बिहार विधानसभा में सत्तापक्ष के लिए उस समय शर्मनाक स्थिति पैदा हो गई, जब नीतीश सरकार गिरते-गिरते बची. विधानसभा के मानसून सत्र में 9 जुलाई को सहकारिता विभाग की तरफ से मांग बजट प्रस्तुत किया गया था. इस मुद्दे पर बहस के बाद विपक्ष की ओर से आरजेडी नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी की तरफ से कटौती प्रस्ताव लाया गया. सरकार ने इसका पुरजोर विरोध किया. बहस के दौरान इस मुद्दे पर मतदान की नौबत आ गई.
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इसके बाद नीतीश कुमार सरकार में खलबली मच गई. बताया जा रहा है कि 9 जुलाई को इंग्लैंड में न्यूजीलैंड के खिलाफ टीम इंडिया वर्ल्ड कप क्रिकेट का सेमीफाइनल खेल रही थी, जिसे देखने के लिए अधिकांश विधायक सदन में मौजूद नहीं थे. कुछ ऐसे विधायक जो टीवी पर मैच नहीं देख रहे थे, वे सदन में मौजूद न रहकर लॉबी में टहलते नजर आए.
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स्पीकर विजय कुमार चौधरी द्वारा मत विभाजन का आदेश देने के बाद सदन में मौजूद विधायकों ने वोटिंग की. नीतीश सरकार के लिए सुकून वाली बात यह रही कि प्रस्ताव के पक्ष में 85 वोट पड़े और विरोध में 52 मत यानी सहकारिता विभाग की मांग प्रस्ताव सदन में 33 मत से अंतर से पारित हो गया. इस दौरान एनडीए के 47 विधायक सदन में नहीं थे.
बता दें कि बिहार विधानसभा में 132 एनडीए विधायक हैं मगर केवल 85 ही सदन में मौजूद थे. इसका मतलब है कि एनडीए के 47 विधायक सदन में मौजूद नहीं थे, जिससे नीतीश सरकार के गिरने की नौबत आ गई थी. नीतीश सरकार के लिए राहत की बात है कि विपक्ष के भी विधायक सदन से अनुपस्थित थे. अगर यह प्रस्ताव गिर जाता तो सरकार को इस्तीफा देना पड़ जाता.
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सदन में विपक्ष की संख्या 109 है, मगर वोटिंग के समय केवल 57 विधायक ही मौजूद थे. बिहार सरकार के संसदीय कार्य मंत्री श्रवण कुमार ने विधायकों की अनुपस्थिति को गलत बताते हुए कहा, उन्हें इस घटना से सबक लेनी चाहिए और आइंदा से विधानसभा सत्र को गंभीरतापूर्वक लेकर सदन की कार्यवाही में रोजाना भाग लेना चाहिए.