आज से सावन की शुरुआत हो चुकी है और हर जगह भक्तों का तांता लगा हुआ है. सावन का महिना भगवान शिव के आराधना का महीना होता है. कावड़ से जल चढ़ाने का आज पहला दिन है. सावन के पहले दिन भगवान शिव का जलाभिषेक करने का एक अलग ही महत्व माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि सावन के पहले दिन बाबा भोले की विधि विधान के साथ पूजा-अर्चना करने से सारी मनोकामना पूरी होती है और कोरोना काल के 2 साल बाद आखिरकार आज वो पल आया है जब लोग बाबा के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं.
सावन के पहले दिन में आज हम आपको ऐसे भक्त के बारे में बताएंगे जो 1982 से बाबा भोले को जल चढ़ाने के लिए देवघर बाबा मंदिर में आते हैं, लेकिन बीते 2 साल कोरोना काल की वजह से बाबा धाम नहीं आ सके. दरअसल इस भक्त का नाम है मां कृष्णा, जिनकी उम्र 70 साल है. घने जंगलों और पथरीले रास्तों को पार कर 13 घंटे में 108 किलो मीटर दौड़कर बाबा वैद्यनाथ का जलाभिषेक करने वाली मां कृष्णा बम को बिहार झारखंड के लोग देवी मानते हैं.
शिव की उपासक नारी शक्ति कृष्णा साल 1982 से लगातार 2019 तक हर सावन में सोमवार को डाक बम बनकर सुल्तानगंज से देवघर तक दौड़कर बाबा का जलाभिषेक किया है. हैरानी वाली बात ये है कि कृष्णा बम की यात्रा 70 साल में भी थमी नहीं है. इस सावन भी वह उज्जैन में कांवर यात्रा पर निकली हैं. शिव की उपासक मां कृष्णा बम जब सुल्तानगंज से जल लेकर बाबा बैद्यनाथ की तरफ बढ़ती हैं तो उनका पांव छूने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लग जाती है.
भीड़ भी ऐसी कि कृष्णा बम का चल पाना मुश्किल हो जाता है. गौरतलब है कि भीड़ को काबू करने के लिए प्रशासन को पुलिस फोर्स की व्यवस्था करनी पड़ती है. मां कृष्णा बम को भक्त शक्ति मानते हैं और इसीलिए तमाम लोग उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेने के लिए परेशान रहते हैं. मां कृष्णा बम को देखकर जुटने वाली भीड़ को लेकर अब झारखंड और बिहार सरकार उन्हें फोर्स भी देती है. महिला पुलिस कर्मियों के साथ रास्ते में तैनात विशेष पुलिस बल हर सोमवार को उनके जाने के समय पूरी तरह से अलर्ट रहती हैं.
आपको बता दें कि डाक बम ऐसे कांवड़िए होते हैं जो एक बार यात्रा शुरू करने के बाद शिव का अभिषेक करने तक कहीं आराम नहीं करते. ऐसा माना जा है कि यात्रा में विराम लेने पर डाक बम का गंगाजल अपवित्र हो जाता है और उनकी संकल्प तथा यात्रा खंडित हो जाती है. सुल्तानगंज से देवघर की दूरी करीब 105 किलोमीटर है. कृष्णा बम अपने पैरों से इस दूरी को पूरे 37 साल तक सावन के हर सोमवार को नापती रहीं हैं. इस यात्रा में उन्हें 12 से 14 घंटे लगते थे. इस दौरान पूरा रास्ता बोल बम और कृष्णा बम के घोष से गुंजायमान रहता था. उनके पैर छूने के लिए लोगों का खड़ा होना सामान्य बात होती थी.
Source : Pramod Tiwari