Diwali 2023: दिवाली का त्योहार आने में अब कुछ ही दिन बचे हैं, कुम्हारों के मिट्टी के हाथों ने चाक को तेज गति दे दी है। कुम्हारों के पसीने से आकार ले रहे दीपक दिवाली के त्योहार पर लोगों के घरों को रोशन करने को आतुर हैं, लेकिन जरूरत है तो बस आपके एक प्रयास की. असली ग्रीन दिवाली तभी सार्थक होगी जब सभी के घरों में खुशियां लौटेंगी. इसके लिए शहर के विभिन्न इलाकों में कुम्हार परिवार भी इन दिनों मिट्टी से बने सामान तैयार करने में व्यस्त नजर आ रहे हैं. उन्हें यह भी भरोसा है कि यह दिवाली उन्हें आर्थिक संकट से बचा लेगी.
आपको बता दें कि 2019 के बाद से उनका कारोबार बेअसर हो गया है. पिछले साल भी उन्होंने किसी तरह मिट्टी की व्यवस्था कर दीये बनाने का काम किया था, लेकिन बाजार की उम्मीद अनुकूल नहीं मिलने के कारण उन्हें भारी नुकसान हुआ है. वहीं इस बार बाजार संभलने की आस बांधकर पूरी तरह से लगे हुए हैं.
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रोशनी के त्योहार में अब कुछ दिन और
आपको बता दें कि वार्षिक दीपोत्सव के दौरान इन दीयों का इस्तेमाल बड़ी संख्या में किया जाता है, इसलिए इन दिनों कुम्हारों का पूरा परिवार इस काम में मदद कर रहा है. वहीं कोई मिट्टी गूंथने में लगा है तो किसी के हाथ चाक पर मिट्टी के बर्तनों को आकार दे रहे हैं. शहर के सराय फाटक (सोहनीपट्टी) मोड़ के शिवशंकर प्रजापति, उमाशंकर प्रजापति आदि का कहना है कि स्वदेश निर्मित इन दीयों से कोई नुकसान नहीं है.
मिट्टी के दीपक सुख-समृद्धि के प्रतीक
आपको बता दें कि इस बदलते परिवेश में इन मिट्टी के दीयों की जगह भले ही बिजली के दीयों ने ले ली हो, लेकिन मिट्टी के दीयों का एक अलग ही महत्व है. वहीं मिट्टी के दीये घर में सुख-समृद्धि लाते हैं. मौके पर रमेश प्रजापति दो मिनट में दीपक तैयार कर उसे बिस्तर पर रखते दिखे. इसे लेकर कहा जा रहा है कि एक दिन में करीब दो से ढाई हजार दीये तैयार हो सकते हैं, लेकिन इसकी बॉडी कड़ी हो जाती है. उनकी शिकायत है कि मिट्टी के दीये बनाने में मेहनत तो बहुत लगती है, लेकिन बाजार में कीमत उस अनुरूप नहीं मिलती. उन्हें भरोसा है कि अच्छे साइज के लैंप 5-10 रुपये प्रति पीस बिकेंगे.
मिट्टी के दीयों का है खास महत्व
इसके साथ ही आपको बता दें कि दिवाली को लेकर नया बाजार की वयोवृद्ध महिला गीता देवी का कहना है कि, रोशनी के त्योहार पर घरों की मुंडेर पर टिमटिमाती रोशनी के साथ बिखरे हुए दीये जितने सुंदर और आंखों को सुकून देने वाले होते हैं. जैसा कि आजकल के इन विद्युत झूमरों में नहीं है. वहीं साहित्यकार रामेश्वर प्रसाद वर्मा का कहना है कि दीपक की रोशनी ज्ञान की तरह अनंत है और दिवाली पर दीपक जलाना एक कालजयी परंपरा है, जिसमें रुई की बाती घुमाकर और दीपक जलाकर की जाने वाली पूजा, आह्वान और आराधना को धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टि से महत्व दिया गया है.
HIGHLIGHTS
- दिवाली पर दीयों की पुकार
- आपके घर में रोशनी फैलाने को आतुर कुम्हार
- दिवाली पर जरूर खरीदे मिट्टी के दीए
Source : News State Bihar Jharkhand