पितरों के जिले यानि गया में पौष महीने में मिनी पितृपक्ष शुरू हो चुका है. पौष माह में कृष्ण पक्ष में पितरों को पिंडदान करने का अलग ही महत्तव होता है और यही कारण है कि गया में देश और विदेश से लोग अपने पितरों को पिंडदान, तर्पव व अन्य कर्मकांड पूरा करने के लिए आते हैं. मिनी पितृपक्ष की शुरुआत हो गई है और इस बार गया में लगभग तीन लाख पिंडदानियों के आने की संभावना जताई जा रही है. तीर्थयात्रियों के गया आने का सिलसिला शुरू हो गया है और ये 17 जनवरी तक जारी रहेगा.
दरअसल, पौष माह में गंगासागर जानेवाले तीर्थयात्री सबसे पहले गया में ही पितरों को पिंडदान करते है फिर गंगासागर जाते है. बढ़ती ठंड भी तीर्थयात्रियों के रास्ते में रुकावट नहीं बन पा रहा है. फल्गु नदी के किनारे देवघाट पर सुबह से हीं पिंडदानियो की भीड़ उमड़ पड़ती है. वहीं, गयाजी डैम के बन जाने से फल्गु नदी का जल आसानी से तीर्थयात्रियों व पिंडदानियों को तर्पण के लिए मिल रहा है. प्रशासन के मुताबिक, इस बार मिनी पितृपक्ष मेला में 3 लाख तीर्थयात्रियों की आने की संभावना है.
क्यों किया जाता है पिंडदान
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितरों का पिंडदान इसलिए किया जाता है ताकि उनकी पिंड की मोह माया छूट जाए और वो अपनी आगे की यात्रा प्रारंभ कर सके. वो दूसरा शरीर, दूसरा पिंड या फिर मोक्ष प्राप्त कर सकें। ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के बाद प्रेत योनी से बचाने के लिए पितृ तर्पण का बहुत महत्व है.
क्या होता है पिंड का मतलब
वैसे तो ‘पिंड’ शब्द का अर्थ है किसी वस्तु का गोलाकार स्वरूप और शरीर को भी पिंड माना जाता है. मृतक के निमित्त अर्पित किए जाने वाले पदार्थों जैसे कि पके हुए चावल, दूध, तिल मिलाकर जो पिंड बनाते हैं, उसे सपिण्डीकरण कहते हैं. हर पीढ़ी में मातृकुल और पितृकुल के गुणसूत्र उपस्थित होते हैं और पितरों को पिंडदान किया जाता है, तर्पण किया जाता है ताकि उन्हें सांसारिक मोह-माया से मुक्ति व मोक्ष मिल सके.
रिपोर्ट: अजीत कुमार
HIGHLIGHTS
- पितरों को पिंडदान करने गया पहुंच रहे तीर्थयात्री
- इस बार 3 लाख तीर्थयात्रियों के आने का है अनुमान
Source : News State Bihar Jharkhand