राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) के अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस की नैया इसबार राजनीति के मझधार में फंसती दिखाई दे रही है. अभी कुछ दिन पहले तक वे राजग (NDA) का हिस्सा थे. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर उन्हें सम्मानजक पद मिलने की उम्मीद थी, लेकिन घटनाक्रम में इतनी तेजी से बदलाव आए कि पिछले महीने हुई एनडीए की बैठक का उन्हें निमंत्रण तक नहीं दिया गया.
इसके अलावा बिहार सरकार ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी. लोजपा कार्यालय के लिए आवंटित सरकारी भवन से उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. पूरे प्रकरण पर पारस ने चुप्पी साध ली है. ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि एनडीए से हटकर किसी नए समीकरण को लेकर सोचा जा रहा है.
लोकसभा चुनाव में हुए नजरअंदाज
पारस 2021 में लोजपा (LJP) के पांच सांसदों के साथ जब राजग का हिस्सा बने थे, उस वक्त उन्हें नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में मंत्री पद दिया गया था. लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान अकेले पड़ गए थे, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पारस की किस्मत पर मानो ग्रहण सा लग गया. उन्हें लोकसभा चुनाव में टिकट ना देकर नजरअंदाज कर दिया गया. इसके बाद पारस ने केंद्रीय कैबिनेट को अलविदा बोल दिया.
नीतीश पर भी नहीं रहा भरोसा
पारस की अब केंद्र सरकार को छोड़ नीतीश कुमार के साथ उम्मीद जागने लगी थी, मगर सरकारी भवन से रालोजपा को बेदखल करने के निर्णय से पारस की यह आशा भी टूट गई. उनकी पार्टी ने इस भवन में बने रहने के लिए मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा था. उसका प्रभाव नहीं पड़ा. कठिनाई यह है कि महागठबंधन की ओर से भी पारस को आमंत्रण नहीं मिल रहा है.
फिर हुई उपेक्षा
दरअसल, मूल लोजपा का वोट चिराग से जुड़ा हुआ है. पारस साथ रहें न रहें, अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा. चिराग का अलगाव राजग को नुकसान पहुंचा देगा. चिराग ने हाल की अपनी गतिविधियों से नीतीश को भी अपने पक्ष में कर लिया है. इससे पहले, पारस के पक्ष में नीतीश कुमार कई बार खड़े हुए थे, क्योंकि चिराग से वे नाखुश थे. ऐसे में पारस को कोई ठिकाना नहीं मिल रहा है.