बिहार में एक नई राजनीतिक परिस्थिति उत्पन्न हुई है. सरकार में साझीदार जद यू और भाजपा एक दूसरे के आमने सामने हैं. आलम ये की विशेष राज्य के दर्जे के मुद्दे पर सदन से सड़क तक दोनों दल एक दूसरे के खिलाफ जहर उगल रहे हैं. अब तो गठबंधन को भी इन दलों के नेता चुनौती दे रहे हैं. वर्ष 2005 में जब से नीतीश कुमार भारतीय जनता पार्टी के साथ बिहार में सरकार में आये इनके रिश्ते बीच के दो साल छोड़ दें तो काफी बेहतर रहे हैं. वर्ष 2020 में जद यू और भाजपा के गठबंधन के साथ बिहार में एनडीए की सरकार फिर से बन तो गई मगर इस सरकार में शुरू से ही रिश्तों की मिठास कम दिखी.
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पिछले दिनों जातीय जनगणना के मुद्दे पर जद यू ने विपक्ष के साथ मिल पटना से दिल्ली तक भाजपा पर दबाव बनाया जिसके लिए बीजेपी तैयार नहीं थी और अब जद यू एक और पुराने मुद्दे को लेकर उतरी है और इस बार मुद्दा है विशेष राज्य का दर्जा. इस मुद्दे को अलग-अलग स्तर पर पिछले कुछ दिनों से जद यू के नेता उठा रहे थे मगर इसने गठबंधन में आग पिछले हफ्ते गुरुवार को लगाई. लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बोलते हुए जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सांसद ललन सिंह ने विशेष राज्य के दर्जे के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया.
उन्होंने कहा कि नीति आयोग का मतलब होता है नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया और नीति आयोग की रिपोर्ट में यह बताया गया कि बिहार बहुत पिछड़ा है तो अगर पिछड़े राज्य को आप आगे नहीं रखेंगे तो विकसित राष्ट्र की कल्पना आप कैसे कर सकते हैं. आपका यह सपना अधूरा रहेगा. इंडिया का ट्रांसफॉरमेशन कैसे होगा इसलिए हमारी मांग है कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलना चाहिए. इस भाषण के दौरान उन्होंने भाजपा के सदन में मौजूद सांसदों पर भी निशाना साधा. उन्होंने राजीव प्रताप रूडी को कहा कि आज भले ही यह लोग हमारा साथ नहीं दे रहे हैं मगर विधानसभा में सर्वसम्मति से विशेष राज्य के दर्जे का प्रस्ताव पास हुआ था तब यह लोग भी हमारे साथ थे और अब तो यह इनके हाथ में भी नहीं हैं. प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार है और प्रधानमंत्री से हम यह मांग बार-बार कर रहे हैं.
सदन में जद यू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तेवर भाजपा को परेशान कर गए हैं. उन्हें लगा मानो जद यू भाजपा को कटघरे में खड़ा कर दबाव बना रही है. सोमवार को भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और सांसद संजय जयसवाल ने एक फेसबुक पोस्ट कर दिया. ये पोस्ट विशेष राज्य के दर्जे के विरोध के साथ सीधे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कार्यशैली पर सवाल था. उन्होंने लक्ष्य तय किया और सरकार पर इशारों में आरोप भी लगाए.
बिहार को अगर आगे बढ़ाना है तो सरकार को ये लक्ष्य रखने ही होंगे :
1. बिहार सरकार को हर हालत में उद्योगों को बढ़ावा देना होगा. जब तक हम औद्योगिक नीतियां लाकर नए उद्योगों को बढ़ावा नहीं देंगे तब तक ना हम रोजगार देने में सफल हो पाएंगे और ना हीं बिहार की आय बढ़ेगी. शाहनवाज हुसैन अच्छा प्रयास कर रहे हैं पर पूरे मंत्रिमंडल का सहयोग आवश्यक है.
जहां भी संभव हो वहां प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप होनी चाहिए. उद्योग लगाने वालों को विलेन समझने की मानसिकता बिहार को कहीं का नहीं छोड़ेगी. बड़ौदा बस स्टैंड विश्व स्तर का है पर ऊपर की मंजिलों में दुकानें खोलकर सारी राशि की भरपाई कर ली गई और गुजरात सरकार का एक पैसा भी नहीं लगा. वैसे ही गांधीनगर के पूरे साबरमती फ्रंट का डेवलपमेंट उसी में एक निश्चित भूमि प्राइवेट हाथों में देकर अनेक पार्क सहित पूरे फ्रंट को विकसित करने का कीमत निकाल लिया गया.
3. हम 6 वर्षों में भी प्रधानमंत्री जी के दिए हुए पैकेज का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाए हैं. अभी भी दस हजार करोड़ रुपये से ज्यादा बकाया है. एक छोटा उदाहरण मेरे लोकसभा का रक्सौल हवाई अड्डा है जिसके लिए प्रधानमंत्री पैकेज में ढाई सौ करोड़ रुपए मिल चुके हैं पर बिहार सरकार द्वारा अतिरिक्त जमीन नहीं देने के कारण आज भी यह योजना रुकी हुई है. प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना में भी बिहार को हजारों करोड़ रुपए मिलने हैं. अगर हमने भूमि उपलब्ध नहीं कराया तो ये किस्से कहानियों की बातें हो जाएंगी.
4. केंद्र सरकार की योजनाओं का समुचित उपयोग करना होगा. जैसे बिहार सरकार के जल नल योजना में केंद्र की 50% राशि लगी है जिसका इस्तेमाल हम पंचायती राज की अन्य योजनाओं में कर सकते थे और जल नल योजना की राशि सीधे जल संसाधन विभाग से ले सकते थे. पिछले वित्तीय वर्ष में 6 हजार करोड़ की राशि बिहार सरकार को आवंटित की गई थी पर जल नल योजना के मद में हमने यह पैसे नहीं लिए.इस तरह की राशियों का सही उपयोग हमें करना होगा.
5. जनसंख्या नियंत्रण के लिए हमें स्वयं काम करना होगा. केवल यह सोच कि समाज स्वयं शिक्षा के साथ जनसंख्या को नियंत्रित कर लेगा के चक्कर में बहुत ही देर हो जाएगी. आज भी हम जनसंख्या स्थिरीकरण के लिए कोई अभियान नहीं चला रहे हैं जबकि इसमें भी बिहार पूरे देश में सबसे ज्यादा फिसड्डी है. अगर केरल के अस्पताल 100 बेड जोड़ते हैं तो प्रति हजार व्यक्ति में इसका इजाफा दिखता है. हम 200 बेड भी जोड़ते हैं तो 300 बच्चे पैदा करने के कारण वह नीति आयोग के आंकड़े में कहीं नहीं दिखता और हम अपनी कमी दूर करने के बजाय नीति आयोग की शिकायत करते हैं. उन्होंने पोस्ट में मुख्यमंत्री के नियत पर ही सवाल उठा दिया. जब हमने एक अच्छे लक्ष्य के लिए गुजरात की भांति 15 हजार करोड़ रुपए की तिलांजलि दी है तो सरकारी राशि का उपयोग होटल और बस स्टैंड जैसी योजनाओं में सैकड़ों करोड़ खर्च करके भवन निर्माण विभाग को खुश करने के बजाय गरीबों के कल्याणकारी योजनाओं में होना चाहिए. पीपीपी मोड में इन सब चीजों को बनाने से सरकार का एक पैसा भी नहीं लगेगा उल्टे उसकी आमदनी बढ़ेगी. वैसे भी फाइव स्टार होटल बनाना सरकार का काम नहीं है.
6. इधर भाजपा के केंद्रीय मंत्री से लेकर सांसद तक ने सार्वजनिक मंच से दो दिनों में ताबड़तोड़ हमले नीतीश कुमार पर किए. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने विशेष दर्जे के औचित्य पर सवाल खड़ा किया. हद तो ये की सारण लोकसभा क्षेत्र से भाजपा सांसद सह राष्ट्रीय प्रवक्ता, पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी ने नीतीश कुमार के नीतियों पर सवाल उठाए. नीति आयोग ने पता नहीं क्यों बिहार को पिछड़े राज्यों की श्रेणी में है रखा जबकि मध्यप्रदेश व राजस्थान आगे निकल गए. तमिलनाडु देश का सबसे विकसित राज्य हो गया, महाराष्ट्र और आगे निकल गए. राज्य में निवेश से विकास नहीं होगा. निवेश को लक्ष्य, सोच और विजन से जोड़ने पर होगा विकास. बिहार राज्य तो है ही, विशेष राज्य होने के लिए नीति की बात है, लेकिन उससे पहले जो योजनाएं है उसको तो फ़टाफ़ट पूरा करवाया जाय.
7. भाजपा की तिलमिलाहट के बाद जो आक्रमक रवैया नेताओं का रहा है उसने बड़ा बखेड़ा कर दिया है. जद यू अब खुल कर भाजपा को जवाब देना शुरू कर चुकी है. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष को खरी खोटी सुना रहे हैं. विशेष राज्य के दर्जे के जिद पर अड़े हैं. नीरज कुमार कह रहे हैं कि खुद इनके विधायक दल के नेता वित्त मंत्री तारकिशोर प्रसाद हैं जिन्होंने केंद्र को खत लिख वित्तीय समस्याओं से अवगत कराया था, जिसका एहसास शायद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जयसवाल को नहीं है. इधर विपक्ष इस पूरी गतिविधि पर नज़र जमाये बैठा है. इन्हें तो लग रहा कि बस अब सरकार गिरने को तैयार है. इन्होंने राजनीतिक भविष्यवाणी करना शुरू कर दिया है. इनकी माने तो ये सरकार अब कभी भी गिर सकती है. जो परिस्थिति अब दिख रही है उसमें तो ऐसा लग रहा है कि बिहार में जन समस्याओं से बड़ी चुनौती इस गठबंधन को बचाये रखने की है. अगर दोनों दल के तेवर यही रहे तो बिहार में राजनीतिक अस्थिरता से इनकार नहीं किया जा सकता है.