बिहार शराब कांड की गूज ना सिर्फ बिहार में बल्कि संसद में भी है. बिहार में शराबबंदी को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं और अब इसमें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एंट्री ने बिहार से लेकर दिल्ली तक सियासी गलियारों में गर्माहट ला दी है. जहां एक तरफ, बिहार सरकार में शामिल महागठबंधन दल के नेता और स्वयं डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ये कह रहे हैं कि NHRC की टीम को भेजा गया गया है वह खुद नहीं आई है तो यहां हम ये क्लियर कर देते हैं कि डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के आरोपों से पहले ही आयोग की टीम का गठन किया जा चुका था और आयोग द्वारा कुछ भी ऐसा नहीं किया गया है जो नियमों के विरुद्ध है. दरअसल, आयोग द्वारा बिहार भेजी गई टीम का उद्देश्य संभवत: इतना ही है कि वह ये जान सके कि शराब कांड में जो अभी तक जीवित हैं उनका इलाज अच्छे से चल रहा है? क्या स्थानीय प्रशासन द्वारा पीड़ितों को डराया धमकाया जा रहा है? क्या मृतकों के परिजनों के पुनर्वास के लिए सरकार द्वारा कोई कदम उठाए गए हैं? कुछ लोगों के आंखों की रोशनी इलाज के अभाव में चली गई, इसमें क्या सच्चाई है? जैसे सवालों का उत्तर जानने के लिए NHRC की टीम ने सारण का दौरा किया है और इन सवालों का उत्तर जानने का आयोग के पास पूरा अधिकार है, इसके लिए ना तो राज्य सरकार को मुंह बनाना चाहिए और ना किसी और को. हां, अगर जांच का जिम्मा आयोग किसी दूसरी एजेंसी से कराने की बात कहता तो सवाल-जवाब करना सही माना जाता.
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सबसे पहले हम आपको ये बता दें कि आखिर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने क्या निर्ण लिया है. आयोग की वेबसाइट पर 17 दिसंबर, 2022 को एक प्रेस रिलीज जारी की गई जिसमें बिहार शराब कांड से जुड़े टीम के गठन की जानकारी दी गई है. पत्र में क्या लिखा है वो आप हू-ब-हू नीचे पढ़ सकते हैं
अब आप पाएंगे कि आयोग के प्रेस रिलीज के पांचवे पैराग्राफ में उन बिंदुओं का जिक्र किया गया है जिसकी जानकारी आयोग चाहता है और जानकारी प्राप्त करना आयोग का पूरा अधिकार है. आयोग ने पांचवे पैरा में निम्न सवालों का का जवाब जानने की अपेक्षा की है:
- प्रभावितों को चिकित्सा उपचार क्योंकि कई लोगों की आंखों की रोशनी चली गई है, पीड़ितों या उनके परिवारों को दिया गया मुआवजा, यदि कोई हो.
- प्राथमिकी और मामले में लापरवाह पाए जाने पर लोक सेवकों के खिलाफ की गई कार्रवाई.
आयोग के पास सवालों के जवाब जानने का पूरा हक
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के दोनों ही सवालों का जवाब बिहार सरकरा से तलब करने का पूरा अधिकार आयोग के पास आयोग के नियमों के मुताबिक है सुरक्षित है. पहला देश के प्रत्येक नागरिक को स्वास्थ्य सेवाओं और बेहतर चिकित्सा का अधिकार संवैधानिक रूप से प्राप्त है और अगर लोगों के आंखों की रोशनी वाकई में उपचार की कमी के कारण गई है, तो निश्चित तौर पर यहां राज्य सरकार की गलती मानी जाएगी और उसे मुआवजा भी देना पड़ सकता है.
दूसरे सवाल का जवाब बिहार सरकार के लिए एक लाइन में दिया जा सकता है. मामले में प्राथमिकी दर्ज कर ली गई है. कई आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है और जेल भेजा जा चुका है. स्थानीय थाने के थानाध्यक्ष व अन्य पुलिसकर्मियों को सस्पेंड किया जा चुका है.
NHRC को लेकर हो रही है राजनीति?
एनएचआरसी का सिर्फ अप्रत्यक्ष रूप से शराब कांड में संबंध है लेकिन मामले में प्राथमिकी दर्ज होने के बाद और मामला कोर्ट के संज्ञान में आने के बाद एनएचआरसी का कोई मतलब शराब कांड में जांच का नहीं रह जाता लेकिन एक स्वतंत्र संस्था होने के नाते आयोग के पास इस बात को जानने का पूरा अधिकार है कि क्या शराब कांड में शामिल लोगों का बेहतर इलाज किया जा रहा है? क्या उनके साथ स्थानीय प्रशासन द्वारा कोई गलत व्यवहार किया जा रहा? उन्हें डराया धमकाया जा रहा? और इसके लिए आयोग राज्य के मुख्य सचिव या डीजीपी से जवाब तलब कर सकता है और एक जवाबी पत्र के साथ ही एनएचआरसी का इस मामले से रोल खत्म हो जाएगा. एक बड़ा सवाल मुआवजा से जुड़ा है. 2016 में शराब से मरनेवालों के लिए मुआवजे का प्रावधान था लेकिन शराबबंदी कानून में संसोधन होने के बाद मुआवजे का प्रावधान खत्म हो चुका है ऐसे में बिहार सरकार इसका जवाब भी एक लाइन में दे सकती कि अब शराब से मरनेवालों के लिए मुआवजे का कोई प्रावधान संसोधित कानून के तहत नहीं रह गया है और बात यही पर खत्म हो जाएगी.
मुद्दे से भटकाने के लिए हो रही सियासत
अब सवाल ये उठता है कि एक जवाबी पत्र देने से क्या बिहार की महागठबंधन सरकार बच रही है? खासकर तब जब मामले में प्राथमिकी दर्ज की जा चुकी है, आरोपी गिरफ्तार किए जा चुके हैं, विवेचना प्रचलित है और मामला कोर्ट के संज्ञान में है. एनएचआरसी अपने सवालों का जवाब पाने के बाद मामले में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं कर सकेगी, जब तक कि मानवाधिकारों का उल्लंघन ना हो. ऐसे में सवाल ये उठ रहा है कि एनएचआरसी के 4 सवालों का जवाब जो कि बिहार सरकार के पास पहले से ही मौजूद है, उससे बचने के लिए और मुद्दे को भटकाने के लिए बिहार में सियासी संग्राम मचा हुआ है?
क्या है मुद्दा?
70 से ज्यादा लोगों की मौत छपरा में जहरीली शराब पीने से हो जाती है लेकिन वो शख्स अभी तक गिरफ्त से बाहर है जिसने इतने लोगों को एक साथ शराब बांटी या पिलाई. मुद्दा ये है कि क्या बिहार की खुफिया विंग सो रही है कि एक जगह 70 से ज्यादा लोग इकट्ठे होते हैं और शराब का सेवन करते हैं? क्या उत्पाद विभाग की टीम सोती रहती है कि इतनी मात्रा में शराब बनाई जाती है, सप्लाई की जाती है और लोग उसका सेवन करते हैं? क्या स्थानीय पुलिस इतना बड़ा कांड होने की जानकारी नहीं जुटा पाता? मुद्दा ये भी है कि 70-70 लोगों को शराब वितरित की जाती है और पुलिस, उत्पाद विभाग, खुफिया विभाग को इसकी भनक तक नहीं लगती?
सबसे बड़ा मुद्दा ये है कि जिस राज्य में शराबबंदी लागू की गई है वहां लगभग सभी जिलों में आए दिन शराब की खेप बरामद की जाती है. तो क्या शराबबंदी कानून कमजोर है? या शराब माफिया और तस्कर कानून के साथ खेलते रहते हैं. मुद्दा ये भी है कि अगर सरकार धरातल पर शराबबंदी कानून को लागू नहीं कर पा रही है तो ऐसे कानून को बनाए रखने का मतलब ही क्या है?
HIGHLIGHTS
- NHRC की जांच पर ऐतराज क्यों?
- मानवाधिकारों की रक्षा करता है आयोग
Source : Shailendra Kumar Shukla