लालू के जेल में जाने के बाद न तो पार्टी की स्थिति अच्छी है और न ही पार्टी के मुख्य़ नेताओं की. लालू के नवरत्न की स्थिति लालू के राज के बाद ठीक नहीं है. लालू के नवरत्न पार्टी में ही हाशिए पर चले गए हैं. जो कभी लालू के लिए जीते और मरते थे. लालू के जेल जाने के बाद आरजेडी में तेजस्वी राज है. तेजस्वी के नेतृत्व में पार्टी ने लोकसभा चुनाव में करारी हार का सामना किया था. तेजस्वी राज में लालू के नवरत्न को उतनी तवज्जो नहीं मिल रही है जितनी लालू राज में मिलती थी. इसलिए इन लोगों का पार्टी से भागीदारी भी कम हो गई है.
यह भी पढ़ें - पीएम नरेंद्र मोदी का जन्मदिन भूल गया उनका अजीज दोस्त या बात कुछ और है
लालू जब भी संकट में होते थे तो इन सभी नेताओं ने उनके लिए सुरक्ष कवच के रूप में तैयार रहते थे. लालू के ऊपर जब भी कोई संकट आता था तो वे सभी नेताओं से सलाह लेते थे. उनकी बात मानते थे. रघुवंश प्रसाद सिंह, जगदानंद सिंह, शिवानंद तिवारी जैसे नवरत्न में शामिल नेता लालू के लिए जीते और मरते थे. लेकिन वक्त गुजरते ही पार्टी में इन नेताओं की भागीदारी बहुत कम हो गई है.
यह भी पढ़ें - नीच पाकिस्तान ने फिर की ये नापाक हरकत, जबरन धर्म परिवर्तन की कोशिश के बाद की हत्या
- रघुवंश प्रसाद सिंह: लालू राम तो रघुवंश प्रसाद हनुमान हूआ करते थे. लालू के अंदाज में बोलने और जनता से सीधे जुड़ने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह हूबहू लालू की ही तरह बेहद खांटी नेता माने जाते रहे हैं.
- जगदानन्द सिंह: जगदानन्द सिंह हमेशा लालू के संकटकाल में संकटमोचक की भूमिका निभाई है. खासकर जब लालू चारा घोटाला मामले में जेल चले गए और उनकी जगह 1997 में राबड़ी देवी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया गया तो सरकार को चलाने में जगदानन्द सिंह की सबसे अहम भूमिका रही.
- शिवानन्द तिवारी: शिवानन्द तिवारी लालू यादव से पहले राजनीति में आए और सबसे प्रमुख सलाहकार बनकर लंबे समय तक साथ रहे. आज शिवानन्द पार्टी में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद पर हैं.
- अब्दुल बारी सिद्दकी: अब्दुल बारी सिद्दकी लालू के समय में अकलियतों का बड़ा चेहरा माने जाते थे. सिद्दकी पिछड़ों के सबसे बड़े नेता कर्पूरी ठाकुर के बेहद करीबियों में से एक थे.
- अली अशरफ़ फातमी: अली अशरफ़ फातमी भी एक समय में लालू के खास लोगों में शामिल रहे. मुस्लिमों में मजबूत पकड़ वाले नेता और खासकर मिथिलांचल और सीमांचल के इलाकों में फातमी की तूती बोला करती थी. आज तेजस्वी राज में फातमी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा गया है.
- मोहम्मद शहाबुद्दीन: मोहम्मद शहाबुद्दीन के बाहुबल पर लालू न सिर्फ सिवान बल्कि छपरा और गोपालगंज में जिसे चाहते थे, उसकी जीत पक्की होती थी.
- प्रेम गुप्ता: कॉरपोरेट किंग के नाम से जाने वाले प्रेम गुप्ता को कभी लालू यादव का कोषाध्यक्ष कहा जाता था. प्रेम गुप्ता एक समय में लालू के पीछे साये की तरह रहा करते थे.
- रघुनाथ झा और मोहम्मद तसलीमुद्दीन: ये दो नाम ऐसे हैं, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं. ये हैं रघुनाथ झा और मोहम्मद तसलीमुद्दीन, जिनकी अपने इलाके में तूती बोला करती थी. लालू इनपर आंख बंदकर विश्वास किया करते थे.
राबड़ी ने किया 7 साल तक शासन
गौरतलब है कि बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने 7 सालों तक इन्हीं नेताओं के दम पर सात साल तक राज किया. जब लालू यादव चारा घोटाला में जेल चले गए थे. तेजस्वी राज में इनके कद को बहुत ही कम कर दिया गया है. इन्हें कोई पूछने वाला नहीं, फिर चाहे रघुवंश प्रसाद हों, शिवानन्द तिवारी हों, जगदानन्द सिंह हों, अब्दुल बारी सिद्दकी हों या फिर कोई और, सभी की हालत एक जैसी ही है.