बिजनेस टायकून की लिस्ट में शामिल वेदांता ग्रुप के चेयरमैन अनिल अग्रवाल किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. अनिल अग्रवाल बिहार के पटना से हैं. कबाड़ के धंधे से छोटा व्यापार शुरू करके माइंस और मेटल के सबसे बड़े कारोबारी बनने तक के सफर में उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. साधारण परिवार में पैदा होने के बाद अनिल अग्रवाल ने अपनी मेहनत और लगन से माइनिंग और मेटल बिजनेस का साम्राज्य खड़ा कर दिया. आने वाले समय में वो भारत को सेमीकंडक्टर के मामले में आत्मनिर्भर बनाने में योगदान देने वाले हैं. क्या आपको पता है कि कैसे बिहार से शुरू हुआ एक सफर मुंबई आकर रुका नहीं, बल्कि लंदन तक पहुंच गया. इतना ही नहीं, इस सफर के दरम्यान कई शानदार मुकाम हासिल हुए और लंदन स्टॉक एक्सचेंज पर पहली भारतीय कंपनी की लिस्टिंग उनमें से एक है.
अमूमन जब भी हम किसी उद्योगपति के बारे में पढ़ते हैं, या उसके बार में जानना चाहते हैं तो मन में कई सवाल उठते हैं. जैसे कि उसकी नेटवर्थ कितनी होगी? उसके पास कौन-कौन सी गाड़ियां होंगी. रहन सहन कैसा होगा? लेकिन कई लोग ऐसे भी होते हैं, जो अपनी किस्मत खुद लिखते हैं. उन्हीं में से एक हैं वेदांता समूह के प्रमुख अनिल अग्रवाल. बिहार से लंदन वाया मुंबई का सफर अनिल अग्रवाल ने कैसे तय किया, उन्होंने खुद बताया. अनिल अग्रवाल ने ट्विटर पर बताया कि कैसे वो अपनी कंपनी वेदांता को लंदन स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कराने वाले पहले भारतीय बने. यही नहीं, अग्रवाल ने ये भी बताया कि उन्होंने 'रातोंरात' लंदन जाने का फैसला क्यों लिया.
बहादुर का साथ देता है भाग्य
अनिल अग्रवाल कहते हैं कि बिहार से लंदन वाया मुंबई तक की सफर कई सीखों, कड़ी मेहनत और आत्म विश्वास से भरी रही है. उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनियन में छात्रों से बता करते हुए कहा कि निडर बने, क्योंकि भाग्य बहादुर का साथ देता है. विनम्र रहो क्योंकि विकास तब होता है तब आप अपने आप को अंदर की ओर देखते हो. लचीला बनो क्योंकि मेहनत के अलावा अपके पास कोई और दूसरा विकल्प नहीं है. उन्होंने छात्रों से जोर देकर कहा कि आज की तारीख में युवाओं और तकनीक के मिलन से दुनिया को आगे की ओर ले जाएगा.
15 साल की उम्र में छोड़ दिया था स्कूल
पटना में जन्मे और पले-बढ़े अनिल ने मिलर हायर सेकंडरी स्कूल से पढ़ाई की, लेकिन महज 15 साल की उम्र में अपने पिता के बिजनेस के लिए स्कूल छोड़ दिया और पहले पुणे और फिर मुंबई आ गए थे. उन्होंने अपना कॅरिअर स्क्रैप डीलर के तौर पर शुरू किया और आज देश के टॉप बिजनेसमैन की लिस्ट में शुमार हैं. वे धातु और तेल और गैस के कारोबार से जुड़े हैं. अनिल ने 1970 में स्क्रैप मेटल का काम शुरू किया. 1976 में शैमशर स्टेर्लिंग कार्पोरेशन को खरीदा
पत्नी ने भी दिया साथ
जब अनिल अग्रवाल ने लंदन जाने का फैसला अपनी पत्नी किरण को बताया तो उन्हें यकीन नहीं हुआ. अनिल अग्रवाल लिखते हैं कि जब मेरी पत्नी किरण को पता चला कि हम रातों-रात लंदन जाने की तैयारी में हैं, तो उसने सोचा कि मैं बहक गया हूं, वो हमारी बेटी प्रिया के स्कूल गई और वहां प्रिन्सिपल से बेटी के लिए केवल 6 महीने की छुट्टी मांगी क्योंकि उसे यकीन था कि हम इस से ज्यादा लंदन में टिकेंगे नहीं. फिर भी उसने बिना कोई शक जताए, हमेशा की तरह मेरे सबसे बड़े सपोर्ट सिस्टम की तरह, सब कुछ अरेंज किया. मैंने अपने लिए ज्यादा सामान पैक नहीं किया, लेकिन मां के हाथ के बने परांठे और बाबूजी के शॉल को आशीर्वाद के रूप में साथ लेना नहीं भूला
मुझे हर किसी की याद दिला दी
लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे पर उतरने के बाद के अपने अनुभव को याद करते हुए अनिल अग्रवाल ने बताया कि हवाई अड्डे से बाहर निकलने के बाद यह एक अलग दुनिया की तरह लगा, अलग-अलग लहजे वाले विदेशी लोग, ठंड और बरसात का मौसम, बड़ी सफेद इमारतें. मुझे हर किसी की याद दिला दी, जिन्होंने मुझसे कहा था कि छोटी चिड़िया बड़े आसमान में नहीं उड़ती, मुझे लंबे समय के बाद डर महसूस हुआ.
दान कर दिए थे 21 हजार करोड़
वेदांता रिसोर्सेज के मालिक अनिल अग्रवाल ने लंदन स्टॉक एक्सचेंज में कंपनी की लिस्टिंग के 10 साल होने पर करीब दो साल पहले अपनी 75 फीसदी संपत्ति को दान की घोषणा की थी. इस दान के पीछे उनकी व्यक्तिगत सोच के बारे में कई मौकों पर कह चुके हैं कि पैसा ही सब कुछ नहीं है, जो कमाया उसे समाज को लौटाना चाहता हूं. दुनिया की सबसे अमीर बिल गेट्स से मिलने के बाद दान उनके दान के विचार को बल मिला.
Source : News Nation Bureau