बिहार की धरती से हुए स्वतंत्रता सेनानी डॉ. अनुग्रह नारायण सिन्हा सिर्फ एक स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं थे बल्कि कुशल राजनेता थे बल्कि एक अच्छे अधिवक्ता. एक अच्छे वक्ता. एक महान स्वतंत्रता सेनानी और बहुत कुछ थे. बिहार विभूति. विहार निर्माता और भी कई नामों से नवाजे गए डा अनुग्रह नारायण सिन्हा का जन्म औरंगाबाद जिले के पोईअवा में 18 जून 1887 को हुआ. उनके पिता ठाकुर विशेश्वर दयाल सिंह जी अपने इलाके के एक वीर पुरुष थे. 5 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद डॉ. सिन्हा की पढ़ाई लिखी शुरू हुई.
- बिहार के निर्माता डॉ. अनुग्रह नारायण सिन्हा की कहानी
- अनुग्रह नारायण सिन्हा से बिहार निर्माता बनने की कहानी
- ‘बिहार निर्माता’ से ‘बिहार विभूति’ बनने की कहानी
सन् 1900 में औरंगाबाद मिडिल स्कूल, 1904 में गया जिला स्कूल और 1908 में पटना कॉलेज में एडमिशन ले लिया. वकालल की पढ़ाई की और वकील भी बने. महात्मा गांधी और स्वतंत्रता सेनानियों के लिए अदालतों में पैरवी भी किया. और उनका मन भी अन्य स्वतंत्रता सेनानियों की तरह देश को आजाद कराने की जुगत में लग गया. सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तथा योगिराज अरविंद जैसे महान लोगों के विचार उनके मन में घर बना चुके थे. सर्फूद्दीन के नेतृत्व में ‘बिहारी छात्र सम्मेलन’ नामक संस्था संगठित की गई, जिसमें देशरत्न राजेन्द्र बाबू और अनुग्रह बाबू, ऐसे मेधावी छात्रों को कार्य करने तथा नेतृत्व करने का अवसर मिला
- महात्मा गांधी के कंधों से मिलाया कंधा
- चम्पारण से शुरू किया सत्याग्रह आंदोलन
- देश की आजादी में रही महापुरुषों के साथ सहभागिता
- आधुनिक बिहार के निर्माता माने जाते हैं डॉ. अनुग्रह बाबू
- प्यार से डॉ. अनुग्रह को लोग कहते थे ‘बिहार विभूति’
डॉ. अनुग्रह बाबू ने अंग्रेजों के खिलाफ चम्पारण से अपना सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया था. इनकी देश की आजादी में सहभागिता रही थी. उन्होंने महात्मा गांधी एवं डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद के साथ राष्ट्रीय आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थे. अनुग्रह बाबू आधुनिक बिहार के निर्माता थे. वे देश के उन गिने-चुने सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में से थे जिन्होंने अपने छात्र जीवन से लेकर अंतिम दिनों तक राष्ट्र और समाज की सेवा की. उन्होंने आधुनिक बिहार के निर्माण के लिए जो कार्य किया, उसके कारण लोग उन्हें प्यार से बिहार विभूति के नाम से पुकारते हैं.
- चम्पारण के किसान आंदोलन को जोरशोर से चलाया
- चम्पारण के नील आंदोलन में बापू के साथ कंधे से कंधा मिलाया
- 26 जनवरी 1930 को सारे देश में स्वतंत्रता की घोषणा पढ़ी गई
चम्पारण का किसान आंदोलन 45 महीनों तक जोरशोर से चलता रहा. अनुग्रह बाबू बराबर उसमें काम करते रहे और आखिर तक डटे रहे. अनुग्रह बाबू ने चम्पारण के नील आंदोलन में गांधीजी के साथ लगन और निर्भीकता के साथ काम किया और आंदोलन को सफल बनाकर उनके आदेशानुसार 1917 में पटना आये. सन् 1920 के दिसंबर में नागपुर में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन हुआ, जिसमें अनुग्रह बाबू ने भी भाग लिया. सन् 1929 के दिसंबर में सरदार पटेल ने किसान संगठन के सिलसिले में मुंगेर आदि शहरों का दौरा किया, तब अनुग्रह बाबू सभी जगह उनके साथ थे. 26 जनवरी 1930 को सारे देश में स्वतंत्रता की घोषणा प़ढी गई. अनुग्रह बाबू को भी कई स्थानों में घोषण पत्र प़ढना प़ढा.
- गांधी जी के नारे ‘करो या मरो’ को किया बुलंद
- अंग्रेजी हुकूमत के कोप भाजन का हुए शिकार
- 15 महीने तक हजारीबाग जेल में रहे बंद
कुछ दिनों के बाद महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह आंदोलन शुरू कर दिया. उस सिलसिले में उन्हें चम्पारण, मुजफ्फरपुर आदि स्थानों का दौरा करना प़डा. 26 जनवरी 1933 को अंग्रेजी हुकूमत द्वारा उन्हें उस समय गिरफ्तार कर लिया गया जब वह पटना में घोषणा पत्र पढ़ रहे थे,,, उन्हें 15 महीने की सजा हुई और उन्हें हजारीबाग जेल भेज दिया गया. देश की परिस्थिति को देखते हुए जब गांधीजी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह अपनाया . ऐसे में अनुग्रह बाबू कहां पीछे रहने वाले थे. नतीजा यह हुआ कि 1940 में उन्हें फिर से एक बार अंग्रेजी हुकूमत के कोप भाजन का शिकार होना पड़ा और 1941 तक जेल में रहना पड़ा. गांधीजी का ‘करो या मरो’ का नारा बुलंद हुआ. जिसके बाद 7 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी को अग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया. अब सारे देश में एक बार ही बिजली की तरह आंदोलन की आग फैल गई. कांग्रेस कमिटियां जब्त कर ली गई और कांग्रेस नेता जहां के तहां गिरफ्तार कर लिये गये. 10 अगस्त 1942 को अनुग्रह बाबू भी जब अपने मित्रों से मिलने गये, एकाएक मार्ग में ही गिरफ्तार कर लिये गये. सन् 1944 में जब सारे कांग्रेसी नेता जेल से मुक्त किये जाने लगे, तो अनुग्रह बाबू भी कारावास की कैद से आजाद कर दिये गये.
- 2 जनवरी 1946 से अपने निधन तक बिहार के उप मुख्यमंत्री रहे
- 1937 से लेकर 1957 तक कांग्रेस विधायक दल के उप नेता रहे
1946 में जब बिहार में दूसरा मंत्रिमंडल बना तब अनुग्रह बाबू को वित्त और श्रम दोनों विभागों का पहला मंत्री बनाया गया. अपने मंत्री रहते उन्होंने विशेषकर श्रम विभाग में अपनी न्याय प्रियता लोकतांत्रिक विचारधारा एवं श्रमिकों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का जो परिचय दिया उसकी जीतनी भी तारीफ की जाये कम होगी. श्रम मंत्री के रूप में अनुग्रह बाबू ने ‘बिहार केन्द्रीय श्रम परामर्श समिति’ के माध्यम से श्रम प्रशासन तथा श्रमिक समस्याओं के समाधान के लिए जो नियम एवं प्रावधान बनाये वे आज पूरे देश के लिये मापदंड के रूप में काम करते हैं.उसके बाद तीसरे मंत्रिमंडल में उन्हें खाद, बीज, मिट्टी, मवेशी में सुधार लाने के लिए शोध कार्य करवाए और पहली बार जापानी ढंग से धान उपजाने की पद्धति का प्रचार कराया. पूसा का कृषि अनुसंधान फार्म उनकी ही देन है.
- 13 वर्षों तक निस्वार्थ भाव से की बिहार की सेवा
- बिना काफिले और पुलिस सुरक्षा के लोगों से निकल पड़ते थे मिलने
- बिना प्रचार-प्रसार के उनकी सभाओं में लोग होते थे इकट्ठे
बिहार के विकास में डा अनुग्रह नारायण सिन्हा का योगदान अतुलनीय है. बिहार के प्रशासनिक ढांचा को तैयार करने का काम अनुग्रह बाबू ने किया था. प्रभावशाली पद पर होने के बावजूद उन्होंने अपना पूरा जीवन सादगी से बिताया. बिहार के लिए उन्होंने बहुत से ऐसे काम किये थे, जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता है. उनके कार्यकाल में बिहार में उद्योग धंधों का जाल बिछा. अनुग्रह बाबू ने 13 वर्षो तक बिहार की अनवरत सेवा की. वे बिहार प्रांत के उप-प्रधानमंत्री और आज़ादी के बाद पहले उपमुख़्यमंत्री सह वित्त मंत्री रहे और साथ ही एक दर्ज़न विभागों के मंत्री रहे परन्तु उनमे चमत्कारिक सरलता थी,सरकारी यात्राओं में भी स्वयं की तनख्वाह से भोजन करते थे और अविभाजित बिहार के सुदूर हिस्सों तक बिना किसी काफिले और पुलिस सुरक्षा के अपनी खुद की गाडी से चले जाते थे, यही कारण था की बिहार के जनमानस ने उन्हें बिहार विभूति के अलंकार से सुशोभित किया और बिना किसी प्रचार प्रसार के उनके आगमन पर भीड़ जमा हो जाया करती थी.
अनुग्रह बाबू का निधन 5 जुलाई 1957 को उनके निवास स्थान पटना में बीमारी के कारण हुआ. उनके निधन पर राज्य में 7 दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया था. अनुग्रह बाबू 2 जनवरी 1946 से अपनी मृत्यु तक बिहार के उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री रहे. अनुग्रह बाबू बिहार विधानसभा में 1937 से लेकर 1957 तक कांग्रेस विधायक दल के उप नेता थे. प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह एवं उनकी जोड़ी मिसाल मानी जाती है. कुछ ऐसी ही थी बिहार विभूति डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह की कहानी.
Source : News State Bihar Jharkhand