बिहार की राजनीति में एंट्री मारने वाले प्रशांत किशोर और उनकी पार्टी जन सुराज का असर भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) पर पड़ता दिख रहा है. यहां बीजेपी के वरिष्ठ नेता और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रह चुके संजय पासवान प्रशांत किशोर और जन सुराज पार्टी के कायल हो गए हैं.
संजय पासवान प्रशांत किशोर को सुनने के लिए 2 अक्टूबर को वेटनरी कॉलेज मैदान भी पहुंच गए थे, जब जन सुराज पार्टी बन रही थी और दलित समुदाय से आने वाले पूर्व राजनयिक मनोज भारती को पार्टी का पहला नेता और कार्यकारी अध्यक्ष घोषित किया जा रहा था. संजय पासवान ने मीडिया से बातचीत में कहा कि बिहार में 19 परसेंट से ज्यादा आबादी दलित है. जीतन राम मांझी को छोड़ दें तो बिहार में 35 साल से पिछड़ी जाति से ही मुख्यमंत्री बन रहे हैं. अब दलित या महादलित के सीएम बनने का समय आ गया है.
इसके अलावा संजय पासवान ने मनोज भारती को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने को पीके का एक साहसिक कदम बताया. उन्होंने कहा कि प्रशांत किशोर द्वारा एक दलित को नेतृत्व थमाने से सामाजिक मंथन होगा, जिसका दूरगामी असर देखने को मिल सकता है और इसका नतीजा देर-सबेर दिखेगा. भाजपा ने 2025 का विधानसभा चुनाव जेडीयू अध्यक्ष और मौजूदा सीएम नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ने का ऐलान कर रखा है. संजय पासवान ने पिछले महीने भी दलित मुख्यमंत्री का मुद्दा उठाया था और कहा था कि जनता काफी समय से बीच की जातियों को मौके दे चुकी हैं.
झंडे में गांधी और अंबेडकर
पासवान ने कहा, 'दलितों की इच्छा है कि उनके बीच से कोई मुख्यमंत्री बने और इसमें कुछ गलत भी नहीं है. बिहार में पिछले साढ़े तीन दशक में सवा दो मुख्यमंत्री हुए हैं. एक आरजेडी से लालू यादव और राबड़ी देवी के रूप में थे. दूसरे नीतीश कुमार हैं. दोनों पिछड़ी जाति से हैं. कुछ समय के लिए जीतनराम मांझी थे. अब दलित या महादलित सीएम का समय आ गया है. यह मेरी निजी राय है.'
प्रशांत किशोर ने ऐसे चला दलित कार्ड
बिहार में चिराग पासवान और जीतनराम मांझी अपनी-अपनी पार्टियों के नेता हैं जबकि अशोक चौधरी जेडीयू में आकर मंत्री बनने से पहले कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं. सभी पार्टियों में कोई ना कोई दलित नेता है. लेकिन संजय पासवान कहते हैं कि इस सबका कोई मतलब नहीं है क्योंकि इनमें किसी का भी दलितों के लिए कुछ करने हैसियत नहीं है.
सालभर चलेगा इवेंट का माइंडगेम
पासवान ने आगे कहा, 'हर पार्टी में दलित और महादलित समुदाय के लोगों के लिए जगह खाली है क्योंकि उनमें आकांक्षा बढ़ी है. एक दलित को जन सुराज पार्टी का अध्यक्ष बनते देखना अच्छा लग रहा है और यह दिखाता है कि प्रशांत किशोर कितनी बारीकी से कदम बढ़ा रहे हैं. बाकी दलित नेता बस राजनीति कर रहे हैं. प्रशांत किशोर राजनीति को सोच रहे हैं और जी रहे हैं. जिस तरह से वो काम कर रहे हैं उसके लिए मैं उनको सलाम करता हूं. एक भरोसेमंद चेहरा दलितों को एकजुटता कर सकता है.'