बिहार के हरनाटांड़ से एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है, जहां करीब डेढ़ लाख की आबादी वाले प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हरनाटांड़ में पिछले दो सप्ताह से एंबुलेंस सेवा बाधित है, जिससे मरीजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. वहीं, अनुमंडल क्षेत्र में एम्बुलेंस की समस्या कोई नई बात नहीं है, कहीं समय पर एम्बुलेंस नहीं मिलने से किसी की जान चली जाती है तो कहीं जान बच जाती है. ऐसी ही समस्या हरनाटांड़ में भी देखने को मिल रही है. करीब एक साल पहले जब यहां नई एंबुलेंस आई तो लोगों में खुशी थी कि एंबुलेंस खराब होने की समस्या दूर हो जाएगी और लोगों को समय पर इसका लाभ मिलेगा, लेकिन साल भर बीते नहीं कि एंबुलेंस खराब हो गई और दो सप्ताह बीतने के बावजूद इसके संचालन प्रभावित है. अब इसे एनजीओ की मनमानी कहें या अस्पताल प्रबंधन की उदासीनता, जिसके कारण आज भी लोगों को एंबुलेंस की समस्या से जिंदगी और मौत के बीच जूझना पड़ता है.
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आपको बता दें कि वाल्मिकीनगर थाना क्षेत्र के धुमवाटांड़ गांव निवासी रवि उरांव की पत्नी रवीना कुमारी की तबीयत सोमवार को अचानक खराब हो गयी. वहीं जब रवीना प्रेग्नेंट थीं तो समय खत्म होने पर उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट करना जरूरी हो गया था। पूरी कोशिश करने के बाद जब उन्होंने आशा को फोन किया और एंबुलेंस बुलाने को कहा तो आशा को पता चला कि एंबुलेंस पिछले दो हफ्ते से खराब है. ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण रात में समय पर वाहन मिलना आसान नहीं था. इस कारण काफी देर तक गांव में इधर-उधर घूमने के बाद एक वाहन मिला और फिर उस भाड़े के वाहन से गर्भवती महिला को प्रसव के लिए पीएचसी हरनाटांड़ में भर्ती कराया गया, तब तक प्रसूता का दर्द से हाल बेहाल था. हालांकि, अस्पताल पहुंचने के कुछ देर बाद ही रवीना की सुरक्षित डिलीवरी हो गई और तभी मां और बच्चे की जान बच गई.
आपको बता दें कि चिउटाहां निवासी गर्भवती अफसाना खातून के साथ थी, उसके पति घर पर नहीं थे, ऐसे में भैंसुर हसनैन अंसारी और भाभी गुलशन खातून ने प्रसव पीड़ा से तड़पती अफसाना को एंबुलेंस के अभाव में निजी भाड़े के वाहन से पीएचसी हरनाटांड़ भर्ती कराया. इस दौरान गुलशन खातून ने बताया कि, एंबुलेंस नहीं मिलने के कारण वह 800 रुपये खर्च कर टेंपो से अस्पताल पहुंचीं. अगर एंबुलेंस अच्छी स्थिति में होती तो हम गरीबों को आर्थिक क्षति नहीं होती.
संचालक की मनमानी जारी
इसके साथ ही आपको बता दें कि इस मामले को लेकर ग्रामीण मुन्ना मोदनवाल, सुशील मिश्रा, पिंटू कुमार, रवि उरांव, दिलखुश महतो, इब्राहिम अंसारी, देवनाथ काजी और रामेश्वर प्रसाद आदि का कहना है कि, गर्भवती महिलाओं से लेकर दुर्घटना में घायल गंभीर मरीजों तक को अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस का सहारा लेना पड़ता है, लेकिन एनजीओ के माध्यम से संचालित एंबुलेंस किसी न किसी समस्या के कारण बंद रहती है.
इससे ऐसे गंभीर मरीजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. हाल ही में बगहा अनुमंडलीय अस्पताल में एम्बुलेंस नहीं मिलने के कारण कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. इसके बावजूद एंबुलेंस संचालन करने वाली एनजीओ इन समस्याओं को नजरअंदाज कर लापरवाही बरत रही है. ऐसे में इन एनजीओ संगठनों पर लगाम लगाने की जरूरत है ताकि एंबुलेंस सुचारू रूप से चले और किसी की जान को खतरा न हो.
HIGHLIGHTS
- बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था की फिर खुली पोल
- बगहा में दो हफ्तों से एंबुलेंस खराब
- जैसे-तैसे अस्पताल पहुंच रहीं प्रसूताएं
Source : News State Bihar Jharkhand