लोक आस्था का महापर्व चैती छठ पूजा का आज तीसरा दिन है. छठव्रती गुरुवार को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देंगे. बुधवार को खरना था. इसके साथ ही निर्जल उपवास शुरू हो गया है. शुक्रवार को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही चैती छठ का व्रत संपन्न हो जाएगा. चार दिवसीय चैती छठ महापर्व मंगलवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया. व्रतियों ने मंगलवार को नहाय खाय का प्रसाद कद्दू भात बनाया और भगवान को नमन कर प्रसाद ग्रहण किया. सूर्य की उपासना का पर्व छठ हिन्दू नववर्ष के पहले माह चैत्र के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है. इस पर्व में व्रती सूर्य भगवान की पूजा कर उनसे आरोग्यता, संतान और मनोकामनाओं की पूर्ति का आर्शीवाद मांगते हैं. 11 अप्रैल को डूबते हुए सूर्य को और 12 अप्रैल को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा.
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षष्ठी को व्रती पूरी तरह से निराहार व निर्जला रहते हैं. खरना के बाद व्रती 36 घंटे तक निर्जल उपवास रखते हैं. उगते हुए सूर्य को अर्ध्य देने के साथ व्रत संपन्न हो जाता है. चैती छठ कार्तिक छठ की तरह ही होता है, लेकिन यह छोटे पैमाने पर मनाया जाता है. इसमें डाला पर ठेकुआ के साथ ही फल और मेवों का प्रसाद चढ़ाया जाता है. यह मूल रूप से पूर्वी भारत में मनाया जाता है, मगर दिल्ली, मुंबई जैसे भारत के अन्य शहरों में भी इसकी खासी रोनक देखने को मिलती है.
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छठ के नहाए खाए और खरना में कद्दू भात का प्रसाद बनाया जाता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि कद्दू में लगभग 96 फीसदी पानी होता है. इसे ग्रहण करने से कई तरह की बीमारी खत्म हो जाती है. वहीं चने की दाल को बांकी दालों में सबसे अधिक शुद्ध माना जाता है. खरने के प्रसाद में ईख का कच्चा रस, गुड़ के सेवन से त्वचा रोग, आंख की पीड़ा, शरीर के दाग-धब्बे खत्म हो जाते हैं.
Source : News Nation Bureau