजनीति से इमरजेंसी एग्जिट होगी, बल्कि उनका सीएम बनने का सपना भी फिलहाल के लिए चूर-चूर हो जाएगा...

लेकिन यहां सवाल है कि आखिर बिहार के मन में कौन है? तो दरअसल गौर करें, तो मालूम होगा कि हाल फिलहाल के दिनों में तेजस्वी की छवि पूरे बिहार में नीतीश के मुकाबले कई ज्यादा बेहतर हुई है. चाहें बात नौकरियों की हो या निर्माण की, तेजस्वी ने लगभग अपने सारे वादे पूरे किए हैं, न सिर्फ ये बल्कि लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी यादव अबतक भ्रष्टाचार के आरोपों से भी दूर हैं, जिसने कहीं-न-कहीं बिहारी मन को मोह लिया है.


ऐसे में क्या खुद को साबित करने का तेजस्वी यादव के पास कोई और मौका भी है? बिहार में कुल 243 विधानसभा सीटों हैं, जिनमें सरकार बनाने के लिए 122 सीटों के बहुमत की जरूरत है, जिसमें 2020 विधानसभा चुनाव में जेडीयू को 43 सीटें मिली थीं और राजद के पास 78 सीटें हैं, लिहाजा एनडीए ने 125 सीटें जीतकर बहुमत का आंकड़ा हासिल कर लिया था. ऐसे में अगर नीतीश दोबारा एनडीए की ओर रुख करते हैं, तो तेजस्वी का सरकार बनाना करीब-करीब नामुमकिन है. मगर एक बात तो तय है कि, बिहारी की आगामी सियासी पटकथा में तेजस्वी नीतीश की राह का सबसे बड़ा कांटा साबित होने वाले हैं. 

Source : News Nation Bureau

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