चिकित्सकों, विशेषज्ञों, चिकित्सा अधिकारियों और बच्चों के माता-पिता के बीच इस बात पर सहमति दिखती है कि मानसून बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में एक्यूट एंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के मामलों में कमी लाएगा. इस रहस्यमय बीमारी से राज्य में अब तक 154 बच्चों की जान गई है.एक हफ्ता पहले मानसून ने बिहार में प्रवेश किया है. मुजफ्फरपुर सहित राज्य के अधिकांश हिस्सों में हल्की से मद्धिम बारिश हुई, जिससे किसानों से ज्यादा चिकित्सकों, चिकित्सा अधिकारियों और एईएस से प्रभावित बच्चों के माता-पिता खुश हुए.
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वे मानते हैं कि मुजफ्फरपुर और पड़ोसी जिलों में पसरे एईएस के प्रकोप की रोकथाम में दवाओं से ज्यादा बारिश कारगर होगी और 100 से ज्यादा उन बच्चों के लिए मददगार साबित होगी, जिनका उपचार अभी भी अस्पतालों में चल रहा है. उनकी हालत तेजी से सुधारेगी. मुजफ्फरपुर स्थित सरकारी अस्पताल श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (एसकेएमसीएच) में शिशुरोग विभाग के प्रमुख गोपाल शंकर सहनी ने कहा कि बारिश होने और वातावरण ठंडा हो जाने के कारण बड़ी संख्या में आ रहे एईएस के नए मामलों में पिछले कुछ दिनों में काफी कमी आई है.
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जून में एईएस के कारण सिर्फ मुजफ्फरपुर में 132 बच्चों की मौत हो गई. चिकित्सक और चिकित्सा अधिकारी इस बीमारी व मौत के कारणों के संदर्भ में अभी भी किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं. राज्य और केंद्र की सरकारें भी इस बीमारी के निदान के बारे में अब तक अनभिज्ञ हैं. एक चिकित्सा अधिकारी ने कहा कि बीमारी की पहचान अभी तक नहीं हो पाई है. अतीत में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा किए गए कई शोधकार्यो के बावजूद कारण एक रहस्य बना हुआ है.
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लेकिन एक चीज स्पष्ट है कि वे इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि बारिश से रोग का प्रकोप थमेगा. एसकेएमसीएच के एक अन्य चिकित्सक ने कहा, "22 जून को मुजफ्फरपुर में बारिश होने से पहले दर्जनों बच्चों को अस्पताल ले जाया गया था. लेकिन बारिश के बाद एक दिन में मात्र एक बच्चे की मौत हुई, पहले ऐसा नहीं था."चिकित्सकों और चिकित्सा अधिकारियों का कहना है कि भीषण गर्म मौसम के साथ उमस के कारण मुजफ्फरपुर में एईएस का प्रकोप फैला. ऐसा दो दशकों से हर साल होता रहा है.
दक्षिणी बिहार के एक केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए शोध से पता चला कि एईएस का उमस और तापमान से सीधा नाता है और जब बारिश शुरू होती है, तब इस रोग के मामले घटने शुरू हो जाते हैं. सहनी ने कहा कि बहुप्रतीक्षित मानसून के आने से चमकी बुखार से पीड़ित बच्चों को राहत मिलेगी और इस रोग का कारण बने वायरस का शमन करने में मदद मिलेगी.
मुजफ्फरपुर के क्षेत्रीय अवर स्वास्थ्य निदेशक डॉ. अशोक कुमार सिंह ने उनकी बात का समर्थन किया. उन्होंने कहा, "तीन एच--हीट वेव, ह्यूमिडिटी और हाइपोग्लाइसीमिया एईएस से पीड़ित बच्चों की मौत के कारण बनते हैं. तापमान में कमी के लिए बारिश जरूरी है..यह रोग के प्रकोप में कमी लाती है."एक अन्य वरिष्ठ चिकित्सक के मुताबिक, साल 2018, 2017 और 2016 में मौसम न तो ज्यादा सूखा, तपिश वाला और न ही इस साल जैसी भीषण उमस वाला था, इसलिए इस रोग से कम मौतें हुई थीं.
उन्होंने कहा, "मई और जून की शुरुआत में मानसून पूर्व हल्की बारिश हुई थी. यही वजह है कि इस साल रोग को विकराल रूप लेने में मदद मिली."मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी पिछले हफ्ते कहा था, "इस रोग का गर्म मौसम और मानसून से कुछ संबंध जरूर है. यह रोग बारिश और मानसून से पहले फैलता है. इस कारण हर साल बच्चे मर रहे हैं, यह चिंता का विषय है."
मुजफ्फरपुर स्थित केजरीवाल अस्पताल के एक चिकित्सक राजीव कुमार ने कहा कि यह एक तथ्य है कि मानसून की बारिश से इस रोग की रोकथाम और नियंत्रण आसान हो जाता है. भीषण गर्मी और उमस से यह रोग ज्यादा फैलता है.
HIGHLIGHTS
- बिहार में अबतक चमकी बुखार से 153 बच्चों की मौत
- बारिश से कम हो सकता है प्रभाव
- बिहार में बारिश की दरकार