बेगूसराय में बछवारा प्रखंड के किसानों ने एनएच-28 पर आलू फेंककर जमकर प्रदर्शन किया. दरअसल किसानों की मांग है कि आलू का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP तय की जाए. क्योंकि बंपर पैदावार होने के बाद भी उन्हें उचित कीमत ना मिलने से मुनाफा नहीं हो पाता. बेगूसराय में अन्नदाता सड़क पर हैं. फसलों को गाड़ियों से रौंदकर बर्बाद कर रहे हैं. पैदावार बंपर हुई है, लेकिन नुकसान झेलने को मजबूर हैं. अब आलम ये है कि नारेबाजी और प्रदर्शन के अलावा किसानों के पास कोई और चारा नहीं है.
फसलें कर रहे हैं बर्बाद
बिहार की सरकार किसान हितैषी होने का दावा करती है. साथ ही दावा करती है राज्य में किसानों को कोई परेशानी नहीं है, लेकिन किसानों की परेशानी का अंदाजा इस बात से लगाइये कि जिस फसल को अपने मेहनत के पसीनों से सींचकर पैदा करते हैं उसे बर्बाद करने पर मजबूर हो रहे हैं. क्योंकि देश का पेट भरने वालों को दो वक्त की रोटी मिलेगी या नहीं ये डर सता रहा है.
किसानों का अनोखा प्रदर्शन
बेगूसराय के किसानों ने सड़क पर आलू फेंककर अनोखा प्रदर्शन किया. नारेबाजी करते हुए किसानों ने सरकार के खिलाफ नाराजगी जताई. आलू की उचित कीमत ना मिलना किसानों के बीच आक्रोश की वजह है, जिसके चलते किसानों ने सड़क आलू फेंककर उसे गाड़ियों से रौंदकर बर्बाद कर दिया. एनएच- 8 पर किसानों ने कई क्विंटल आलू को बर्बाद कर अपना विरोध दर्ज कराया और केंद्र के साथ ही राज्य सरकार के खिलाफ भी नारेबाजी की. दरअसल बेगूसराय जिले के अलग-अलग इलाकों में बड़े पैमाने पर आलू की खेती की जाती है. इस बार पैदावार भी बंपर हुई है, लेकिन हर बार की तरह किसानों को पैदावार की सही कीमत नहीं मिल रही है. जिससे नाराज किसानों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
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न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने की मांग
किसानों की परेशानी सिर्फ इतनी भर नहीं है. उन्हें इस बार ना तो व्यापारी मिल रहे हैं और ना ही आलू को स्टोर करने के लिए कोल्ड स्टोरेज... लिहाजा आलू घर में रखे-रखे खराब हो रहे हैं. ऐसा नहीं है कि किसानों की परेशानी की जानकारी प्रशासन को नहीं है. कई बार लिखित रूप में भी किसानों ने जिला प्रशासन को परेशानी से रुबरु कराया, प्रदर्शन भी किए, लेकिन हालात जस के तस हैं. हारकर अन्नदाता सड़क पर उतरने को मजबूर हो गए हैं. अब किसानों की मांग है कि केरल की तर्ज पर हरी साग सब्जियों और आलू का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाए. किसानों ने साथ ही फसल बर्बाद होने पर मिलने वाले मुआवजे को बंद करने के फैसले पर भी नाराजगी जताई और कहा कि किसान भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं.
किसान वर्ग बड़ा वोट बैंक
गौरतलब है कि लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव किसानों का मुद्दा सियासतदानों के लिए पसंदीदा होता है. कृषि प्रधान देश में किसान वर्ग बड़ा वोट बैंक है. इसलिए चुनावी मौसम में वादों की बरसात होती है, लेकिन चुनाव के बाद उन्हीं किसानों की हालत क्या होती है. ये तस्वीर ही बयां कर रही है. अब देखना ये होगा कि किसानों की मांग पर शासन-प्रशासन सुनवाई करती भी है या नहीं.
रिपोर्ट : जीवेश तरुण
HIGHLIGHTS
- एक बार फिर सड़क पर अन्नदाता...
- NH-28 पर किसानों का प्रदर्शन
- सड़क पर आलू फेंक किसानों का आक्रोश
- उचित रेट ना मिलने पर आक्रोशित किसान
- शासन-प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी
Source : News State Bihar Jharkhand