लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) में चाचा पशुपति कुमार पारस और भतीजे चिराग पासवान के बीच बढ़ी दरार से पार्टी में भी घमासान मचा हुआ है. शुक्रवार को एक बार फिर चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस के बीच तीखी बयानबाजी हुई. पशुपति ने कहा कि अब चिराग न तो अध्यक्ष हैं और न ही संसदीय दल के नेता. वहीं चिराग पासवान ने दिल्ली में चुनाव आयोग से मुलाकात की. उन्होंने कहा कि पार्टी के अध्यक्ष वो ही हैं, बंद कमरे में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव नहीं होता. अब बड़ा सवाल यह है कि क्या वास्तव में चिराग पासवान लोजपा के अध्यक्ष नहीं रहे और हां तो ये किस संविधान के तहत हुआ?
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पशुपति पारस कैम्प की दलील: लोजपा के संविधान के तहत ऐसे हटाये गए चिराग:
1..लोजपा का संविधान कहता है कि 3 साल में किसी भी पदाधिकारी को बदला जा सकता है,ये संविधान में लिखा है।यानी आजीवन अध्यक्ष की बात गलत।अगर ऐसा नही तो चिराग अपनी माँ को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव कैसे ले गए थे।
2..कहीं ये जिक्र नही की अविश्वास प्रस्ताव नही लाया जा सकता।
3..15 जून को दिल्ली में कार्यसमिति की बैठक हुई जहां अविश्वास प्रस्ताव लेकर बहुमत से चिराग पासवान को अध्यक्ष पद से हटाया गया।
4..संविधान के धारा 19(1) में इस बात का जिक्र की कार्यकारिणी किसी एक सदस्य को निर्वाची पदाधिकारी बना सकती है और वो दो साल तक किसी पद पर नही रहेगा।इसके तहत दिल्ली में 15 तारीख की बैठक में सूरजभान सिंह जो उपाध्यक्ष थे उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेवारी दी गयी।अगले अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए उन्हें निर्वाची पदाधिकारी भी बनाया गया।
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5..पटना में 17 जून को कार्यकारिणी की बैठक,पारस गुट का दावा 71 में 56 सदस्य इनके साथ थे।
धारा 6 में कार्यकाल के जिक्र
धारा 27 संसदीय दल की शक्तियां, जिसके अध्यक्ष पारस पहले बनाये गए
धारा 22 जिसके तहत चुनाव का विवाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी निपटायेगी।
धारा 20 राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का कोरम
धारा-6,20,19,22,27 जिसके आधार पर पशुपति कुमार पारस के निर्वाचन को सही ठहराया जा रहा है
HIGHLIGHTS
- लोजपा में पशुपति पारस और चिराग पासवान के बीच बढ़ी दरार से पार्टी में भी घमासान
- एक बार फिर चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस के बीच तीखी बयानबाजी हुई
- पशुपति ने कहा कि अब चिराग न तो अध्यक्ष हैं और न ही संसदीय दल के नेता