बिहार के सरकारी स्कूलों की बदहाली अक्सर सुर्खियों में रहती है. कभी पढ़ाई को लेकर, कभी शिक्षकों की लापरवाही को लेकर तो कभी शिक्षा व्यवस्था को लेकर. अभी भी बिहार में कई ऐसे स्कूल हैं जिन्हें अभी तक अपना भवन तक नसीब नहीं हुआ है. सूबे के स्कूलों में सरकार की तरफ से लगातार शिक्षा व्यवस्था को बेहतर किए जाने की बात कही जा रही है लेकिन जमीनी हकीकत सरकार के दावों के विपरीत है.
समस्तीपुर के स्कूलों का हाल
समस्तीपुर जिले में भवन और भूमिहीन विद्यालयों की संख्या 252 है . इन स्कूलों में कई ऐसे स्कूल भी शामिल हैं जहां पर आज भी छात्र-छात्राओं के लिए ना तो शौचालय है और ना ही पीने के लिए पानी की व्यवस्था है. इतना ही नहीं जिले के 163 भूमिहीन और 89 भवनहीन विद्यालय संचालित हैं, जो दूसरे स्कूलों से टैग होकर संचालित किए जा रहे हैं .
शिक्षकों की कमी से जूझ रहे स्कूल
एक तरफ स्कूल भवनहीन और भूमिहीन की समस्या से जूझ रहे हैं तो दूसरी तरफ स्कूलों में शिक्षकों की भी कमी है. कहीं जरूरत से ज्यादा शिक्षकों की तैनाती की गई है तो कहीं पर 1 या 2 शिक्षकों के भरोसे स्कूल संचालित हो रहा है.
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23 साल में भी नहीं पूरी हो सकी जमीन की तलाश
1999 से जिले का शिक्षा विभाग भवनहीन विद्यालयों के लिए भूमि की तलाश कर रहा है. आज 23 वर्ष पूरा होने के बाद भी स्कूलों के लिए भूमि की तलाश पूरी नहीं हो सकी है. विद्यालय शिक्षा समिति के साथ-साथ स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने भी स्कूल के भवनों के निर्माण को लेकर किसी भी प्रकार की कोई भी पहल कभी भी नहीं की. नतीजा ये हुआ कि भवनहीन विद्यालयों में 1 से 5 तक पढ़ रहे 10,000 से ज्यादा बच्चे खुले आसमान के नीचे बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं.
आरएसबी इंटर विद्यालय का हाल
आरएसबी इंटर विद्यालय परिसर में प्राचार्य के क्वार्टर में स्कूल संचालित हो रहा है. क्वार्टर के छोटे-छोटे 4 कमरों में 2 विद्यालय का संचालन किया जा रहा है . यह विद्यालय एक -दो वर्ष से नहीं बल्कि पिछले 9 वर्षों से इसी तरह संचालित है लेकिन जिला मुख्यालय के बीचो-बीच और शिक्षा भवन, जहां शिक्षा विभाग के तमाम बड़े अधिकारी काम करते हैं उनके कार्यालय से महज 500 मीटर की दूरी पर ये स्कूल है.
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प्रिंसिपल क्वार्टर में चल रहे विद्यालय का नाम राजकीय प्राथमिक विद्यालय कांग्रेस भवन है. 1 से 5 तक चलने वाले इस विद्यालय में 116 बच्चे हैं और यहां 3 शिक्षिकाओं की तैनाती की गई है. विद्यालय के एक छोटे कमरे को कार्यालय और स्टोर रूम के रूप में उपयोग किया जा रहा है और इसी कमरे में छात्र बैठकर पढ़ाई भी कर रहे हैं. दूसरे कमरें और बरामदे में बच्चे पढ़ने को मजबूर हैं. कुछ बच्चे संकीर्ण कमरे में बैठकर पढ़ाई करते हैं.
दूसरा स्कूल- राजकीय कन्या प्राथमिक विद्यालय
प्रिंसिपल क्वार्टर में चल रहे दूसरे स्कूल का नाम राजकीय कन्या विद्यालय है. इस विद्यालय में भी 1 से 5 तक के बच्चों को पड़ाया जाता है और यहां 2 शिक्षकों की तैनाती है और यहां 72 बच्चे पढ़ाई करते हैं. स्कूल भवन ना होने के कारण बच्चे किचन शेड और स्नान घर में पढ़ने के लिए मजबूर हैं.
ना पीने को पानी और ना शैचालय
स्कूल में बच्चों के लिए ना तो पीने के लिए पानी की व्यवस्था है और ना ही शौचालय की. पीने के लिए पानी शिक्षक बाहर से खरीदकर मंगवाते हैं और मध्यांतर भोजन पकाने के लिए भी पानी खरीदना पड़ता है. वहीं, बच्चों को अपने घर से ही पीने के लिए बोतल में पानी भरकर लाना पड़ता है.
क्या कहते हैं जिम्मेदार?
मामले में जब समस्तीपुर के जिला शिक्षा पदाधिकारी मदर राय से बात की गई तो उन्होंने कहा कि जिले के लगभग सभी विद्यालयों में पीने के लिए पानी और शौचालय की व्यवस्था है. अगर कुछ जगहों पर व्यवस्था नहीं है तो उन स्कूलों को चिन्हित कर वहां शौचालय और पीने के लिए पानी की व्यवस्था कराई जाएगी.
रिपोर्ट: मन्टुन रॉय
HIGHLIGHTS
. न्यूज स्टेट की पड़ताल में खुली शिक्षा व्यवस्था की पोल
. 4 कमरे में चल रहे दो-दो स्कूल
. ना पीने को पानी और ना है स्कूल में शौचालय
Source : News State Bihar Jharkhand