17 नवंबर से देशभर में आस्था का महापर्व छठ की शुरुआत होगी. यूं तो देशभर में धूमधाम से छठ को मनाया जाता है, लेकिन पूर्वी राज्यों बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में इस पर्व की अगल ही रौनक देखने को मिलती है. छठ बिहारियों का सबसे बड़ा पर्व कहा जाता है. यह पर्व चार दिन तक मनाया जाता है. पर्व के पहले दिन नहाय खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य और चौथे यानि आखिरी दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. छठ एक मात्र ऐसा महापर्व है, जिसमें डूबते सूर्य की भी पूजा की जाती है. छठ में रेलवे स्टेशनों से लेकर बस स्टैंड हर जगह घर जाने के लिए यात्रियों की भारी भीड़ देखी जाती है. ट्रेनों में लंबी वेटिंग लिस्ट के साथ ही स्टेशन पर कदम तक रखना मुश्किल हो जाता है क्योंकि इस पर्व में हर कोई अपने घर जाने के लिए उत्साहित नजर आता है.
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छठ की बात करें और गायिका शारदा सिन्हा की बात ना की जाए, ऐसा हो ही नहीं सकता. कुछ लोगों के लिए तो छठ का गाना मतलब शारदा सिन्हा के बिना आवाज के तो मानों पूरा ही नहीं होता. बुजूर्ग ही नहीं बल्कि बड़े-बच्चे हर किसी की जुबान पर शारदा सिन्हा के गाने रहते हैं.
हो दिनानाथ, केलवा के पात पर, हे गंगा मैया जैसे गाने भले ही कई साल पुराने हो, लेकिन आज भी छठ के दौरान यही गाने हर घर में और छठ घाटों पर बजते हुए सुनाई देते हैं. यहां तक कि छठ के आगाज के साथ सोशल मीडिया पर युवा पीढ़ी भी इन्हीं गानों पर रील्स बनाते नजर आते हैं. आस्था के इस पर्व में अपने गानों से चार चांद लगाने वाली गायिका शारदा सिन्हा की आज हम बता करते हैं. शारदा सिन्हा का सिंगर बनने का सफर बिलकुल भी आसान नहीं था.
8 भाईयों में इकलौती बहन
शारदा सिन्हा ने एक बार इंटरव्यू में बताया था कि कैसे काफी मन्नतों के बाद करीब 30-35 साल के बाद उनके घर में लड़की का जन्म हुआ था. गायिका 8 भाइयों में इकलौती बहन हैं, उनके जन्म के बाद उनकी मां ने कोसी भरा था. बिहार-यूपी के कुछ क्षेत्र में छठ पर्व की शाम अर्घ्य के बाद और सुबह के अर्घ्य से पहले कोसी भरा जाता है, जिसमें महिलाएं सोहर और छठ के गीत गाती है और साथ ही दीप जलाए जाते हैं.
बचपन से शारदा को गानों से था प्यार
शारदा सिन्हा जब 3-4 साल की थी, वह तब से ही कविताओं को भी स्वर में गाया करती थी. उनके संगीत के प्रति इस प्रेम को उनके पिता ने भांप लिया था, जिसके बाद उनके लिए संगीत शिक्षक बुलाया गया. यहीं से उनका गायिकी का सफर शुरू हुआ. इसके बाद शारदा घर के हर त्यौहार चाहे वो शादी हो या कुछ भी उसमें गाने बजाने लगी.
शारदा सिन्हा की सास को नहीं पसंद था बहू का गाना
शादी से पहले ही शारदा सिन्हा के पिता ने यह बता दिया था कि उनकी बेटी को गाने का बहुत शौक है. जिस वजह से उनके पति ने तो गाने को सपोर्ट किया, लेकिन उनकी सास को बहू का गाना गाना पसंद नहीं था. धीरे-धीरे लोगों के मुंह से बहू की तारीफ सुनते-सुनते उन्हें भी शारदा का गाना आखिरकार पसंद आने लग गया.
पहले गाने की रिकॉर्डिंग की दिलचस्प कहानी
शादी के कुछ महीनों बाद ही यानी 1971 में एचएमवी ने नई प्रतिभा की खोज में प्रतियोगिता का आयोजन किया था. शारदा भी इसमें भाग लेने के लिए लखनऊ पहुंची थी. उस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए कई बड़े-बड़े सिंगर भी पहुंचे थे. पहले तो शारदा को गाने का मौका नहीं मिला, लेकिन जब उन्होंने दोबारा अनुरोध किया तो फिर से मौका मिला. इस बार शारदा ने खुद से लिखा हुआ गाना ‘द्वार के छेकाई नेग पहिले चुकइयौ, यौ दुलरुआ भइया’गाया. अच्छी बात यह थी कि जब शारदा ने यह गाना गाया तो उस समय एचएमवी के बड़े अफसर वीके दुबे भी मौजूद थे. जैसे ही उन्होंने शारदा की आवाज सुनी, सुनते ही कहा- रिकॉर्ड दिस आर्टिस्ट और इस तरह से उनका पहला गाना रिकॉर्ड और रिलीज किया गया.
बॉलीवुड फिल्मों में भी गाए सुपरहिट गाने
छठ के गानों के अलावा शारदा सिन्हा ने हिंदी फिल्मों के लिए भी कई सुपरहिट गाने गा चुकी है. फिल्म 'मैंने प्यार किया' का फेमस गाना 'कहे तोसे सजना ये तोहरी सजनिया', बाबुल जो तुमने सिखाया, तार बिजली से पतले हमारे पिया जैसे सुपरहिट गाने गाए हैं.
मिल चुके हैं कई अवॉर्डस
अपने गानों के लिए शारदा सिन्हा को 1991 में पद्मश्री, 2000 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 2006 में राष्ट्रीय अहिल्या देवी अवॉर्ड, 2015 में बिहार सरकार पुरस्कार और 2018 में पद्मभूषण से सम्मानित किया जा चुका है.
HIGHLIGHTS
- सास को नहीं पसंद था बहू का गाना
- बचपन से शारदा को गानों से था प्यार
- 8 भाईयों में इकलौती बहन
Source : News State Bihar Jharkhand