देश में हर साल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्मदिन यानी 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के तौर पर मनाया जाता है. राष्ट्रपिता गांधी का नाम सुनते ही दिमाग में उनकी एक आकृति खुद ही उभर जाती है. आंखों पर काला गोल चश्मा, एक हाथ में लाठी तो दूसरे में गीता. वहीं बहुत कम ही लोगों को यह बात पता है कि जिस लाठी को हाथ में लिए राष्ट्रपिता ने देश को आजादी दिलाई, वह लाठी कहीं ओर की नहीं बल्कि बिहार के मुंगेर की थी, जिसे उपहार में गांधी को सौंपा गया था. दरअसल, 1934 में मुंगेर में भूकंप आया था, जिससे आमजन काफी अस्त व्यस्त हो गया. जिसके बाद मुंगेर के भूकंप पीड़ितों से मिलने के लिए गांधी जी वहां पहुंचे. इस दौरान उनके साथ उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी और आठ अन्य कार्यकर्ता भी थे.
बता दें कि गांधीजी कोलकाता से गंगा के रास्ते स्टीमर से घोरघट पहुंचे थे. जैसे ही राष्ट्रपिता घोरघट पहुंचे, उन्हें देखने के लिए लोगों की भीड़ लग गई. जिसके बाद उन्हें धर्मशाला में ठहराया गया. इस दौरान राष्ट्रपिता ने दुनियाभर में फेमस घारघोट की लाठी की बात की और लोगों से कहा कि जिस लाठी को बनाकर वह ब्रिटिश को बेच रहे हैं, उसी लाठी से देशवासियों की पिटाई की जा रही है. ब्रिटिश निरीह देशवासियों पर ही बरसाती है. गांधी जी ने कठिया टोला में विशेष लाठी का निर्माण करने वाले लोगों से अनुरोध करते हुए कहा कि आप शपथ लें कि घोरघट की लाठी आप किसी भी ब्रिटिश के हवाले नहीं करेंगे.
यह लाठी अंग्रेजों को देश के भगाने के काम आनी चाहिए. मैं चाहता हूं कि यह लाठी मेरे बुढ़ापे का सहारा बने. गांधी जी की यह लाठी आजीवन उसके पास रही. उस समय वहां के क्रांतिकारियों ने राष्ट्रपिता को लाठी भेंट की और इसी लाठी को लिए राष्ट्रपिता ने आजादी की लड़ाई लड़ी. उसके बाद से बापू की याद में हर साल लाठी महोत्सव का आयोजन किया जाता है.
Source : Vineeta Kumari