कसबा विधानसभा सीट पर राजनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है. इस सीट पर मुख्य रूप से बीजेपी और कांग्रेस की लड़ाई मानी जाती है. 2010 के चुनाव में कांग्रेस के अफाक आलम ने बीजेपी के प्रदीप कुमार दास को पराजित किया. इससे पूर्व इस सीट पर लगातार तीन बार भारतीय जनता पार्टी का कब्जा रहा. 1990 के विधानसभा चुनाव में यहां जनता दल की जीत हुई थी. इससे पहले लगातार तीन बार यहां से कांग्रेस जीतती रही. एनडीए में बीजेपी का कई बार के चुनाव में यहां कब्जा रहा है. वैश्य मतदाताओं की बहुलता की वजह यहां भारतीय जनता पार्टी का दावा मजबूत रहा है. उधर, वर्तमान में इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा है.
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कसबा सीट पर अब तक सबसे ज्यादा बीजेपी और कांग्रेस को मौका मिला है. हालांकि लोजपा जैसे दल भी यहां अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश करते रहे हैं.
वहीं, भारतीय जनता पार्टी अपनी प्रतिष्ठा को वापस लाने की कवायद में है. उसक विस सम्मेलन और जनसंपर्क अभियान जारी है. कांग्रेस के साथ ही जदयू भी यहां तैयारी में जुटी है. यह सीट वैश्य बहुल है. उसके बाद यादव और मुसलिम मतदाताओं की संख्या है. एनडीए की नजर वैश्यों पर और महागंठबंधन की मुस्लिम-यादवों पर होगी.
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वहीं, इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में जनता के कई मुद्दें है. यहां की जनता सरकार सड़क से लेकर बिजली तक की समस्या से परेशान है. इस इलाके में अपराध का ग्राफ भी ज्यादा है. जनता इस चुनाव में नेताओं से सीधे सवाल कर सकती है. क्योंकि विकास के नाम पर यहां ज्यादा अंतर पहले की तुलना में दिखाई नहीं देता.
Source : News Nation Bureau