गया में कुष्ठ आश्रम अस्पताल की हालत इस कदर जर्जर है कि अस्पताल में कब हादसा हो जाए, कह नहीं सकते. अस्पताल में जगह-जगह दीवारें टूटी है. कमरे खंडहर में तब्दील हो चुके हैं. आलम ये है कि मरीजों को बरामदे में रखा जा रहा है और यहीं उनका जैसे तैसे इलाज किया जा रहा है. बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त करने के दावे तो बहुत किए जाते हैं, लेकिन उन दावों पर काम कितना होता है ये तस्वीरें गवाह हैं. गया के कुष्ठ आश्रम में ना तो बेड हैं, ना मरीजों के रहने के लिए व्यवस्था. कमरों की हालत बेहद खराब है.
इस अस्पताल में बदइंजामियों की भरमार है. यहां कुष्ठ मरीजों के लिए एक शौचालय तक नहीं है. बेड के नाम पर कुछ चार पाई हैं, जो अस्पताल के बरामदे में लगाई गई है. यहीं जैसे तैसे मरीजों को रखा जाता है और इनका इलाज किया जाता है. हालांकि सभी मरीज इतने भाग्यशाली नहीं होते कि उन्हें चारपाई भी नसीब हो जाए. ऐसे में एक पतली सी चादर जमीन पर बिछा दी जाती है और जमीन पर ही मरीजों को लेटा दिया जाता है.
बताया जा रहा है कि 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध के समय ही एडवर्ड द सेवेंथ मेमोरियल के नाम पर लेपर एसायलम के नाम से इस अस्पताल की स्थापना की गई थी. उस वक्त यहां 300 के करीब मरीजों के रहने की क्षमता थी. अस्पताल में पूरे मगध प्रमंडल के कुष्ठ मरीज इलाज कराने आते थे, लेकिन अस्पताल की हालिया तस्वीरों को देख लगता है कि स्थापना के बाद से अस्पताल की सुध ही नहीं ली गई. करीब 12 एकड़ में अस्पताल का कैंपस है, लेकिन भवन के नाम पर कुछ खंडहरनूमा कमरे हैं. लिहाजा भर्ती मरीज बरामदे में रहने को मजबूर हैं. डॉक्टरों की बात करें तो अस्पताल में सिर्फ 1 फार्मासिस्ट और 1 फिजियोथेरेपी डॉक्टर है. इन्हीं के भरोसे यहां इलाज चल रहा है. छत की हालत ऐसी है कि यहां एक और दिन रहना भी बड़े हादसे को दावत देने जैसा है.
हालांकि मरीजों की परेशीन सिर्फ जर्जर अस्पताल नहीं है. यहां चोरों का भी काफी आतंक है. वहीं, मरीजों के लिए खाना बनाने वालों को दैनिक मजदूरी के तौर पर काम दिया जाता है, लेकिन पिछले 3 साल से उन्हें भी एक पैसा नहीं मिला है. वहीं, सिविल सर्जन सिंह का कहना है कि अस्पताल के लिए नया भवन बन गया है, जिसमें जल्द सभी मरीजों को शिफ्ट किया जाएगा.
रिपोर्ट : अजीत कुमार
Source : News Nation Bureau