कोरोना काल में भले ही लॉकडाउन में लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जो इस आपदा में भी अवसर तलाश लेते हैं. ऐसे ही हैं बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के सुगौली प्रखंड के रहने वाले फारूख आलम. दो साल पहले तक दिल्ली की एक कंपनी में कर्मचारी थे, लेकिन वे आज स्वयं मालिक बनकर 30 से 35 लोगों को गांव में ही रोजगार उपलब्ध करा रहे हैं. मुजफ्फरपुर के बंगरा सुगौली गांव के रहने वाले 36 वर्षीय फारूख को चार-पांच साल पहले जब बिहार में काम नहीं मिला तब वे रोजगार की तलाश में दिल्ली पहुंच गए. रेडिमेड कपडे सिलने और बनाने में हुनरमंद फारूख को दिल्ली की एक रेडिमेड कपड़ा बनाने वाली कंपनी में नौकरी भी मिल गई और फारूख की जीवन की गाड़ी आगे चलने लगी.
लेकिन, पिछले वर्ष जब कोरोना ने देश में दस्तक दी और लॉकडाउन लगा तो फारूख की जिंदगी में तूफान खडा कर दिया. दिल्ली के गांधीनगर में रहकर फारूख ने किसी तरह तो लॉकडाउन के कुछ समय निकाले, लेकिन उसके बाद मुश्किलें बढ़ती गई. उन्होंने अपने गांव लौटने का निश्चय किया और फिर दूसरे काम की तलाश में दूसरे शहर नहीं जाने की कसमें खा ली. फारूख बताते हैं, 'कोरोना की पहली लहर निकलने के बाद दिल्ली में साथ काम करने वाले रामगढवा, रक्सौल, हरसिद्धि क्षेत्र के लोगों से संपर्क किया और अपने गांव में ही रेडिमेड कपडे बनाने की काम प्रारंभ करने का निर्णय लिया. वे लोग भी गांव में आने को राजी हो गए और पांच सिलाई मशीनों से काम प्रारंभ कर दिया.'
पहले गांव और स्थानीय शहरों के लिए काम किया और ट्रैकसूट और जैकेट बनाई. इसकी मांग मुजफ्फरपुर, हाजीपुर, गोपालगंज शहरों में होने लगी. उन्होंने कहा कि इसके बाद जब अन्य जगहों से भी ऑर्डर आने लगे तो गांव में ही बडा हॉलनुमा घर बनाया और काम तेज कर दिया. आज उनके कारखाने में 30 सिलाई मशीनें और कई अन्य मशीनें हैं, जो रेडिमेड कपडे बनाने के काम में आती हैं. उन्होंने कहा कि इसके बाद उनके बनाए गए कपडों की मांग दिल्ली, कोलकत्ता और गुवाहाटी तक में होने लगी. वे कहते हैं कि इन शहरों में भी ट्रैकसूट, टीशर्ट और जैकेट भेजे जा रहे हैं.
उन्होंने कहा कि कोरोना की दूसरी लहर में लगे लॉकडाउन में उन्हें यहीं पर 10 हजार मास्क बनाने के कार्य मिल गए हैं, जिसे वे तैयार कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि आज इस कारखाने में 30 से 35 लोग काम कर रहे हैं. इस कारखाने में काम करने वाले शमशाद बताते हैं कि आज अल्लाह की रहम से हम सभी को गांव में ही काम मिल रहा है, इससे बड़ी खुशी क्या हो सकती है. उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति मजबूरी में अपने गांव, अपने परिवार को छोडकर अन्यत्र जाता है.
शमशाद कहते हैं कि जो काम हमलोग दिल्ली में करते थे वही काम आज हम यहां भी कर रहे हैं और पैसे की बचत हो रही है, जबकि दिल्ली में सभी खर्च हो जाते थे. उन्होंने कहा आज फारूख इस क्षेत्र के लिए आदर्श हैं. फारूख आगे की योजना के संबंध में बताते हैं कि जैसे-जैसे काम और आगे बढेगा इस कारखाने का बढ़ाया जाएगा. प्रारंभ से ही अपने गांव से प्रेम करने वाले फारूख का मानना है कि आज दूसरी लहर में भी बाहर रहने वाले लोगों की परेशानी बढ़ी होगी. उन्होंने कहा कि आज वे यहां हैं तभी कुछ लोगों की मदद भी कर पा रहे हैं, अन्य शहर में रहता तो दूसरों से मदद मांगता.
Source : IANS/News Nation Bureau