पटना हाईकोर्ट ने राज्य में होने वाले नगर निकाय चुनाव पर आरक्षण के मसले को लेकर लगभग रोक लगा दी है. पटना हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि बिहार सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग ने पिछड़ों को आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का इस चुनाव की प्रक्रिया में पालन नहीं किया. इस फैसले के साथ ही बिहार में 10 अक्टूबर को होने वाला चुनाव फिलहाल टल गया है. कोर्ट के इस फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय ट्रिपल टेस्ट की प्रक्रिया निर्वाचन आयोग को पूरी करनी होगी. जानकारी के मुताबिक नई व्यवस्था में अतिपिछड़ा सीट सामान्य माने जाएंगे. नगर निकाय चुनाव में पिछड़े के आरक्षण पर मंगलवार को आए पटना हाईकोर्ट के आदेश के बाद बिहार में राजनीति गरमा गई है.
जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने हाईकोर्ट के इस फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है. उन्होंने इसके लिए केंद्र सरकार को जिम्मेवार ठहराया तो बीजेपी ने भी जेडीयू पर पलटवार किया है. विधान परिषद में प्रतिपक्ष के नेता सम्राट चौधरी ने सीधे सीधे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को घेरा है. वहीं, भाजपा प्रवक्ता निखिल आनंद ने नीतीश पर अति पिछड़ा समाज पर धोखा देने का आरोप लगाया है. बीजेपी ने पूछा कि आरक्षण के लिए आयोग के गठन की जिम्मेदारी किसकी थी? दुर्भाग्य है कि इन लोगों ने आयोग का गठन नहीं किया. यह जिम्मेदारी किसकी थी, आयोग का गठन कराकर अगर आरक्षण की प्रक्रिया की जाती तो यह नौबत नहीं आती.
साफ है पटना हाईकोर्ट के फैसले के बहाने एक दूसरे पर वार-पलटवार के पीछे वजह है पिछड़ा-अति पिछड़ा वोट बैंक की सियासत. दरअसल बिहार की सियासत में पिछड़ा-अति पिछड़ा वर्ग एक निर्णायक भूमिका में माने जाते हैं. 90 के दशक में लालू ने पिछड़ों के सहारे 15 सालों तक बिहार में राज किया, तो नीतीश ने अतिपिछड़ों को अपना कोर वोटबैंक बनाकर अपना दबदबा कायम रखा है. वहीं, बीजेपी भी पिछड़ा-अति पिछड़ा वोट बैंक में सेंध लगाकर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में है.
दरअसल पिछड़ा और अति पिछड़ा वोटों का प्रतिशत बिहार में लगभग 45 फीसदी के आसपास है, 25 फीसदी के आसपास अति पिछड़ा वोट बैंक है. ऐसे में राजनीतिक दलों के निशाने पर पिछड़ा अति पिछड़ा वोट बैंक रहता है. बिहार में अति पिछड़ी जातियां किंगमेकर मानी जाती है. राज्य में कुल 144 जातियां ओबीसी में शामिल हैं, जबकि 113 जातियां अति पिछड़ा और 31 जातियां पिछड़ा वर्ग के तहत है. यही वजह है कि सियासी दलों की नज़रें पिछड़ा-अतिपिछड़ा वोट बैंक पर टिकी है.
बिहार में पिछड़े वोट बैंक पर BJP की नजर
महागठबंधन की सरकार बनने और अलग-थलग पड़ने के बाद बिहार में बीजेपी की नजर पिछड़े वोट बैंक पर है. जिसका ताजा उदाहरण हैं महाराष्ट्र के कद्दावर नेता विनोद तावड़े, जिन्हें बिहार प्रभारी बनाया गया है. बीजेपी ने पिछड़ी सियासत को धार देने के लिए बिहार प्रभारी के तौर पर विनोद तावड़े पर दांव लगाया है. बीजेपी इस कोशिश में है कि पिछड़ा अति पिछड़ा वोट बैंक में सेंधमारी की जाए.
अतिपिछड़ों पर आरजेडी की 'तेज' नज़र
हाल ही में राज्य परिषद की बैठक में डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने कार्यकर्ताओं को साफ संदेश दिया था कि तेजस्वी ने कहा कि गरीबों को जोड़ने का काम करना है. अतिपिछड़ों को जोड़ना है. आपलोग अतिपिछड़ों के टोलो में जाइए. उनको सम्मान दीजिए, तब वे पार्टी से जुडे़ंगे. सभी लोगों को जोड़िए.
अति पिछड़ा वोट बैंक पर है जेडीयू की पकड़
लालू के पिछड़ों की राजनीति की काट के तौर पर नीतीश ने अति पिछड़ा वर्ग को आगे आकर किया था. कुर्मी, कोईरी समेत अति पिछड़ों को साधकर नीतीश ने एक अलग वोटबैंक बनाया, जो लगातार नीतीश के साथ रहा. सीएम नीतीश ने अति पिछड़े छात्रों के लिए छात्रावास, सिविल सेवा प्रोत्साहन योजना, पंचायती राज में अतिपिछड़ों को आरक्षण के ज़रिए इनके बीच पकड़ बनाने की कोशिश की.
अति पिछड़ों की सियासत, लेकिन आयोग का गठन क्यों नहीं?
कहने के लिए तो बीजेपी, आरजेडी, जेडीयू समेत सभी दल अति पिछड़ों की हितैषी होने का दंभ भरते हैं, लेकिन सच्चाई ये है कि बिहार में पिछले 6 साल से पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग आयोग निष्क्रिय हालत में है. जबकि 127 वें संशोधन के ज़रिए मोदी सरकार ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया और 10 अगस्त 2021 को लोकसभा में ओबीसी आरक्षण को लेकर 127 वां संविधान संशोधन बिल पारित किया गया. संविधान संशोधन से राज्य सरकारों को सूची तैयार करने का अधिकार मिल गया, राज्य सरकार OBC लिस्ट को लेकर अंतिम फैसला ले सकेगी, लेकिन बावजूद इसके राज्य सरकार ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया. जबकि इस दौरान सत्ता में नीतीश के साथ बीजेपी और आरजेडी दोनो पार्टियां साझीदार रहीं. जिसका नतीजा है कि आज नगर निकाय चुनाव में अतिपिछड़ों को आरक्षण के मुद्दे पर हाईकोर्ट ने आयोग के गठन नहीं होने और थ्री लेयर टेस्ट पूरा नहीं करने पर चुनाव पर रोक लगा दी है. ज़ाहिर है पिछड़ों-अति पिछड़ों को साधने और उनके नाम पर सियासत तो खूब होती रही, लेकिन एक अदद आयोग के गठन में किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई.
Source : News Nation Bureau