मधेपुरा सदर अस्पताल इन दिनों अपने कारनामे को लेकर लगातार सुर्खियों में है. सदर अस्पताल में इलाज करवाने के लिए पहुंचने वाले मरीजों को बेहतर सुविधा तो दी नहीं जाती है, लेकिन साहेब के आने की सूचना मिलते ही विभागीय अधिकारी व्यवस्था सुदृढ़ करने में लग जाते हैं. स्वास्थ्य सुविधा बेहतर होने की स्वास्थ्य मंत्री सह डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव लगातार बड़े-बड़े दावे करते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. मधेपुरा सदर अस्पताल में इलाज करवाने के लिए पहुंचने वाले मरीजों को बेहतर सुविधा नहीं दी जाती है. जिसका खामियाजा गरीब ग्रामीण क्षेत्रों से आए लोगों को भुगतान पड़ता.
सदर अस्पताल, मधेपुरा में ना तो डॉक्टर सही समय पर आते हैं और ना ही कोई विशेषज्ञ डॉक्टर नियुक्त है. भले ही स्वास्थ्य मंत्री द्वारा आम जनों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा देने के दावे किए जाते हो, लेकिन उनके जिम्मेदार अधिकारी आम लोगों तक बेहतर स्वास्थ सुविधा मुहैया नहीं करवा पाते हैं. लेकिन जैसे ही स्वास्थ्य विभाग के आने की सूचना मधेपुरा सदर अस्पताल प्रशासन को मिलेगी तो उन्होंने सदर अस्पताल के लचर व्यवस्था को दुरुस्त करने में लग जाते है. अस्पताल में जहां-जहां पक्का टूटा हुआ था उस पक्के को मरम्मत करवाया जा रहा है. अस्पताल के दीवाल से रंग उड़ गई थी उस दीवाल पर रंग पोताई ही की जा रही है. जिससे स्वास्थ्य मंत्री सदर अस्पताल निरीक्षण को पहुंचे तो उसकी चाक-चौबंद व्यवस्था देखकर खुश हो जाएंगे. लेकिन उस चाक चौबंद व्यवस्था के पीछे का सच कुछ और ही है.
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बता दें कि जिले का सबसे बड़ा सदर अस्पताल मधेपुरा जहां 25 लाख आबादी पर निर्भर अस्पताल में डॉक्टरों की पद 54 जिसमें पदस्थापित डॉक्टर 29 है उसमें भी कई ऐसे डॉक्टर हैं जो समय से अस्पताल नहीं पहुंचते हैं जिसके कारण मरीजों को घंटो तक इंतजार करना पड़ता है. एक तरफ डॉक्टरों की कमी से जूझ रही है मधेपुरा के सदर अस्पताल तो वहीं दूसरी तरफ समय से अस्पताल नहीं पहुंच रहे हैं डॉक्टर. जहां इतनी बड़ी समस्या रहने के बावजूद भी आज तक इस पद पर कोई चिकित्सक की बहाल नहीं हो सका और ना ही कोई वरीय अधिकारी इस पर संज्ञान ले रहे. यह स्थिति दो- चार दिन की नहीं बल्कि बीते कई वर्षों से बनी है. जहां अस्पताल के इन समस्या से साफ स्पष्ट होता है कि स्वास्थ्य मंत्री के जिम्मेदार अधिकारी या तो लापरवाह बन बैठे है या तो काम करना नहीं चाहते हैं या फिर यू कहें कि अधिकारी में डिप्टी सीएम सह स्वास्थ्य मंत्री तेजस्वी यादव का भय नहीं है.
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अगर सदर अस्पताल के ओपीडी की बात करें तो, लगातार आंख, कान, गला, नस और चर्म रोग से जुड़े मरीजों अधिक पहुंच रहे हैं. इनमें अधिकतर महिलाएं, पुरुष एवं बच्चे हैं. इसमें पानी लगने की वजह से पीड़ित के साथ-साथ दाद, खाज, खुजली के भी मरीज अपना इलाज करवाने के लिए पहुंच रहे हैं. सदर अस्पताल में रोजाना करीब 200 से भी अधिक मरीज आंख, कान, गला, नस और चर्मरोग से पीड़ित आस लगाए बेहतर इलाज के लिए सदर अस्पताल पहुंचते हैं लेकिन, सदर अस्पताल में डॉक्टरों को नहीं रहने के कारण से उन मरीजों ने निराश होकर घर आपस लौट कर चले जाते.
वहीं अगर बात करें सदर अस्पताल में इलाज के लिए आए हुए मरीजों की, तो इन दिनों प्रतिदिन मरीजों की संख्या करीब 400 के आसपास रहती है. जिसमें कि एक बड़ी संख्या आंख, कान, गला, नस और चर्म रोग आदि के मरीजों की संख्या होती है. इलाज के लिए ज्यादातर ग्रामीण इलाकों से भी रोगी सदर अस्पताल में पहुंचते है. लेकिन, डॉक्टर नहीं होने के कारण से मरीजों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. जहां जिले के विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों से आए हुए मरीज प्राइवेट क्लिनिक में जाने को विवश हैं. विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं रहने के कारण मरीजों की परेशानी और बढ़ जाती है. सुबह से ही लंबी कतार लगी रहती है जिसमें अधिकांश रोगी आंख, कान, नस, गला आदि के शिकार बताए जाते हैं. लेकिन, करोड़ों की लागत से बना है जिले का सबसे बड़ा सदर अस्पताल, जहां चिकित्सकों की कमी से अभी भी जूझ रहा है. जिसका खामियाजा गरीब मरीजों को भुगतना पड़ रहा है.
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इतना ही नहीं, सदर अस्पताल के कुछ ऐसे भी डॉक्टर हैं जो अस्पताल प्रबंधक के मिलीभगत से सप्ताह में एक दिन ओपीडी में बैठते हैं. शेष दिन अपने निजी क्लिनिक में बैठते हैं, जिससे दूरदराज के मरीज इलाज के लिए आते तो है पर बगैर इलाज कराए हुए उन्हें आपस लौट जाना पड़ता है. यह स्थिति एक-दो दिन की नहीं बल्कि हमेशा के लिए बनी रहती है. जहां इस पर अभी तक कोई भी वरीय अधिकारी ध्यान देना ठीक नहीं समझा.
अगर अस्पताल में मरीजों की सुविधाएं की बात करें तो अल्ट्रासाउंड व एक्स-रे का लाभ सभी मरीजों को सही तरीके से नहीं मिल पाता है. अस्पताल में कुछ मशीनें तो लगी हैं, लेकिन उसको चलाने वाले आपरेटर के पद ही रिक्त हैं. एक्सपर्ट के अभाव में आठ माह से अधिक गर्भवती महिलाओं का अल्ट्रासाउंड यहां नहीं हो पाता है. स्वास्थ्य विभाग की यह व्यवस्था से आजिज मरीज व उनके स्वजन दलालों के चंगुल में फसने को मजबूर हो जाते हैं. चिकित्सकों की कमी इलाज तो प्रभावित कर ही रही है, लेकिन अस्पताल में भीड़ भी बेकाबू हो रही है.
जहां, विशेषज्ञ चिकित्सकों के पद वर्षों से खाली रहने के कारण समान्य स्वास्थ्य सुविधा भी नहीं मिल पा रही है. समान्य जांच के अलावा विशेष जांच नहीं हो पाती है. पैथोलॉजी लैब में पैथोलॉजिस्ट नहीं हैं. यहां टेक्नीशियन के भरोसे काम चलता है. ईसीजी मशीन उपलब्ध, चलाने वाला टेक्नीशियन नहीं वर्षों पूर्व सदर अस्पताल को ईसीजी मशीन सिर्फ दिखावे के लिए उपलब्ध कराई गई. ईसीजी मशीन यहां यूं ही पड़ी रहती है. जहां मरीजों को इसके लिए निजी जांच केंद्र में जाना होता है. अस्पताल में औसतन 10 से 15 मरीजों को ईसीजी जांच करवाने की सलाह डाक्टरों द्वारा दी जाती है. जहां निजी सेंटर पर पांच सौ रुपए से लेकर हजारों रुपये तक मरीजों को खर्च करने पड़ते हैं.
अल्ट्रासाउंड जांच सिर्फ ओपीडी के समय ही होती है जिसके चलते मरीजों की काफी भीड़ लग जाती है. इससे मरीजों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. जिसके कारण प्राइवेट क्लिनिक में महंगी खर्च लगने की वजह से वे रोगी अपना ठीक से इलाज नहीं करा पाते. कई बार राज्य के आला अधिकारियों से लेकर मंत्री तक ने अस्पताल के निरीक्षण किया. लेकिन डॉक्टर बहाल करने का सिर्फ आश्वासन दिया, पर आज तक एक भी डॉक्टर यहां नहीं भेजा गया. ऐसे में कई गरीब लोग जो पैसे के अभाव में वे रोगी अपना सही से इलाज भी नहीं करा पाते हैं. जहां सदर अस्पताल में सुविधाएं उपलब्ध नहीं रहने के कारण से स्वास्थ्य जीवन जीने को मजबूर है जिले के गरीब लोग.
मधेपुरा सीएमओ डॉ. मिथिलेश ठाकुर ने बताया कि अभी सदर अस्पताल में आंख, नाक, कान मस्तिक रोग आदि डॉक्टरों की कमी है जिसको लेकर विभाग को पत्र लिखा गया है जल्द ही सारी कमियां दूर कर ली जाएंगी. ड्यूटी पर तैनात डॉक्टरों की लापरवाही की शिकायत मिली है सभी डॉक्टरों को हिदायत दिया गया है. अगर वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आएंगे तो ऐसे डॉक्टरों को चिन्हित कर उनके ऊपर कार्यवाही की जाएगी.
HIGHLIGHTS
- मधेपुरा सदर अस्पताल में है सुविधाओं का अभाव
- मरीजों का अच्छे से नहीं हो पाता इलाज
- डॉक्टर भी समय पर नहीं आते अस्पताल
- बाहर से जांच कराने को मजबूर रहते हैं मरीज
Source : News State Bihar Jharkhand