बिहार के विश्व प्रसिद्ध राजगीर के मलमास मेले पर कोरोना का साया

तीन वर्षों में एक बार लगने वाला मलमास इस वर्ष 18 सितंबर को प्रारंभ हुआ.

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Nihar Saxena
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कोरोना के ग्रहण से जूझता बिहार का राजगीर मेला.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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हिन्दू (Hindu) मान्यताओं के मुताबिक मलमास (अधिमास) महीने में कोई शुभ कार्य नहीं होता है, लेकिन बिहार (Bihar) के नालंदा जिले के राजगीर में विश्व प्रसिद्घ मलमास मेला लगने की परंपरा है, जिसमें बड़ी संख्या में साधु संत और श्रद्घालु जुटते थे. इस साल कोरोना (Corona Epidemic) काल में इस मेले पर प्रतिबंध के कारण पूरा मेला क्षेत्र सूना पड़ा हुआ है. तीन वर्षों में एक बार लगने वाला मलमास इस वर्ष 18 सितंबर को प्रारंभ हुआ. इस मौके पर अंतराष्ट्रीय तीर्थ स्थल राजगीर में अनादि काल से लगते आ रहा मलमास अर्थात पुरुषोत्तम मास का शुभारंभ वैदिक मंत्रोचारण व ध्वजारोहण के साथ शुक्रवार को किया गया.

33 लाख देवी-देवती एक साथ करते हैं प्रवास
प्राचीन मान्यता के अनुसार एक माह तक चलने बाला मलमास के दौरान 33 लाख देवी देवता पूरे एक माह तक राजगीर में हीं प्रवास करते हैं. ब्रहमकुण्ड परिसर के सप्तधारा कुण्ड में सोसल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए वैदिक मंत्रोचारण के साथ पूजा अर्चना कर 33 लाख देवी देवताओं का आहवान किया गया. इस दौरान पंडा समिति राजगीर के द्वारा कुण्ड परिसर में महाआरती का आयोजन भी किया गया.

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दंत कथा
कोविड-19 को लेकर अनादि काल से चलता आ रहा मलमास के इतिहास में पहली बार काफी सादगी वाले वातावरण में मलमास की शुरूआत हुई. राजगीर तीर्थ पंडा समिति के प्रवक्ता सुधीर उपाध्याय कहते हैं कि इस एक महीने में राजगीर में काला काग को छोड़कर हिन्दुओं के सभी 33 करोड़ देवता राजगीर में प्रवास करते हैं. उन्होंने बताया कि प्राचीन मान्यताओं और पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र राजा बसु द्वारा राजगीर के ब्रह्म कुंड परिसर में एक यज्ञ का आयोजन कराया गया था जिसमें 33 लाख देवी-देवताओं को निमंत्रण दिया गया था और वे यहां पधारे भी थे, लेकिन काला काग (कौआ) को निमंत्रण नहीं दिया गया था.

नहीं दिखता काला कौआ
जनश्रुतियों के मुताबिक इस एक माह के दौरान राजगीर में काला काग कहीं नहीं दिखते. इस क्रम में आए सभी देवी देवताओं को एक ही कुंड में स्नानादि करने में परेशानी हुई थी तभी ब्रह्मा ने यहां 22 कुंड और 52 जलधाराओं का निर्माण किया था. इस ऐतिहासिक और धार्मिक नगरी में कई युग पुरूष, संत और महात्माओं ने अपनी तपस्थली और ज्ञानस्थली बनाई है. इस कारण मलमास के दौरान यहां लाखों साधु संत पधारते हैं. मलमास के पहले दिन हजारों श्रद्घालुओं ने राजगीर के गर्म कुंड में डूबकी लगाते थे और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करते थे. इस साल स्नान पर भी पाबंदी है.

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करोड़ों का कारोबार होता है मेले में
मान्यता है कि अधिमास के दौरान जो मनुष्य राजगीर में स्नान, दान और भगवान विष्णु की पूजा करता है उसके सभी पाप कट जाते हैं और वह स्वर्ग में वास का भागी बनता है. शास्त्रों में मलमास तेरहवें मास के रूप में वर्णित है. धार्मिक मान्यता है कि इस अतिरिक्त एक महीने को मलमास या अतिरिक्त मास या पुरूषोतम मास कहा जाता है. राजगीर के विधायक रवि ज्योति कुमार कहते हैं कि मलमास के दौरान मेला नहीं लगने से राजगीर के शहरवासी ही नहीं सरकार को भी भारी राजस्व का घाटा उठाना पड़ा है. मेला की निविदा से भारी राजस्व की प्राप्ति होती थी. मलमास के दौरान यहां प्रत्येक दिन करोड़ों रुपये का करोबार होता था.

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