कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता. एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों. इस कहावत को चरितार्थ कर रही है छपरा के बनियापुर की रहने वाली बेटी कुमारी अंकिता. अंकिता ग्रेजुएशन पार्ट 2 की फाइनल परीक्षा दे रही हैं. बीमारी ने उसके हाथों को कमजोर कर दिया, लेकिन उनके हौसले ने उसे कभी कमजोर नहीं होने दिया. छपरा के बनियापुर के किराना व्यापारी अशोक प्रसाद की इस बेटी को चार साल की उम्र में मेंजाइटीस बीमार ने घेर लिया था. जिसके बाद परिवार वालों ने पटना से लेकर मुंबई तक इसका इलाज कराया. जिससे अंकिता स्वस्थ तो हो गई, लेकिन उसके हाथों की ऊंगलियों ने काम करना बंद कर दिया और गले की आवाज भी खराब हो गई.
बीमारी ने अंकिता की ऊंगलियों और आवाज को तो उससे छीन लिया, लेकिन उसके हौसले को पस्त न कर सकी. अब अंकिता ने अपने पैर को ही हाथ के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. उसी से लिखने की प्रैक्टिस शुरू कर दी और आज की तारीख में वे अपने पैरों से भी खूबसूरत अक्षर उकेर देती हैं. अंकिता पढ़-लिख कर एक बेहतर मुकाम हासिल करना चाहती हैं और उसे ये कुछ इस तरह से बयां भी कर रही हैं.
अंकिता का जन्म साल 2000 में एक साधारण परिवार में हुआ था. अंकिता के तीन बहन और एक भाई है. जिसमें वो सबसे बड़ी हैं. मां चंद्ररेखा देवी एक गृहिणी हैं, लेकिन उनकी बेटी अपनी जिंदगी में एक मुकाम हासिल करना चाहती है. इसके लिए वो रामजयपाल कॉलेज में बीए-पार्ट 2 की परीक्षा भी दे रही हैं. कॉलेज के प्राचार्य और केंद्राधीक्षक डॉक्टर इरफान अली ने अंकिता के हौसले और उसके लिखावट की कुछ इस तरह से प्रसंशा भी की है.
प्राचार्य के मुताबिक परीक्षा के दौरान जय प्रकाश विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर फारूक अली ने अंकिता से मिलकर उसकी शिक्षा के लिए मदद और विश्वविद्यालय का ब्रांड एंबेसडर बनाने की घोषणा करने की बात कही है. जो अपने आप में गौरव की बात है. अंकिता उसके लिए भी एक नजीर हैं. जो हाथों से विकलांग हैं, लेकिन उनके सपने अंकिता के जैसे ही हैं.
रिपोर्ट : बिपिन कुमार मिश्रा
HIGHLIGHTS
- पैरों से तकदीर लिखती अंकिता
- बीमारी ने हाथों और आवाज को छीना
- अंकिता के हौसले को नहीं पस्त कर पाई बीमारी
- पढ़-लिखकर मुकाम हासिल करना चाहती है अंकिता
Source : News State Bihar Jharkhand