बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाला है. इससे पहले एक बार फिर प्रदेश में भोजपुरी को आधिकारिक भाषा बनाने की मांग तेज हो गई है. दरअसल, हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पांच भाषाओं मराठी, प्राकृत, पाली, बंगाली और असमिया को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया. केंद्र के इस फैसले के बाद से भोजपुरी को आधिकारिक भाषा घोषित करने की मांग फिर से उठी है. बिहार में भोजपुरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है. भोजपुरी को आधिकारिक भाषा बनाने की मांग महागठबंधन की सरकार कर रही है.
फिर उठी भोजपुरी को आधिकारिक भाषा बनाने की मांग
भाकपा माले के नेता सुदामा प्रसाद ने मांग करते हुए कहा कि बिहार के कई जिलों में भोजपुरी भाषा बोली जाती है. फिर भी केंद्र इसे आठवीं अनुसूची में शामिल क्यों नहीं कर रही है? केंद्र सरकार ने इस पर चुप्पी क्यों साध रखी है? संविधान में पहले 14 भाषाओं को ही शामिल किया गया था, लेकिन बाद में अतिरिक्त 8 भाषाओं को शामिल किया गया. अब संविधान की 8वीं अनुसूची में 22 भाषाएं शामिल है.
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एनडीए भोजपुरी भाषी के साथ कर रहा सौतेला व्यवहार
हमने इस मुद्दे को विधानसभा में उठाया था और आगे भी उठाएंगे. नीतीश सरकार इस पर ध्यान नहीं दे रही है. उन्हें केंद्र सरकार को एक विस्तृत रिपोर्ट भेजनी चाहिए कि भोजपुरी को आधिकारिक भाषा क्यों दिया जाना चाहिए. एनडीए की सरकार भोजपुरी भाषी लोगों के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है. भोजपुरी की बात करें तो यह ज्यादातर गंगा के मैदानी इलाकों में बोली जाने वाली भाषा है.
1971 में पहली बार उठी थी भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग
भोजपुरी बहुत पुरानी और समृद्ध भाषा है. भोजपुरी ज्यादातर बिहार, यूपी, झारखंड में बोली जाती है. इसके अलावा भोजपुरी भाषी लोग विदेशों में भी रह रहे हैं. मॉरिशस में तो भोजपुरी भाषी की संख्या काफी बड़ी है. भोजपुरी भाषा को 8वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग आज नहीं उठी है, बल्कि 1971 में सीपीआई सांसद भोगेंद्र झा ने लोकसभा में इस बिल को पेश किया था. इसके बाद बिहार के डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने भी 2013 में यह मांग उठाई थी. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ भी भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग लोकसभा में उठा चुके हैं, लेकिन अब तक भोजपुरी को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल नहीं किया गया है.