नवादा की तस्वीर ने एक बार फिर बिहार के हेल्थ सिस्टम को सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है. दरअसल यहां एक मरीज को एंबुलेंस ना मिलने की वजह से उसे ठेले पर लादकर अस्पताल तक पहुंचाया गया. बिहार सरकार स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर दावे भले ही कितने ही क्यों ना कर ले, लेकिन अक्सर ऐसी तस्वीर सामने आती हैं जो हेल्थ सिस्टम को सवालों के कटघरे में लाकर खड़ा कर देती है. ताजा मामला नवादा जिले के सदर अस्पताल का है, जहां सिरोमनी नाम की महिला कई दिनों से बीमार थी. जब महिला की अचानक तबीयत ज्यादा खराब होने लगी तो परिजन आनन-फानन में टोल फ्री नंबर पर कॉल किया, लेकिन बार-बार कॉल करने पर भी नंबर नहीं मिला. इस बीच मरीज की हालत और खराब होती जा रही थी. जिसके बाद मजबूर होकर परिजन मरीज को अस्पताल लेकर आए.
2 किलोमीटर तक ठेले पर मरीज
परिजन करीब 2 किलोमीटर तक ठेले को धक्का देकर मरीज को अस्पताल तक लाए. जिसके बाद उसे भर्ती किया गया. हालांकि डॉक्टरों ने मरीज की हालत को देख उसे दूसरे अस्पताल में रेफर कर दिया. दूसरे अस्पताल में भर्ती कराया गया इससे जाहिर है कि मरीज की हालत गंभीर थी. ऐसे में सवाल उठता है कि अगर उसे अस्पताल पहुंचने में देर हो जाती तो कौन जिम्मेदार होता? क्या टोल फ्री नंबर सिर्फ खानापूर्ति के लिए है?
स्वास्थ्य व्यवस्था भगवान भरोसे
बार-बार बिहार से ऐसी तस्वीरें क्यों सामने आ रही है. क्या स्वास्थ्य मंत्री का मिशन 60 सिर्फ अस्पताल के बिल्डिंग को चमकाने के लिए था? ये सवाल बार-बार उठते हैं, लेकिन ना तो जिम्मेदारों पर कार्रवाई होती है और ना ही व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए कोई पहल की जाती है. ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था भगवान भरोसे है.
सुपौल से भी आई थी ऐसी ही तस्वीर
8 जून को भी सुपौल के सदर अस्पताल में ऐसी ही तस्वीर देखने को मिली थी. यहां एक सफाईकर्मी बेहोश होकर गिरा था. उसकी गंभीर हालत को देखते हुए सदर अस्पताल ने रेफर किया था, लेकिन रेफर करने के 4 घंटे बाद भी उसे एंबुलेंस नहीं मिल पाई थी. अस्पताल में मौजूद एंबुलेंस को कैंसर मरीज के लिए रिजर्व बताया गया था.
रिपोर्ट : अमृत गुप्ता
HIGHLIGHTS
- 'ठेले' पर स्वास्थ्य व्यवस्था
- फिर सवालों में हेल्थ सिस्टम
- मरीज को क्यों नहीं मिली एंबुलेंस?
- लचर व्यवस्था का कौन जिम्मेदार?
Source : News State Bihar Jharkhand