गया में मशरूम की खेती महिलाओं के लिए वरदान साबित हो रही है. कृषि विभाग की पहल और महिलाओं के जब्जे ने कैसे बरसौना गांव की तस्वीर बदल दी है. मशरूम की खेती ने बरसौना गांव की तस्वीर बदल दी है. जिले के टनकुप्पा प्रखंड का ये गांव कृषि विभाग की पहल से मशरूम विलेज के नाम से मशहूर हो रहा है. दरअसल इस गांव में महिला समूहों ने मशरूम की खेती कर रोजगार के नए रास्ते खोल दिए हैं. कृषि विभाग और उद्यान विभाग के मार्गदर्शन में गांव की महिलाएं ट्रेनिंग लेकर मशरूम प्रोजेक्ट के तहत लाखों रुपये कमा रही हैं और आत्मनिर्भर बन रही हैं.
गांव की महिलाएं बन रही आत्मनिर्भर बरसौना गांव की महिलाएं खुद तो आत्मनिर्भर बन ही रही हैं. साथ ही औरों को भी रोजगार देने का काम कर रही है. गांव की 25 महिलाओं के समूह ने मशरूम उत्पादन का बीड़ा उठाया है. ये महिलाएं अपने अपने घरों के कमरे में हीं मशरूम उत्पादन करती हैं. सबसे अच्छी बात ये कि इसमें ज्यादा मेहनत और लागत नहीं लगती, लेकिन मुनाफा अच्छा होता है. महिलाएं शाम के समय घर में रखे मशरूम के बैग पर पानी छिड़कती हैं और मशरूम के उत्पादन के बाद तोड़ने से लेकर बेचने का काम भी खुद ही करती हैं. महिलाओं को मशरूम बेचने के लिए कहीं बाहर या बाजार भी नहीं जाना पड़ता. मशरूम के थोक विक्रेता खुद इस गांव में आकर मशरूम खरीद कर ले जाते हैं.
कम लागत में अच्छा मुनाफा इसको लेकर जिला कृषि पदाधिकारी का कहना है कि कृषि विभाग की ओर से बरसौना गांव को मशरूम विलेज बनाया गया है. चूंकि नवंबर से फरवरी महीने तक मशरूम उत्पादन के लिए अनुकूल मौसम होता है. ऐसे में इस दौरान मशरूम का उत्पादन भी ज्यादा हो पाता है. चूंकि मशरूम की मांग भी बहुत ज्यादा है. ऐसे में महिलाओं के लिए ये अच्छा कमाई का जरिया बन गया है. हालांकि अब मशरूम विलेज में सालों भर मशरूम का उत्पादन हो सके इसके लिए कृषि विभाग की ओर से पहल की जा रही है.
कृषि विभाग की सराहनीय पहल अगर हौसलों से भरे ग्रामीणों को प्रशासन का साथ मिल जाए तो गांव की तस्वीर कैसे बदलती है. बरसौना गांव इसका जीता जागता उदाहरण है. कृषि विभाग की पहल ने गांव में ना सिर्फ रोजगार के दरवाजे खोले बल्कि महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाने का काम किया. उम्मीद है कि इन गांव के ग्रामीणों से दूसरे गांव के लोग भी सीख लेंगे ताकि ग्रामीण इलाकों की तकदीर और तस्वीर दोनों बदल जाए.