Bihar Politics News: बिहार की राजनीति में दलित वोटबैंक का महत्व हमेशा से रहा है और 2020 के विधानसभा चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि आरजेडी के लिए इस महत्वपूर्ण वोटबैंक में दरार आ चुकी है. इसके बावजूद आरजेडी ने अपनी पकड़ मजबूत रखने की कोशिश की, लेकिन वरिष्ठ दलित नेता श्याम रजक का इस्तीफा इस समीकरण में एक बड़ा झटका साबित हुआ है.
श्याम रजक का इस्तीफा और आरजेडी की कमजोर होती स्थिति
आपको बता दें कि श्याम रजक ने 2020 के चुनावों से पहले आरजेडी में वापसी की थी, लेकिन पार्टी में लंबे समय तक बने नहीं रह सके. 2024 के चुनाव से पहले उनका इस्तीफा आरजेडी के लिए एक बड़ा धक्का है, खासकर जब दलित आरक्षण का मुद्दा गरमाया हुआ है. श्याम रजक जो दलित समुदाय में एक मुखर और प्रभावी नेता माने जाते हैं, आरजेडी को छोड़कर पार्टी पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाया है. उनके जाने से आरजेडी के दलित वोटबैंक पर और भी गहरा असर पड़ सकता है.
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एनडीए के दलित चेहरे और आरजेडी के लिए चुनौती
वहीं बिहार में वर्तमान में चार प्रमुख दलित चेहरे-चिराग पासवान, जीतनराम मांझी, अशोक चौधरी और श्याम रजक-सभी एनडीए के खेमे में दिखाई दे सकते हैं. श्याम रजक के जेडीयू में लौटने की संभावनाएं इस समीकरण को और भी मजबूत करती हैं. ऐसे में आरजेडी के पास कोई ऐसा प्रभावशाली दलित चेहरा नहीं बचा है, जो आगामी चुनावों में दलित वोटों को साध सके. एनडीए के पास पहले से ही चिराग पासवान, मांझी, और चौधरी जैसे नेता हैं, जो अपने-अपने समुदायों पर पकड़ रखते हैं.
कांग्रेस और आरजेडी की दलित वोटबैंक में पकड़
इसके अलावा, आगामी चुनावों में कांग्रेस-आरजेडी-माले गठजोड़ के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि उनके पास कोई प्रभावी दलित नेता नहीं है, जो दलित वोटबैंक को अपनी ओर खींच सके. श्याम रजक के जाने से यह कमी और भी स्पष्ट हो गई है. दूसरी ओर, एनडीए के नेताओं ने दलित समुदायों के मुद्दों पर खुलकर बोलना शुरू कर दिया है, जिससे उनकी पकड़ और भी मजबूत होती जा रही है.
बिहार के जातीय समीकरण पर श्याम रजक का प्रभाव
साथ ही आपको बता दें कि श्याम रजक की पकड़ पटना और उसके आसपास के दलित समुदायों में मजबूत है, विशेषकर धोबी जाति में. उनके इस्तीफे से आरजेडी को इस महत्वपूर्ण वोटबैंक में भारी नुकसान हो सकता है. बिहार की सियासत में दलित वोटों का महत्वपूर्ण स्थान है और श्याम रजक के जाने से आरजेडी के लिए 2025 के विधानसभा चुनाव में इस वोटबैंक को बनाए रखना आसान नहीं होगा.