बिहार की मिट्टी से एक और स्वतंत्रता सेनानी का जन्म हुआ था और नाम था कर्पूरी ठाकुर. बिहार के दूसरे उप मुख्यमंत्री और दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे. कर्पूरी ठाकुर को गरीबों का चैंपियन कहा जाता था वह लोगों के बीच इतने लोक प्रिय थे कि उन्हें उनके नाम की जगह जन नायक कहकर पुकारा जाता था. कर्पूरी ठाकुर कैसे बने जन नायक आइए जानते हैं. कोई अपने काम से जाना जाता है. कोई अपने नाम से जाना जाता है और कोई अपने नाम व काम दोनों से जाना जाता है. ऐसा ही एक नाम था कर्पूरी ठाकुर. बिहार की राजनीति का वो सितारा जिसने बहुत पहले ही बिहार के दिशा और दशा तय कर दी थी. शराब बंदी की बात हो या शिक्षा की हर क्षेत्र में कर्पूरी ठाकुर ने जी जान से काम किया. कर्पूरी ठाकुर का जैसे-जैसे कद कद बढ़ा वैसे-वैसे लोगों के दिलों में उतरते गए. जब लोगों के दिलों में उतरे तो लोगों ने उन्हें कई नाम दे डाले. उन्हें गरीबों का चैंपियन . और जन नायक जैसे नामों से पुकारा जाने लगा. कर्पूरी ठाकुर 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 तक सोशलिस्ट पार्टी भारतीय क्रांति दल की तरफ से और फिर 24 जून 1977 – 21 अप्रेल 1979 तक जनता पार्टी के नेतृत्व में बिहार के मुख्यमंत्री रहे.
- छात्र जीवन से ही शुरू कर दिया था राजनीति का सफर
- ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में भी निभाई अहम भूमिका
- स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने पर 26 महीनों के लिए जेल में रहे बंद
राजनीति ही शायद वह क्षेत्र है जहां आपको खुद ही अपने लिए मैदान बनाना पड़ता है. हालांकि आजकल परिवारवाद और भाई-भतीजावाद भारत की राजनीति में सिर चढ़कर बोल रहा है. लेकिन कर्पूरी ठाकुर के समय हालात ऐसे नहीं थे. बिहार के समस्तीपुर जिले के पितौंझिया में एक नाई परिवार में जन्मे कर्पूरी ठाकुर शुरू से ही सामाज सेवा में आगे रहे. और सामाज सेवा की सोच के साथ छात्र जीवन से ही राजनीति के क्षेत्र में आ गए. सबसे पहले उन्होंने ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन को छात्र एक्टीविस्ट के रूप में ज्वाइन किया और. स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन में भी हिस्सा लिया. भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लेने की वजह से अन्य क्रांतिकारियों के साथ – साथ कर्पूरी ठाकुर को भी अंग्रेजी हुकूमत के गुस्से का शिकार हुए. परिणाम स्वारूप कर्पूरी ठाकुर को 26 महीने तक जेल में रहना पड़ा. इतना ही नहीं आजाद भारत के बाद भी उन्हें केंद्रीय कर्मचारियों के हक में किए गए हड़ताल की वजह से वर्ष1960 में जेल यात्रा करनी पड़ी. कर्पूरी ठाकुर पहली बार 1952 में ताजपुर विधानसभा सीट से चुनकर विधानसभा पहुंचे थे.
- आम छात्रों के लिए शिक्षा को बनाया आसान
- शराब मुक्त बिहार की बहुत पहले ही रख दी नींव
किसी भी राज्य, देश को बढ़ाने में अगर सबसे बड़ा किसी का योगदान होता है तो वह है शिक्षा. आजाद भारत के बाद बिहार में भी शिक्षा को लेकर तमाम चुनौतियां थीं. इनमें सबसे बड़ी चुनौती यह थी की 10वीं के छात्र के लिए अंग्रेजी विषय का जरूरी होना. शुरू से ही हिंदी भाषा के पक्षधर रहे कर्पूरी ठाकुर को यह बात अक्सर खटकती थी. 05 मार्च 1967 को राज्य के शिक्षामंत्री पद को संभालते ही कर्पूरी ठाकुर ने बिहार के 10वीं के छात्रों के सामने खड़े अंग्रेजी रूपी पहाड़ को राई बना डाला और अंग्रेजी को अनिवार्य विषिय की जगह एच्छिक विषय बना डाला. यानि अब छात्रों के सिर पर अंग्रेजी भाषा को थोपने वाली बात नहीं रह गई थी.
आज बेशक बिहार में शराब बंदी की बात की जाती हो और इसका श्रेय मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को दिया जाता हो लेकिन हकीकत यह है कि जन नायक, गरीबों के चैंपियन कर्पूरी ठाकुर ने 70 के दशक में ही शराब मुक्त बिहार की नीव रख चुके थे. व शराब मुक्त बिहार के पक्षधर थे. आज भी कर्पूरी ठाकुर लोगों के दिलों में बसते हैं और बिहार के पिछड़े क्षेत्रों में तमाम स्कूलों, कॉलेजों के नाम कर्पूरी ठाकुर के नाम पर हैं. कुल मिलाकर कर्पूरी ठाकुर, दबे, कमजोरों और पिछड़ों के साथ-साथ सभी वर्गों को साथ लेकर चलने वाले राजनेता थे.
Source : News State Bihar Jharkhand