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सास को नहीं पसंद था बहू का गाना, छठ गानों से लोगों के दिलों में शारदा सिन्हा ने बनाई खास जगह

देशभर में आस्था का महापर्व छठ मनाया जाता है, लेकिन पूर्वी राज्यों में बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में इस पर्व की अगल ही रौनक देखने को मिलती है.

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Vineeta Kumari
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छठ गानों से लोगों के दिलों में शारदा सिन्हा ने बनाई खास जगह( Photo Credit : फाइल फोटो)

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देशभर में आस्था का महापर्व छठ मनाया जाता है, लेकिन पूर्वी राज्यों में बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में इस पर्व की अगल ही रौनक देखने को मिलती है. छठ बिहारियों का सबसे बड़ा पर्व होता है जिसे चार दिन तक मनाया जाता है. इस पर्व के पहले दिन नहाय खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य और चौथे यानि आखिरी दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. छठ एक मात्र ऐसा महापर्व है जिसमें डूबते हुए सूर्य की भी पूजा की जाती है. लेकिन इस बीच अगर हम गायिका शारदा सिन्हा की बात करें तो शायद ही छठ पूरा हो पाएगा. ना सिर्फ बुजूर्ग और बड़े बल्कि हर बच्चे की जुबान पर भी शारदा सिन्हा के गाने रहते हैं.

'डोमिनी बेटी सुप लेले ठार छे', 'अंगना में पोखरी खनाइब, छठी मैया आइथिन आज' 'मोरा भैया गैला मुंगेर' और श्यामा खेले गैला हैली ओ भैया' भले ही छठ के ये गाए हुए उनके गाने कई साल पुराने हो गए हो लेकिन आज भी छठ के दौरान उन्हीं के गाने बजते और गाए हुए सुने जाते हैं. यहां तक कि आप सोशल मीडिया पर भी देख सकते हैं कि कैसे युवा पीढ़ी शारदा सिन्हा के गानों पर इंस्टाग्राम पर रील्स बना रहे हैं. आस्था के इस पर्व में अपने गानों से चार चांद लगाने वाली सिंगर शारदा सिन्हा का सफर बिलकुल भी आसान नहीं था.

8 भाईयों की इकलौती बहन
अपने दिए गए एक इंटरव्यू में शारदा सिन्हा ने बताया था कि कैसे काफी मन्नतों के बाद करीब 30-35 साल के बाद उनके घर में लड़की हुई थी. सिंगर 8 भाइयों की इकलौती बहन हैं, उनके जन्म के बाद उनकी मां ने कोसी भरा था. कोसी बिहार-यूपी के कुछ क्षेत्र में छठ पर्व की शाम अर्घ्य के बाद और सुबह के अर्घ्य से पहले भरा जाता है, जिसमें सोहर और छठ के गीत गाए जाते हैं और साथ ही दीप जलाए जाते हैं.

बचपन से ही संगीत के प्रति प्रेम
शारदा सिन्हा जब 3-4 साल की थी, वह तब से ही कविताओं को गाने की तरह गाया और गुनगुनाया करती थी. उनके संगीत के प्रति इस प्रेम को पिता ने भांप लिया था, जिसके बाद उनके लिए संगीत शिक्षक को बुलाया गया और यहीं से उनका संगीत का सफर शुरू हुआ. इसके बाद शारदा घर के हर त्यौहार शादी में गाने-बजाने लगी.

सास को नहीं पसंद था शारदा का गाना
शादी से पहले ही शारदा सिन्हा के पिता ने यह बता दिया था कि उनकी बेटी को गाने का बहुत शौक है. शादी के बाद पति ने तो उनके गाने को सपोर्ट किया लेकिन सास को उनका गाना पसंद नहीं था लेकिन धीरे-धीरे जब लोगों के मुंह से अपने बहू के लिए तारीफ सुनती तो उन्हें भी उनका गाना पसंद आता गया. 

ऐसे हुआ पहला गाना रिकॉर्ड
शादी के कुछ महीनों बाद ही यानी 1971 में एचएमवी ने नई प्रतिभा की खोज में प्रतियोगिता का आयोजन किया था, इसमें भाग लेने के लिए शारदा सिन्हा लखनऊ पहुंची थी. वहां पर कई बड़े-बगड़े गायक पहुंचे थे. पहले तो उन्हें गाने के लिए मना कर दिया गया लेकिन दोबारा अनुरोध करने पर उन्हें फिर से मौका मिला. इस बार शारदा ने खुद से लिखा हुआ गाना ‘द्वार के छेकाई नेग पहिले चुकइयौ, यौ दुलरुआ भइया’गाया. किस्मत से वहां एचएमवी के बड़े अफसर वीके दुबे भी मौजूद थे. जैसे ही उन्होंने शारदा की आवाज सुनी, सुनते ही कहा- रिकॉर्ड दिस आर्टिस्ट और इस तरह से उनका पहला गाना रिकॉर्ड और रिलीज किया गया. 

बॉलीवुड फिल्मों में भी गा चुकी हैं सुपरहिट गाने
छठ के गानों के अलावा शारदा सिन्हा ने हिंदी फिल्मों में भी अपनी आवाज दी है. फिल्म 'मैंने प्यार किया' का फेमस गाना 'कहे तोसे सजना ये तोहरी सजनिया',  बाबुल जो तुमने सिखाया, तार बिजली से पतले हमारे पिया जैसे सुपरहिट गाने गाए हैं.

कई अवॉर्ड्स से की जा चुकी हैं सम्मानित
अपने गानों के लिए शारदा सिन्हा को 1991 में पद्मश्री, 2000 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 2006 में राष्ट्रीय अहिल्या देवी अवॉर्ड, 2015 में बिहार सरकार पुरस्कार और 2018 में पद्मभूषण से सम्मानित किया जा चुका है.

Source : Vineeta Kumari

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