अपराध और अपराधी का रिश्ता पुलिस ढूंढ ही लेती है. लेकिन कुछ ऐसे भी अपराधी होते हैं जिन तक पहुंचने के लिए पुलिस को जमकर पसीना बहाना पड़ता है और कामयाबी जब मिलती है तो वह भी आधी अधूरी, यानि अपराधी मिल गया तो अपराध कहां हुआ? कैसे हुआ? किसने किया? क्यों किया इसका सटीक जवाब पुलिस को अपराधी से नहीं मिल पाता. ऐसा ही कुछ किया था बिहार के मधेपुरा का रहने वाले चंद्रकांत झा बहुत ही शार्प तरीके से अपराध करता था और एक के बाद एक हत्याएं करता गया. हत्याएं यानि अपराध होते थे लेकिन पुलिस को सुराग नहीं मिलता था. दिल्ली पुलिस के लिए चंद्रकांत झां सिर दर्द बना हुआ था.
खुद देता था लाश की जानकारी
एक के बाद एक कई हत्याएं हो रही थी और चंद्रकांत खुद ही अपने अपराध की जानकारी पुलिस को देता था और लाश को देश की सबसे सुरक्षित जेल मानी जाने वाली तिहाड़ जेल के गेट पर रख देता था. खास बात यह रहती थी कि चंद्रकांत झां लाश के सिर को काटकर यमुना नदी में फेंक देता था. नतीजा यह होता था कि पुलिस को सिरकटी लाश के बारे में जानकारी जुटाने में ही 1-1 साल लग गए थे.
अक्टूबर 2006 से शुरू हुई चंद्रकांत के गुनाहों की कहानी
चंद्रकांत झां के गुनाहों की कहानी शुरू होती है अक्टूबर 2006 में पश्चिमी दिल्ली के हरिनगर पुलिस थाने में सवेरे फ़ोन की घंटी बजी. फ़ोन करने वाले ने बताया कि उसने तिहाड़ जेल के गेट नंबर-3 के ठीक बाहर एक लाश रखी है. मौके पर पुलिस पहुंचती और वहां लाश के साथ दिल्ली पुलिस को चुनौती देते हुए गालियां देते हुए एक चिट्ठी भी मिलती है.
पुलिस को देता था खुली चुनौती
चंद्रकांत ने हत्या की ज़िम्मेदारी लेते हुए चुनौती दी थी कि 'हिम्मत है तो पकड़कर दिखा'. अभी पुलिस एक सिरकटी लाश की गुत्थी को नहीं सुलझा पाई थी कि 25 अप्रैल 2007 को तिहाड़ जेल के गेट नंबर-3 के बाहर ठीक उसी जगह एक और लाश मिलती है. लाश के सिर हाथ और पैर गायब यानि आधी लाश. अब पुलिस के सामने दोहरी चुनौती थी. एक तरफ चंद्रकांत झां को एक और खून करने से रोकना और उसे गिरफ्तार करना था और दूसरा सिर कटी व अंग-भंग लाशों की पहचान करना. लेकिन पुलिस को चंद्रकांत ने 18 मई 2007 में एक और चुनौती दे डाली. तिहाड़ जेल के बाहर एक और सिर कटी लाश ठीक दो अन्य लाशों की तरह बांधकर टोकरी में रखी मिलती है और साथ में मिलती है एक चिट्ठी. चिट्ठी के अंत में लिखा होता है दिल्ली पुलिस का जीजा या दिल्ली पुलिस का बाप और चिट्ठी लिखने वाले के तौर पर नाम दर्ज होता था सीसी. शायद चंद्रकांत का निक नेम. चंद्रकांत का तरीका वहीं हुआ करता था. अपराध के बाद खुद ही फोन कर पुलिस को तिहाड़ जेल के गेट पर लाश होने की जानकारी देना. लेकिन कहा जाता है कानून के हाथ लंबे होते हैं और अपराधी कोई न कोई सुराग अपने पीछे छोड़ ही जाता है.
'जुगाड़' की वजह से आया गिरफ्त में
मुखबिर से दिल्ली पुलिस को सूचना मिली कि चंद्रकांत एक रेहड़ी चलाता है लेकिन रेहड़ी में इंजन फिट है. जी हां ये उस तरह की रेहड़ी बनाया जाता है जिसमें पुराने स्कूटर या बाइक के इंजन फिट किए जाते हैं. जिसे सरल और आमतौर पर जुगाड़ कहा जाता है. 2007 में इस तरह की कलाकारी कम ही देखने को मिलती थी. पुलिस के पास चंद्रकांत झां तक पहुंचने का एकमात्र क्लू यही था और मुखबिर की बात पर विश्वास करने के अलावा दिल्ली पुलिस को और कुछ नहीं सूझ रहा था. पुलिस हवा में ही तीर चला रही थी. लेकिन इस बार तीर निशानें पर लगा. दिल्ली पुलिस ने एक इलाके की पहचान की और मई 2007 में चंद्रकांत को धर दबोचा.
तुम तो इस्पेक्टर साहब हो!
दिल्ली पुलिस को अपनी कामयाबी तब और पक्की लगी जब चंद्रकांत ने खुद एक इंस्पेक्टर का नाम लेकर उससे पूछा कि आप वही हैं. दरअसर, अक्टूबर 2006 में जिस लाश को तिहाड़ जेल के सामने चंद्रकांत झां ने फेंका था उसके बारे में फोन कर उसी इंस्पेक्टर को जानकारी दी थी. इंस्पेक्टर भी उसे गिरफ्तार करने वाली टीम में शामिल थे. इंस्पेक्टर को चंद्रकांत ने बताया कि उसे उसके आवाज की पहचान थी. जबकि उसने इंस्पेक्टर से लगभग 1 साल पहले मात्र 2 मिनट के लिए ही बात की थी. तफ्तीश आगे बढ़ी और अभियोजन पक्ष की दमदार दलीलों की वजह से चंद्रकांत झां को कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई जो बाद में उम्रकैद में तब्दील हो गई और वह अभी भी जेल में सजा काट रहा है.
क्यों करता था अपराध
अब सवाल यह उठता है कि चंद्रकांत झां ने ऐसे संगीन अपराध क्यों किए. तफ़्तीश में पता चला कि चंद्रकांत झा दिल्ली पुलिस के एक हवलदार से नाराज़ था क्योंकि उस हवालदार ने उसके साथ तिहाड़ जेल के भीतर बदसलूकी की थी. चंद्रकांत झा इसी वजह से तिहाड़ जेल के गेट पर लाश रखकर दिल्ली पुलिस को परेशान करके, बदला लेना चाहता था. खैर किसी की गलती के लिए किसी निर्दोष को मारना और बदले की भावना को लेकर कोई भी अपराधी ज्यादा समय तक सामाज में नहीं रह सकता.
अपने साथियों की ही चंद्रकांत झा ने की थी हत्या
दिल्ली पुलिस ने तीन सिरकटी लाशों की गुत्थी तो सुलझा ली थी. मृतकों की पहचान अनिल मंडल उर्फ अमित, दलीप व उपेंद्र राठौर के रूप में हुई और तीनों ही मृतक चंद्रकांत के सहयोगी थे. पुलिस के अनुसार चंद्रकांत ने उपेंद्र की हत्या 24 अप्रैल 2007 में की थी. उसने उपेंद्र का सिर कटा शव 25 अप्रैल की सुबह तिहाड़ जेल के गेट नंबर तीन के पास बोरे में भर कर फेंक दिया था. सूचना मिलने पर मौके पर पहुंची पुलिस ने बोरे को खोला तो उसमें 28-30 साल के युवक का कटा हुआ सिर, हाथ व पैर थे. वहीं 25 अप्रैल की सुबह पुलिस को हैदरपुर नहर के निकट बाबा रामदेव मंदिर के पास किसी व्यक्ति का पैर पड़ा होने की सूचना मिली. पुलिस दोनों मामले में जांच कर ही रही थी कि गाजियाबाद पुलिस को सब्जी मंडी लोनी में दो संदिग्ध कार्टन मिलने की सूचना मिली. मौके पर पहुंची यूपी पुलिस ने कार्टन खोला तो उसमें एक व्यक्ति के कटे हाथ और दूसरे में संवेदनशील अंग थे. इन सभी हत्याओं को खुलासा उसकी गिरफ्तारी के बाद हो सका. मीडिया के सामने दिए गए बयानों से ऐसा नहीं लग रहा था कि चंद्रकांत झां ने तीन या चार लोगों की हत्या की हो. ये संख्या और भी ज्यादा हो सकती हैं. हालांकि ये अब सिर्फ राज बनकर रह गया है.
लाश को बोरे से निकालने में खुद ही की थी पुलिस की मदद!
पूछताछ के दौरान चंद्रकांत ने एक और खुलासा किया. उसने पुलिस अधिकारियों को यह भी बताया कि जब लाश के बोरे को पुलिस नहीं खोल पा रही थी तो उसने ही बोरे को खोलने में पुलिस की मदद की थी. दूसरी तरफ कोर्ट में जज के सामने चंद्रकांत झां ने कभी भी आपा नहीं खोया सभी सवालों के जवाब नपे तुले या कहें कि एक प्रोफेशनल की तरह देता था.
दिल्ली हाईकोर्ट ने फांसी की सजा को उम्रकैद में बदला
चंद्रकांत को अदालत ने 302 यानि हत्या 201 सबूत मिटाने 120 बी अपराधिक षणयंत्र का दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई. हालांकि 2016 में दिल्ली हाईकोर्ट ने उसकी फांसी की सजा उम्रकैद में तब्दील कर दी.
13 हत्याओं का आरोप
दिल्ली पुलिस ने चंद्रकांत झां के खिलाफ कुल 2 चार्जशीट दाखिल की. पहली चार्जशीट अगस्त 2007 में दाखिल की गई, इसमें चंद्रकांत पर 6 क़त्ल का आरोप लगाया गया था. इसके 7 महीने बाद मार्च 2008 में दिल्ली पुलिस ने दूसरी चार्जशीट दाखिल की और चंद्रकांत पर 7 हत्याओं के आरोप लगाए. 2013 में कोर्ट ने चंद्रकांत को दोषी करार दिया. उसे फांसी और उम्र कैद की सजा एक साथ मिली. बाद में चंद्रकांत की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया.
चंद्रकांत पर बनाई गई वेब सीरीज
अब आप कहेंगे कि आखिर आज चंद्रकांत झां का जिक्र क्यों किया जा रहा है. तो इसका जवाब ये है कि उसके नाम पर वेब सीरीज netflix पर आई है जिसका नाम Indian Predator: The Butcher of Delhi है. वेब सीरीज में उसके आपराधिक कृत्यों को बहुत ही करीब से दिखाया गया है.
Source : News Nation Bureau