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मणिपुर कांड: Zero बनकर ही रह गई एन. बिरेन सिंह पुलिस की जीरो FIR

दोनों महिलाओं को पुलिस द्वारा दंगाइयों से एक बार बचा भी लिया गया लेकिन दंगाइयों द्वारा पुलिस की अभिरक्षा से दोनों महिलाओं को छीन लिया जाता है और फिर उनके गांव से दो किलोमीटर दूर ले जाकर उनकी अस्मत को तार-तार किया जाता है.

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Shailendra Shukla
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Zero

मामले में 14 दिन बाद जीरो एफआईआर दर्ज की गई( Photo Credit : सोशल मीडिया)

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मणपुर में कूकी जोमी सामाज की दो महिलाओं के साथ क्या हुआ पूरे देश ने ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया ने देखा. उनके साथ क्या हुआ उसकी चर्चा बाद में करते हैं फिलहाल चर्चा तो इस बात की होनी चाहिए थी कि उनकी अस्मत लुटने से पहले उन महिलाओं के साथ क्या हुआ था. दो महिलाओं जिसमें एक की उम्र  लगभग 20 वर्ष और दूसरे की उम्र लगभग 40 वर्ष है. दोनों कांगपोकपी जिले की निवासी हैं. लगभग 1000 की संख्या में आसामाजिक तत्व इन महिलाओं के गांव में घुस जाते हैं. आसामाजिक तत्वों के हाथों में एके-47, एके-56, इंसास राइफल्स और .303 राइफल्स रहते हैं. युवती के पिता की दंगाइयों द्वारा हत्या कर दी जाती है और फिर जब युवती का भाई अपनी बहन की अस्मत लुटने से बचाने के लिए विरोध करता है तो उसकी भी हत्या कर दी जाती है. घटना 4 मई 2023 की है. 

अब इसमें आगे की कहानी बताते हैं. दोनों महिलाओं को पुलिस द्वारा दंगाइयों से एक बार बचा भी लिया गया लेकिन दंगाइयों द्वारा पुलिस की अभिरक्षा से दोनों महिलाओं को छीन लिया जाता है और फिर उनके गांव से दो किलोमीटर दूर ले जाकर उनकी अस्मत को तार-तार किया जाता है. उन्हें कपड़े उतारने के लिए मजबूर किया जाता है और बेशर्म सामाज उनकी परेड कराता है. वहीं, पुलिस हर बार की तरह लेट लतीफ ही रहती है. युवती के साथ गैंगरेप भी किया जाता है.

ZERO एफ.आई.आर.

अब जरा पुलिस के कारनामों के बारे में जान लेते हैं. गैंगरेप, हत्या जैसे आपराधिक श्रेणी के मामलों में पुलिस को चाहिए कि तत्काल आरोपियों को गिरफ्तार करे लेकिन यहां तो उल्टी गंगा बह रही है. 4 मई 2023 की घटना की रिपोर्ट लिखने में 14 दिन लग जाते हैं. गैंगरेप जैसी वारदात के 14 दिनों के बाद यानि कि 18 मई 2023 को थोउबल जिले में जीरो एफआईआर दर्ज की जाती है. नियमत: एफ.आई.आर. दर्ज होने के बाद तुरंत विवेचना संबंधित थाने यानि जहां वारदात हुई रहती है उसे सौंप दी जाती है. अब विवेचना सौंपी गई या नहीं लेकिन गैंगरेप के आरोप को गिरफ्तार करने में ढाई महीने से ज्यादा लग जाते हैं. वह भी तब एक आरोपी को गिरफ्तार किया जाता है जब महिलाओं के साथ हुई ज्यादती का वीडियो वायरल होता है या फिर ये कहें कि सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद एक आरोपी को गिरफ्तार कर लिया जाता है.

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अब मणिपुर की एन.बिरेन की सरकार और वहां की पुलिस कितनी सक्रिय है गैंगरेप जैसे वारदातों को लेकर उसके बारे में हम आपको विस्तार से बता रहे हैं. खासकर ऐसे मामले में पुलिस को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए वो हम आपको बताने जा रहे हैं. इतना ही नहीं अदालती कार्यवाही के बारे में भी हम आपको विस्तार से बताएंगे.

पुलिस को क्या करना चाहिए?

युवती के साथ गैंगरेप हुए है यानि कि आईपीसी की धारा 376-डी के तहत निश्चित तौर पर मुकदमा दर्ज किया गया है. गैंगरेप के मामले में पुलिस को चाहिए कि वह तुरंत बिना किसी के परमिशन का इंतजार किए आरोपियों को गिरफ्तार करे, उन्हें अपनी कस्टडी में ले. 24 घंटे के अंदर पुलिस आरोपियों को कोर्ट में पेश करे. कोर्ट आरोपियों को जेल भेजने का आदेश देती है. क्योंकि, गैंगरेप जैसे मामले संगीन अपराध की श्रेणी में आते हैं लिहाजा उन्हें छोड़ने का या बेल पर रिहा करने का आदेश कोर्ट तुरंत नहीं पारित करती.

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पीड़ित का कराए मेडिकल

आरोपियों को अदालत के सामने पेश करने के बाद मामले की विवेचना कर रहे विवेचक का पहला दायित्व ये होता है कि पीड़िता का मेडिकल कराए. हालांकि, मेडिकल कराने से अगर पीड़िता मना करती है तो विवेचक पीड़िता पर दवाब नहीं बना सकता और ना ही कानून की कोई ऐसी धारा है जो पीड़िता को मेडिकल टेस्ट के लिए मजबूर कर सके. रेप और गैंगरेप जैसे मामले में पीड़िता का बयान ही काफी होता है और यहां तो पूरा वीडियो है.

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161 सीआर.पी.सी. का बयान दर्ज करे विवेचक

किसी मामले में मुकदमा IPC की धाराओं के तहत दर्ज किया जाता है. उसके बाद सीआर.पी.सी. की विभिन्न धाराओं के तहत कार्यवाही आगे बढ़ती है. गैंगरेप पीड़िता या रेप पीड़िता का बयान विवेचक को 161 सीआर.पी.सी. के तहत दर्ज करता है. हालांकि, विवेचक पीड़िता पर उसके द्वारा दिए गए बयान पर दस्तखत करने का दवाब नहीं बना सकता. 161 सीआर.पी.सी. का बयान पुरी तरह से एफ.आई.आर. पर आधारित होता है और कोर्ट में मान्य नहीं होता लेकिन विवेचक को सीआर.पी.सी. 161 का पालन करना होता है. 

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164 सीआर.पी.सी. का बयान होता है मुख्य

गैंगरेप, रेप जैसे संगीन अपराधों के मामले में पीड़िता का बयान ही सबकुछ होता है और खासकर सीआर.पी.सी. 164 के तहत दिए गए बयान में. सीआर.पी.सी. 164 के तहत पीड़िता का बयान विवेचक द्वारा मजिस्ट्रेट/जज के सामने कराया जाता है. जिस समय पीड़िता का बयान जज के सामने कराया जाता है तो उस समय जज के चैंबर में सिर्फ दो लोग ही होते हैं. एक स्वंय जज और दूसरी पीड़िता. जज पीड़िता से उसके साथ हुए अपराध की जानकारी लेता है और उसे अपने हाथ से कागज पर लिखता है. उसके बाद जज पीड़िता का दस्तखत उसके बयान पर लेता है और उसे सीलबंद लिफाफे में रखकर पत्रावली पर शामिल कर लेता है.

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पहले सीआर.पी.सी. 164 का बयान अधिवक्ताओँ द्वारा हासिल किया जा सकता था लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार जबतक मामले में चार्जशीट दाखिल नहीं हो जाती तबतक सीआर.पी.सी. 164 का बयान किसी को भी नहीं दिया जाएगा यहां तक कि विवेचक को भी. सीआर.पी.सी. 164 के तहत दिया गया पीड़िता का बयान सिर्फ जज और उसके बीच ही सीमित रहता है. यहां तक कि जब पीड़िता बयान दे रही होती है तो विवेचक को भी जज के चैंबर के बाहर होना पड़ता है. ये पीड़िता का स्वतंत्र बयान होता है.

आरोपी की खैर नहीं...

सीआर.पी.सी. 164 के बयान में अगर पीड़िता द्वारा घटना का समर्थन नहीं किया जाता तो आरोपी को राहत मिल जाती है. उसे ना सिर्फ आसानी से बेल मिल जाता है बल्कि आरोपमुक्त भी हो जाता है. लेकिन ठीक इसके उलट आगर पीड़िता ने सीआर.पी.सी. 164 के तहत जज के समक्ष दिए गए अपने बयान में उसके साथ हुए घटना का समर्थन करती है तो फिर आरोपी की खैर नहीं. कुल मिलाकर रेप, गैंगरेप जैसे मामलों में सीआर.पी.सी. 164 के तहत दिया पीड़िता का बयान ही न्यायालय की नजरों में पर्याप्त माना जाता है और दूसरे सबूत या गवाह की कोई जरूरत नहीं पड़ती.

चार्जशीट दाखिल करना

सीआर.पी.सी. 164 का बयान होने के बाद मामले की विवेचना कर रहे विवेचक की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है. वह पूरे मामले की जांच करता है. टेक्निकल साक्ष्यों से लेकर मेडिकल साक्ष्यों तक, सीआर.पी.सी. 161 के बयान, सबूत, गवाहों, घटनास्थल का नक्शानजरी बनाना, एफआईआर देरी से दर्ज करने का कारण, विवेचना में देरी का कारण, आरोपियों की गिरफ्तारी का दिन, समय, स्थान, उनसे बरामद चीजों की विस्तृत जानकारी, किन-किन धाराओं के तहत आरोपियों पर अपराध बनता है उसका पूरा विस्तृत विवरण अगर एफ.आई.आर. में लिखे किन्ही धारा का अपराध शामिल नहीं होना पाए जाने पर उसे विलोपित करने के लिए केस डायरी तैयार करना, घटनास्थल पर जाने की केसडायरी बनाना, पीड़िता के बयान की केस डायरी बनाना विवेचना के दौरान किस तारीख को क्या किया मामले में ये सब केस डायरी में अंकित करके आरोपी के खिलाफ उसकी गिरफ्तारी यानि कि उसके जेल जाने से 60 दिनों के अंदर संबंधित न्यायालय में चार्जशीट दाखिल करनी पड़ती है. अगर 60 दिनों के अंदर विवेचक चार्जशीट दाखिल नहीं करता है तो आरोपी आरोपमुक्त माना जाता है. 

इस मामले में मणिपुर पुलिस की गलती

पहली गलती  - घटना के दिन ही एफआईआर ना दर्ज करना
दूसरी गलती  - जीरो एफ.आई.आर. दर्ज करने में 14 दिन लगा देना
तीसरी गलती  - ढाई महीने की विवेचना में किसी भी आरोपी को गिरफ्तार ना करना
चौथी गलती  - मामले के विवेचक द्वारा एक भी केस डायरी (सीडी) ना काटा जाना
पांचवी गलती  - मुख्य आरोपी को गिरफ्तार करने में ढाई महीने से ज्यादा का समय लगा देना
छठवीं गलती  - संबंधित न्यायालय से आरोपी के खिलाफ सीआर.पी.सी. 82 व 83 के तहत उसकी संपत्ति की कुर्की के लिए आवेदन ना करना
सातवीं गलती  - मामले में तत्परता ना दिखाकर आरोपियों के लिए कोर्ट में साथ देना

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मुख्य आरोपी को पुलिस ने घटना के ढाई महीने बाद गिरफ्तार किया है

अब आप सातवीं गलती को समझना चाहेंगे. दरअसल, कानून की किताब कुछ ऐसी ही है. जब मामले में आरोपी द्वारा सीआर.पी.सी. 482 के तहत बेल के लिए संबंधित न्यायालय या उच्च न्यायालय में आवेदन दाखिल किया जाएगा तो उसमें पुलिस व पीड़िता की एक सबसे बड़ी कमीं बताई जाएगी. वह कमी ये कि घटना के 14 दिन बाद एफ.आई.आर. दर्ज की गई और एफ.आई.आर. दर्ज किए जाने में हुई देरी के कारणों को नहीं बताया गया. यही प्वाइंट बेल मिलने के लिए पर्याप्त है. कानून के मुताबिक, घटना के तुरंत बाद एफ.आई.आर. दर्ज होनी चाहिए. अगर किन्ही कारणों की वजह से एफ.आई.आर. नहीं दर्ज की जा सकी है तो उसके बारे में एफ.आई.आर. दर्ज करने में हुई देरी का स्पष्ट कारण अंकित करना होता है. उदाहरण के तौर पर अगर कोई वाहन किसी को टक्कर मारकर भाग गया है तो सबसे पहले पुलिस चोटिल शख्स को अस्पताल ले जाती है और दो-तीन दिन में जब वह ठीक होता है तब एफ.आई.आर दर्ज करती है. ऐसे में तीन दिनों के लिए हुई देरी का कारण चोटिल व्यक्ति की चिकित्सा दर्शाया जाता है लेकिन मणिपुर वाले केस में तो पुलिस ने ऐसी-ऐसी गलतियां की हैं जिसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता और आरोपी को इसका फायदा कोर्ट में मिलेगा. हालांकि, फिलहाल कम से कम 1 साल के लिए आरोपी बेल के बारे में ना ही सोचे तो ही ठीक होगा. 

बिहार में भी मणिपुर कांड पर सियासी बवाल

पप्पू यादव ने मांगा PM का इस्तीफा

जन अधिकार पार्टी के मुखिया पप्पू यादव ने भी मणिपुर हिंसा को लेकर पीएम मोदी पर करारा हमला बोला है और उनसे इस्तीफा भी मांगा है. उन्होंने ट्वीट किया, 'प्रधानमंत्री गद्दी छोड़ो! क्या नरेंद्र मोदी जी प्रधानमंत्री पद के लायक़ हैं? आज महीनों से मणिपुर में चल रही भीषण दरिन्दगी के बाद मणिपुर का पहली बार नाम लिया भी तो वोट की राजनीति तक ही सीमित रहे. मणिपुर के साथ राजस्थान और छत्तीसगढ़ का नाम लेकर इस व्यक्ति ने साबित कर दिया कि मणिशंकर अय्यर जी ने जो इनके बारे में कहा था, यह उससे भी बढ़कर अधम हैं. इन्होंने आज राजस्थान और छत्तीसगढ़ का अपमान किया है. इसके लिए वहां की जनता से सार्वजनिक माफ़ी मांगनी होगी!'

लालू यादव ने भी कसा तंज

RJD के अध्यक्ष लालू प्रसाद ने ट्वीट कर कहा कि मणिपुर में लोकतंत्र, लोकलाज, विश्वास, संस्कृति, सौहार्द, संवाद और मानवता का सरेआम कत्ल हो रहा है. नफरत और हिंसा फैलाने वाली पार्टी के लोग कंबल ओढ़कर घी पी रहे हैं. इन लोगों को प्रेम, सौहार्द, इंसानियत, सामाजिक एकता एवं भारतीय सभ्यता से कोई लेना-देना नहीं है. मणिपुर में जो हो रहा है, वह शर्मनाक है.

ललन सिंह ने भी बोला हमला

JDU के अध्यक्ष ललन सिंह ने ट्वीट कर कहा कि मणिपुर में डबल इंजन की सरकार की छत्रछाया में राज्य के बहुसंख्यक शोषित-वंचित और गरीब तबके को पैरों तले रौंदा जा रहा है. महिलाओं पर अत्याचार की सारी हदें लांघ दी गई हैं, फिर भी देश के 56 इंच सीने वाले तथाकथित शेर चुप बैठे हैं, आखिर क्यों ? मणिपुर की घटना मानवता को शर्मसार करने वाली है. पता नहीं प्रधानमंत्री को मानवता के प्रति संवेदना है भी या नहीं! विदेशों में जाकर अपना जयकारा लगवाने वाले प्रधानमंत्री को देश में महिलाओं के साथ हो रहा घोर अत्याचार क्यों नहीं दिखता है ? उन्होंने कहा कि डबल इंजन की सरकार वाले राज्य में महिलाओं के साथ शर्मसार करने वाली इस घटना पर अब तो मौनव्रत तोड़िए साहब.

Source : News State Bihar Jharkhand

N Biren Singh Manipur Hinsa Zero FIR
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