Bihar Voter List Controversy: वोटर लिस्ट विवाद पर Ashok Gahlot का बड़ा बयान

Bihar Voter List Controversy: गरीब और अशिक्षित वर्ग के लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. कई लोग यह नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर यह प्रक्रिया क्यों की जा रही है और उन्हें कौन-कौन से दस्तावेज देने हैं.

Bihar Voter List Controversy: गरीब और अशिक्षित वर्ग के लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. कई लोग यह नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर यह प्रक्रिया क्यों की जा रही है और उन्हें कौन-कौन से दस्तावेज देने हैं.

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Yashodhan.Sharma
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Patna: बिहार में चुनाव आयोग द्वारा हाल ही में शुरू की गई नई मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि यह पूरी प्रक्रिया बिना किसी राजनीतिक विमर्श के शुरू की गई है, जिससे लोकतंत्र की भावना को ठेस पहुंच रही है. विपक्ष का कहना है कि इस फैसले में न तो उन्हें विश्वास में लिया गया और न ही आम लोगों की सुविधा का ध्यान रखा गया.

आयोग ले रहा एकतरफा निर्णय

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नेताओं का कहना है कि चुनाव आयोग की यह जिम्मेदारी होती है कि वह पक्ष और विपक्ष दोनों से संवाद करे, उनकी राय ले और फिर किसी भी प्रकार का निर्णय ले. लेकिन इस बार आयोग ने एकतरफा तरीके से निर्णय लिया है, जिससे न सिर्फ विपक्ष बल्कि आम जनता भी असमंजस की स्थिति में है.

इन लोगों को हो सकती है भारी परेशानी

दिल्ली में रह रहे बिहार के प्रवासी लोगों का कहना है कि उनसे मां-बाप का जन्म प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, जो कई बार उपलब्ध नहीं होते हैं. ऐसे में गरीब और अशिक्षित वर्ग के लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. कई लोग यह नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर यह प्रक्रिया क्यों की जा रही है और उन्हें कौन-कौन से दस्तावेज देने हैं.

यह पहल एकतरफा

राजस्थान के पूर्व सीएम और कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने कहा, 'यह पहल एकतरफा है. चुनाव आयोग को चाहिए कि वह तुरंत प्रेस कॉन्फ्रेंस करके जनता को साफ-साफ जानकारी दे और जो भ्रम की स्थिति बनी है, उसे तुरंत दूर करे. लोकतंत्र में पारदर्शिता सबसे जरूरी है और अगर जनता को ही भरोसा नहीं रहा तो चुनाव प्रक्रिया पर सवाल खड़े हो जाएंगे.'

अब देखना होगा कि आयोग इस पर क्या स्पष्टीकरण देता है और विपक्ष की आपत्तियों पर क्या रुख अपनाता है. फिलहाल, विपक्ष का साफ कहना है कि जब तक सभी पक्षों को विश्वास में नहीं लिया जाता, तब तक इस तरह की कोई भी एकतरफा प्रक्रिया लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है.

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